
कवि परिचय:-
श्रद्धा जैन अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा ग़ज़ल विधा में महत्वपूर्ण दख़ल रखती हैं।
आप शायर फैमिली डॉट् क़ॉम का संचालन भी कर रहीं हैं व इस माध्यम से देश-विदेश के स्थापित व नवीन शायरों एवं कवियों को आपने मंच प्रदान किया है। वर्तमान में आप सिंगापुर में अवस्थित हैं व एक अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय में हिन्दी सेवा में रत हैं।
उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे
अकेले बैठूं जो कभी मैं, खुद को सोचती हुई
तो आँखें मूंद के मेरी, वो पीछे से हंसा करे
मुझे बताए ग़लतियाँ भी, रास्ता दिखाए फिर
वो देखे बन के आइना, हरेक पल खुदा करे
हूँ जो खफा मनाए, करके भोली सी शरारतें
जो खिलखिला के हंस पढ़ुँ, तो एकटक तका करे
हो पूरे ख्वाब कब, नहीं ये “श्रद्धा” जानती मगर
कज़ा से पहले चार दिन, खुशी के रब अता करे
वो देखे बन के आइना, हरेक पल खुदा करे
हूँ जो खफा मनाए, करके भोली सी शरारतें
जो खिलखिला के हंस पढ़ुँ, तो एकटक तका करे
हो पूरे ख्वाब कब, नहीं ये “श्रद्धा” जानती मगर
कज़ा से पहले चार दिन, खुशी के रब अता करे
10 टिप्पणियाँ
शानदार ग़ज़ल अनूठी कहन के साथ
जवाब देंहटाएंलगता है
जवाब देंहटाएंराखी सावंत ने भी
इसी अहसास के साथ
अपना स्वयंवर रचाया है
आपने अपनी गजल में
खूब मनोभावों का आईना
बनाया है
जो हमको तो खूब लुभाया है
गहरे मनोभाव लिये हुये इस गजल के लिये मुबारक बाद. मगर ऐसा शक्स मिलेगा कहां.. ;)
जवाब देंहटाएंहूँ जो खफा मनाए, करके भोली सी शरारतें
जवाब देंहटाएंजो खिलखिला के हंस पढ़ुँ, तो एकटक तका करे
कमाल के शब्द दिये हैं अपनी अनुभूतियों को।
बहुत अच्छी ग़ज़ल है श्रद्धा जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंACHCHHEE GAZAL KE LIYE SHRDDHA JAIN
जवाब देंहटाएंJEE KO BADHAI.
मुझे बताए ग़लतियाँ भी, रास्ता दिखाए फिर
जवाब देंहटाएंवो देखे बन के आइना, हरेक पल खुदा करे
एक से बढ़ कर एक होता है हर शेर आपका.....
लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई
aap ki gazal me ek khas baat hai vo samne dikhai deti hai us ki kahi bateh lagta hai ghat rahi hain
जवाब देंहटाएंsunder
rachana
मुझे बताए ग़लतियाँ भी, रास्ता दिखाए फिर
जवाब देंहटाएंवो देखे बन के आइना, हरेक पल खुदा करे
....Ek-ek shabd dil men utarte jate hain...bahav aur kathy ke lihaj se khubsurat gajal !!
अकेले बैठूं जो कभी मैं, खुद को सोचती हुई
जवाब देंहटाएंतो आँखें मूंद के मेरी, वो पीछे से हंसा करे
हूँ जो खफा मनाए, करके भोली सी शरारतें
जो खिलखिला के हंस पढ़ुँ, तो एकटक तका करे
श्रध्दा जी...ग़ज़ब...वाह...अहाहा...आनंद आ गया...बधाई.
नीरज
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