
मूलतः फरीदाबाद, हरियाणा के निवासी दिगंबर नासवा को स्कूल, कौलेज के ज़माने से लिखने का शौक है जो अब तक बना हुआ है।
आप पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट हैं और वर्तमान में दुबई स्थित एक कंपनी में C.F.O. के पद पर विगत ७ वर्षों से कार्यरत हैं।
पिछले कुछ वर्षों से अपने ब्लॉग "स्वप्न मेरे" पर लिखते आ रहे हैं।
झूठ की मुस्कान होठों पर सज़ा लें
सच के आँसू आँख में अपनी दबा लें
चाहते हैं पूजना जो देवता को
जो गये हैं रूठ वो बच्चे मना लें
छेद कोई हो गया है चाँद में
चाँदनी का उबटन मल कर नहा लें
रौशनी को फैलने दें दूर तलक
आप चेहरे से ज़रा पर्दा हटा लें
रेत पर लिखा हुवा है नाम उनका
आँधियों से उन के शहर का पता लें
कृष्ण आयेंगे तुम्हारे सखा बन कर
पार्थ इस गांडीव को फिर से सजा लें
आत्मा मिल जायेगी परमात्मा से
बांसुरी की तान को मन में बसा लें
नेवला और सांप मिल कर रह सकें
इस तरह से आज घर अपना बना लें
है उसी की भैंस फिर जिसकी है लाठी
चल रही है आज तो अपनी चला लें
8 टिप्पणियाँ
रेत पर लिखा हुवा है नाम उनका
जवाब देंहटाएंआँधियों से उन के शहर का पता लें
कृष्ण आयेंगे तुम्हारे सखा बन कर
पार्थ इस गांडीव को फिर से सजा लें
आत्मा मिल जायेगी परमात्मा से
बांसुरी की तान को मन में बसा लें
अच्छी रचना।
Nice one.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
खुशी हुई नासवा जी आपका पोस्ट यहाँ देखकर और आपकी फोटो भी
जवाब देंहटाएंझूठ की मुस्कान होठों पर सज़ा लें
जवाब देंहटाएंसच के आँसू आँख में अपनी दबा लें
वाह
रेत पर लिखा हुवा है नाम उनका
जवाब देंहटाएंआँधियों से उन के शहर का पता लें
बहुत ही सुन्दर एवं लाजवाब प्रस्तुति, आभार
कई तरह के भावों से सजी एक रंग बिरंगी ग़ज़ल . सच के आंसू का प्रयोग अनूठा लगा .. काफी नया ....
जवाब देंहटाएं"आत्मा मिल जायेगी परमात्मा से
बांसुरी की तान को मन में बसा लें"
ये शेर हासिल-ऐ-ग़ज़ल रहा ...
एक गुजारिश है नासवा साहब से , कई शेर बेहेर से खारिज हैं ..जब कि शिल्पी पर ही बेहेर से सम्बंधित सामग्री प्रचुर मात्र में उपलब्ध है .. ग़ज़ल , भाव और बेहेर दोनों से बनती है..:-)
रौशनी को फैलने दें दूर तलक
जवाब देंहटाएंआप चेहरे से ज़रा पर्दा हटा लें
बहुत खूबसूरत -- रौशन करने वाली रचना
really impressive one.
जवाब देंहटाएंnot only a gazal but a philosphy and action plan and full of spirituality.
Thnaks a lot
Please give space in your email inox to me
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