
हमदर्द मगर कोई बनाया करो ‘श्रद्धा’
कवि परिचय:-
श्रद्धा जैन अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा ग़ज़ल विधा में महत्वपूर्ण दख़ल रखती हैं।
आप शायर फैमिली डॉट् क़ॉम का संचालन भी कर रहीं हैं व इस माध्यम से देश-विदेश के स्थापित व नवीन शायरों एवं कवियों को आपने मंच प्रदान किया है। वर्तमान में आप सिंगापुर में अवस्थित हैं व एक अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय में हिन्दी सेवा में रत हैं।
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
आँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
जाया करो मेले कभी, बागों में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो ‘श्रद्धा’
बंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
बादल हो घने गम के चमकती हो बिजलियाँ
बरसात में मल-मल के नहाया करो ‘श्रद्धा’
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
आते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
बहर - 221 -1221-1221-122
18 टिप्पणियाँ
बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंईद मुबारक!!
wah wah
जवाब देंहटाएंeid mubarak
Alok Kataria
श्रद्धा जी आपकी बेहतरीन ग़ज़ल नें सही इद मना दी।
जवाब देंहटाएंनुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
हर शेर मे श्रद्धा का प्रयोग अच्छा बन पडा है।
जवाब देंहटाएंईद की शुभकामनायें।
श्रद्धा की पंक्तियां सचमुच श्रद्धा से भरी हैं और इस ग़ज़ल में श्रद्धा का प्रतिबिंब पाठकों के सामने प्रकट हो रहा है । नवरात्र की शुभकामनाएं और ईद मुबारक ।
जवाब देंहटाएंआपको बहुत बेहतरीन ,वाह-वाह, और भी पंक्तियों से नवाजने वाले बहुत पाठक मिलेंगे क्योंकि वे आपकी गजल ध्यान से नहीं पढ़ते ,सिर्फ़ आपकी वाहवाही कर आपको खुश रखना चाहते हैं पर जब मैं कहता हूं कि श्रद्धा जैन की गजलों का अलग महत्व और सरोकार है तो इसका कुछ खास मतलब है। पहले भी आपकी गजलों पर टिप्पनियां देते हुए मैंने कहा कि ये गजलें दुष्यंत परम्परा मेम पगी उम्दा गजलें हैं। इन गजलों की भी तासीर यह है कि
जवाब देंहटाएंये भारतीय चित्त की गजलें हैं जिसमें अपनी माटी की सौंधी गंध महसूसी जा सकती है।
श्रद्धा जी दुष्यंत परम्परा की गज़ले तो नहीं कहूंगी क्योंकि फिर उस तेवर की तलाश भी करनी होगी लेकिन यह निस्संदेह कहूंगी कि वर्तमान शायरों में आप मुकाम रखती हैं। बहुत अच्छी ग़ज़ल। और मैं आपको बहुत ध्यान से पढने वाली पाठिका हूँ।
जवाब देंहटाएंबंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
बधाई स्वीकारें।
बहुत अच्छी गज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़ल के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हा
जवाब देंहटाएंआते हो तो इस तरह न आया करो ‘श्रद्धा’
मोतियों जैसे शेरों का गुलदस्ता है यह ग़ज़ल।
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा कर
जवाब देंहटाएंआँखें कभी खुद से, न चुराया करो ‘श्रद्धा’
बादल हो घने गम के चमकती हो बिजलियाँ
बरसात में मल-मल के नहाया करो ‘श्रद्धा’
नुकसान-नफा सोच के रिश्ते नहीं बनते
कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया करो ‘श्रद्धा’
अपने ही आत्म से जोडने वाली गज़ल।
श्रद्धा जी आपकी इस ग़ज़ल से कोई एक शेर चुनना तो कठिन है पूरी ग़ज़ल सधी हुई और भाव पूर्ण है।
जवाब देंहटाएंमधुर और मनमोहक।
जवाब देंहटाएंबारीक बात है
जवाब देंहटाएंबंदूक-तमंचे से जो घिर जाए ये बचपन
पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया करो ‘श्रद्धा’
किसी के लेखन को किसी से जोडना मेरी आदत नहीं. मुझे लगता है श्रद्धा ..श्रद्धा है और उसका अपना एक मुकाम है. दिल तक पहुंचने वाली इस गजल के लिये आपकी मेहनत को सलाम. जो कुछ भी आम आदमी से सरोकार रखता है और आम आदमी के दिल को छू लेता है वही बेहतरीन है.
जवाब देंहटाएंhai sharad
जवाब देंहटाएंaapki ye gazal bahut behtareen gazel hai. iski safalta k liye badhayi.
bahut khoob shradha ji.hardik badahai
जवाब देंहटाएंbahut khoob shradha ji-hardik badahi
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.