
हिंदी और संस्कृत में स्नातकोत्तर शशि पाधा १९६८ में जम्मू कश्मीर विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ महिला स्नातक रहीं हैं। इसके अतिरिक्त सर्वश्रेष्ठ सितार वादन के लिये भी आप सम्मानित हो चुकीं हैं। २००२ में अमेरिका जाने से पूर्व आप भारत में एक रेडियो कलाकार के रूप में कई नाटकों और विचार-गोष्ठियों में भी सम्मिलित रहीं हैं। आपकी रचनायें भी समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। अमेरिका में आप नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन से जुड़ गईं।
अब तक आपके दो काव्य-संकलन “पहली किरण” और “मानस-मन्थन” प्रकाशित हो चुके हैं और एक अन्य प्रकाशनाधीन है। पिछले पाँच वर्षों से आप विभिन्न जाल-पत्रिकाओं से भी प्रकाशित हो रहीं हैं।
अब तक आपके दो काव्य-संकलन “पहली किरण” और “मानस-मन्थन” प्रकाशित हो चुके हैं और एक अन्य प्रकाशनाधीन है। पिछले पाँच वर्षों से आप विभिन्न जाल-पत्रिकाओं से भी प्रकाशित हो रहीं हैं।
तुम तो रहे तटस्थ सदा
मैं लहरों सी चंचल गतिमान
न संग बहे, न संग चले
क्या इसका तुझे हुआ था भान?
श्यामल शीतल साँझ सलोनी
सपनों सी संग बनी रही
मांझी के गीतों की गुंजन
इन अधरों पे सजी रही
मन्द पवन छुए जो आँचल
मन्द -मन्द मैं गाऊँ गान
मेरे गीतों की सरगम से
तुम तो सदा रहे अनजान।
अस्ताचल पर बैठा सूरज
बार -बार क्यों मुझे बुलाये
स्वर्णिम किरणों की डोरी से
बांध कभी जो संग ले जाये
इक बार कभी जो लौट न आऊँ
दूर कहीं भर लूं उड़ान
टूटे बन्धन की पीड़ा का
तुझे हुआ थोड़ा अनुमान?
पल -पल जीवन बीत गया
साधों का घट रीत गया
लहरों ने न तुझे हिलाया
और किनारा जीत गया
तुम तो, तुम ही बने रहे
की मुझसे कुछ पल की पहचान
पागल मन क्यों फिर भी कहता
तुझ में ही बसते मन प्राण ?
12 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंपल -पल जीवन बीत गया
जवाब देंहटाएंसाधों का घट रीत गया
लहरों ने न तुझे हिलाया
और किनारा जीत गया
तुम तो, तुम ही बने रहे
की मुझसे कुछ पल की पहचान
पागल मन क्यों फिर भी कहता
तुझ में ही बसते मन प्राण ?
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।
Nice poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
तुम तो, तुम ही बने रहे
जवाब देंहटाएंकी मुझसे कुछ पल की पहचान
पागल मन क्यों फिर भी कहता
तुझ में ही बसते मन प्राण ?
एसी श्रंगारिक रचनायें कम ही पढने को मिलती हैं जिनमें परिपक्वता भी हो और गहरायी भी।
अच्छी कविता!!!
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर छंद बने हैं |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
शशि जी कविता एसी है कि आँखों के आगे दृश्य बनने लगता है और शब्द शब्द महसूस होते हैं।
जवाब देंहटाएंइक बार कभी जो लौट न आऊँ
दूर कहीं भर लूं उड़ान
टूटे बन्धन की पीड़ा का
तुझे हुआ थोड़ा अनुमान?
निस्संदेह प्रभावी रचना है।
बाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मन को छूने वाली कविता।
जवाब देंहटाएंशशि जी की कविताएँ अपनी अलग पहचान और शैली लिए हैं.विरह हो या श्रृंगार, बड़ी परिपक्वता से वर्णन करती हैं.
जवाब देंहटाएंएक तरफ लिखती हैं---
अस्ताचल पर बैठा सूरज
बार -बार क्यों मुझे बुलाये
स्वर्णिम किरणों की डोरी से
बांध कभी जो संग ले जाये
इक बार कभी जो लौट न आऊँ
दूर कहीं भर लूं उड़ान
टूटे बन्धन की पीड़ा का
तुझे हुआ थोड़ा अनुमान?
राजीव जी से सहमत हूँ--चित्र खींचते शब्द,
हृदय में स्थान बनाते शब्द.
और दूसरी तरफ --
पल -पल जीवन बीत गया
साधों का घट रीत गया
लहरों ने न तुझे हिलाया
और किनारा जीत गया
वाह...जीवन की सच्चाई को, गहराई को कितने सुन्दर शब्दों से पिरोया है...
बहुत -बहुत बधाई.
आप सब ने मेरी रचना को पसन्द किया तथा टिप्पणी भेजी , इस के लिये मेरा धन्यवाद स्वीकार करें । आप के विचार मुझे सदैव प्रेरणा देते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसधन्यवाद,
शशि पाधा
जीवन कैसे रंग दिखाता
जवाब देंहटाएंहर रंग जीवन बन जाता
अजीब उलझने सुलझाने वाला मन
कभी ख्ुाद उलझ जाता
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.