
शहीद हूं मैं
फांसी का रस्सा चूमने से कुछ रोज पहले
उसने तो केवल यही कहा था
कि मुझसे बढ़ कौन होगा खुशकिस्मत
मुझे नाज़ है अपने आप पर
अब तो बेहद बेताबी से
अंतिम परीक्षा की है प्रतिक्षा मुझे
कब कहा था उसने- मैं शहीद हूँ
शहीद तो उसे धरती ने कहा था
सतलुज की गवाही पर
शहीद तो, पांचों दरिया ने कहा था
गंगा ने कहा था
ब्रह्मपुत्र ने कहा था
शहीद तो उसे वृक्षों के पत्ते-पत्ते ने कहा था
आप जो अब धरती से युद्धरत हो
आप जो नदियों से युद्धरत हो
आप जो वृक्षों के पत्तों तक से युद्धरत हो
आपके लिये बस दुआ ही मांग सकता हूं मैं
कि बचाये आपको
रब्ब
धरती के शाप से
नदियों की बद्दुआ से
वृक्षों की चित्कार से।
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[कविता उद्भावना से साभार]
6 टिप्पणियाँ
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंधन्य भाग हमारे कि आपके माध्यम से शहीद भगत सिंह पर लिखी गयी सुरजीत जी की कविता का अनुवाद पढ़ने को मिला. भगत सिंह
को जन्म देने वाली माँ की कोख को शत् - शत् प्रणाम! जिस मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए उन्होंने अपने प्राण की आहुति दी, उसकी रक्षा
प्रत्येक भारतीय का प्रथम कर्त्तव्य है. संवेदनशीलता से भरी रचना के लिए आभार!
____किरण सिन्धु
भगत सिंह को उनके जन्मदिवस पर स्मरण करना ही बडा कार्य है. हम जिस तरह से अपने महान शहीदों को भूलते जा रहे हैं वह दिन दूर नहीं कि आने वाली पीढी इस नाम से परिचित भी रह जाये। बहुत अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंअमर शहीद को नमन..
जवाब देंहटाएंशहीद तो उसे धरती ने कहा था
जवाब देंहटाएंसतलुज की गवाही पर
शहीद तो, पांचों दरिया ने कहा था
गंगा ने कहा था
ब्रह्मपुत्र ने कहा था
शहीद तो उसे वृक्षों के पत्ते-पत्ते ने कहा था
शत शत नमन
kya sunder chitran hai shabdon ka snyojan bhi khoob hai
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
इस भावविभोर करने वाली रचना को हम तक पहुंचाने के लिये लेखक तथा मनोज जी का आभार
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.