तुम्हारे छोटे, मँझले / और बड़े झूठ / उबलते रहते थे मन में / दूध पर मलाई सा / मैं जीवन भर / ढकती रही उन्हें / पर आज उफन के / गिरते तुम्हारे झूठ / मेरे सच को / दरकिनार कर गये / तुम मेरी ओट लिये / साधु बने खडे रहे / झूठ की चिता पर / सती हो गया सच /
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12 टिप्पणियाँ
गहरे भाव लिए छोटी रचना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर है|
अवनीश तिवारी
मेरे सच को
जवाब देंहटाएंदरकिनार कर गये
तुम मेरी ओट लिये
साधु बने खडे रहे
झूठ की चिता पर
सती हो गया सच
बहुत प्रभावित किया आपकी कविता नें।
स्वयं में सुबाने वाली कविता यह भी सच है कि सत्य सती ही होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबड़ा अजीब है मन भी
जवाब देंहटाएंकितने दिन लग जाते हैं विश्वास करने में कि कोई अपना प्रिय झूठ भी कह सकता है
झूठ को झूठ कहने में
सच का सती होना
शायद कभी बंद होगा
sach likha hai hamesha hi asa hota hai .kavita dil ko chhu gai
जवाब देंहटाएंrachana
'सच' का सच तो यही है कि उसे सती होना पडता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
मर्मस्पर्शी कविता, जिसमें सच छिपा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ी कविता... सर्वश्रेष्ठ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंrachna achhi ban padi hai
जवाब देंहटाएंपर आज उफन के
जवाब देंहटाएंगिरते तुम्हारे झूठ
मेरे सच को
दरकिनार कर गये
बहुत सुंदर बिम्ब .... हृदय स्पर्शी रचना
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