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कुरकुरे गुनगुने से सपने [कविता] - रचना श्रीवास्तव

वर्षा दे जाती है
कुरकुरे गुनगुने से सपने
कुछ पुरानी गीली यादों के
वर्षा जलाती है
मन में स्नेह दीप
गर्माहट इसकी
देह में उर्जा का संचार करती है
अभिलाषा
तुम्हारी निगाहों के छुअन की
बलवती हो जाती है
वर्षा देती है जन्म
एक अमर प्रेम को
बूंद - धरती ,पात - हरितमा
बिजली और बादल
के प्रणय की साक्षी होती है
वर्षा बरसती है घर में
धो देती है काजल
आंसुओं में घुल
नमकीन हो जाती है
वर्षा
भर देती है नदी ,
कच्चे घडे और प्रेम के बीच
डुबो देती हैं उन्हें
चिर जीवित करने के लिए
वर्षा दे जाती है
कुरकुरे गुनगुने से सपने
पर नींद छीन लेती है

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7 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी रचना है रचना जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी रचना....
    .
    बधाई... रचना जी

    जवाब देंहटाएं
  3. वर्षा
    भर देती है नदी ,
    कच्चे घडे और प्रेम के बीच
    डुबो देती हैं उन्हें
    चिर जीवित करने के लिए
    bahut sunder bhav
    badhai
    mahesh

    जवाब देंहटाएं

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