

दुआएँ होठों से नहीं आँखों से बोलती हैं.
कभी किसी भूखे बच्चे को,
पेट भर खाना खिला कर तो देखो,
कभी किसी बूढे - बेसहारे को,
कुछ कदम साथ चल कर,
रास्ता पार करा कर तो देखो,
कभी किसी अबला की लुटती अस्मत को,
अपनी शराफत और भरोसे की चादर,
ओढ़ा कर तो देखो.
इनकी आँखों में इक नमी सी तैर जाती है,
एक ऐसा नूर जो दिल की गहराइयों में समा कर,
अन्दर तक उजाला भर दे.
एक ऐसे रिश्ते की बुनियाद,
जो सभी रिश्तों से ऊपर है.
दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है,
ये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है.
8 टिप्पणियाँ
दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है,
जवाब देंहटाएंये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है.
सही कहा किरण जी।
संवेदनाओं से भरी बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंदुआओं में बहुत असर होता है, बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंएक ऐसा नूर जो दिल की गहराइयों में समा कर,
जवाब देंहटाएंअन्दर तक उजाला भर दे.
एक ऐसे रिश्ते की बुनियाद,
जो सभी रिश्तों से ऊपर है.
दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है,
ये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है.
बहुत अच्छी कविता है।
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील लेखन.. सचमुच दिल से निकली दुआओं में बहुत असर होता है... जितनी बटोरी जा सकें बटोर लेनी चाहिये.
जवाब देंहटाएंजहाँ काम न करे दवा , काम करे दुआ
जवाब देंहटाएंफुँफा करे जब धुनाई ,छुडाये तब बुआ
बहुत अछि कविता के लिए बधाई .
जवाब देंहटाएंनिशा
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