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चुप्पा [कविता] - मुकेश श्रीवास्तव

सामान्यत: /
उसके चेहरे पर कोई भाव नही होते /
‘चुप्पा’ ज्यादातर चुप ही रहता है /
सारे भाव विभाव, हंसी खुशी, और /
यहां तक कि /
सहमति और असहमति को भी /
शून्य मे टांग दिया हो /
/
शायद शून्य मे कोई खूंटी हो /
या हो सकता है /
उसके सभी भाव और विभाव /
इस चुप्पी के साथ /
हवा मे घुल मिल कर /
शून्य मे विलीन हो गये हों /
/
बुजुर्गों का कहना है, /
वह जन्म से ‘चुप्पा’ न था /
अनुभव व उम्र ने /
चुप्पा बना दिया है /
पर, कुछ लोगों का विश्वास है /
किसी बड़े हादसे ने, /
उसे चुप्पा बना दिया है /
/
बहरहाल कुछ भी हो /
उसे ‘चुप्पा’ कहे जाने से /
कोई एतराज नही है /

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