
छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई- पढाई करें।
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई- पढाई करें।
रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
मम्मी के आंचल में
रहने दो हमें पल दो पल
पापा की गोद में अनमोल
खेलने के पल
ये ही तो अभी जीवन है
छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई- पढाई करें।
कल को हम जान सकेंगे
पहचान से संभाल सकेंगे
जीवन भी संवरेगा
हर उम्मीद पर होंगे हम खरे
लेकिन अभी हैं नन्हे हाँथ
चाँद कहाँ पायेंगे
अभी तो, छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई-पढाई करें।
रहने दो हमें पल दो पल
पापा की गोद में अनमोल
खेलने के पल
ये ही तो अभी जीवन है
छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई- पढाई करें।
कल को हम जान सकेंगे
पहचान से संभाल सकेंगे
जीवन भी संवरेगा
हर उम्मीद पर होंगे हम खरे
लेकिन अभी हैं नन्हे हाँथ
चाँद कहाँ पायेंगे
अभी तो, छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई-पढाई करें।
8 टिप्पणियाँ
Nice Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
लेकिन अभी हैं नन्हे हाँथ
जवाब देंहटाएंचाँद कहाँ पायेंगे
अभी तो, छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई-पढाई करें।
अच्छा संदेश और बच्चों की स्वाभाविक पीडा की अभिव्यक्ति है।
बहुत अच्छी बाल कविता है।
जवाब देंहटाएंबच्चों पर बढाई का अधिक बोझ डाल कर उनका बचपन छीनना ठीक नहीं है।
जवाब देंहटाएंरचना जी अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना..पढ़ाई-पढ़ाई
जवाब देंहटाएंबेशक बड़ी सामयिक और आवश्यक रचना है ... सभी अभिभावकों को पढ़नी चाहिये . यहाँ महानगर में छोटे छोटे बच्चों को बातें करते देखता सुनता हूँ तो लगता ही नहीं कि ये २-४ साल पहले ही पैदा हुए हैं .. :-)
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता रचना जी।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.