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हिन्दी दिवस पर तीन कवितायें [विशेष प्रस्तुति] - डॉ. वेद व्यथित/ डी. के. सिंह/ शोभा महेन्द्रू.

हिन्दी और बिन्दी - डा० वेद व्यथित

हिन्दी

जो कही जाती है
भारत के भाल की बिन्दी
यह बिल्कुल ठीक है
क्योकि चेहरे पर
बिन्दी से अधिक
लिपिस्टिक है
पाउडर है
क्रीम का लेप है
बिन्दी तो छोटी सी जगह मे समाई है
राज भाशा होते हुये भी थोडी सी
अपनाई है
क्यो कि आज
बिन्दी की नही
लिपिस्टिक की
पाउडर की भरमार है
इसी लिये हिन्दी का बस
बिन्दी जितना अधिकार है

**********

एक दुखियारी की जीवन यात्रा - डी. के. सिंह

सूरदास
की ब्राजभाषा ने, मुझको दूध पिलाया है।
तुलसी की अवधी ने भी ख़ूब, स्तनपान कराया है।
पंचमेल खिचरी कबीर की, सुंदर स्वाद चखाया है।
बिहारी के मारक दोहों ने, मेरा शृंगार रचाया है।

भारतेंदु की स्वर्ण लेखनी, से यौवन का भान हुआ।
जयशंकर प्रसाद के जादू से, शक्ति का संचार हुआ।
नेताजी के आज़ाद हिंद का, भारत में आगाज़ हुआ।
उस सेना की भाषा बनकर, मेरा बड़ा सम्मान हुआ।

अँग्रेज़ी लिपि में बाधित कर, हिंदी संदेश पठाऊँगा।
अँग्रेज़ कमांडर समझ न पाए, ऐसा उनको उलझाऊँगा।
स्वतंत्र भारत में जनमानस की, महारानी बनवाऊंगा।
संयुक्त राष्ट्र में अँग्रेज़ी से, उपर तुझे बिठाऊँगा।

इंडिया को भारत कहते हैं, लोगों को अब ज्ञान नहीं।
घर विद्यालय कार्यालय में, मेरा कोई काम नही।
ज़ीर्ण शीर्ण काया है मेरी, वस्त्रों का भी भान नहीं।
लेती हूं महाप्रयाण देश में, मेरा कोई स्थान नहीं।

भारत माँ की कंचन काया में, कभी रही माथे की बिंदी।
आज नहीं है कोई अपना, मुझे लोग कहते हैं हिंदी.

**********

ज़रा सोच कर देखिये - शोभा महेन्द्रू

हम सब
हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं
जरा सोचें
किस बात पर इतरा रहें हैं ?
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है
हिन्दी सरल-सरस भी है
वैग्यानिक और
तर्क संगत भी है ।
फिर भी--
अपने ही देश में
अपने ही लोगों के द्वारा
उपेक्षित और त्यक्त है ------

---------------जरा सोचकर देखिए
हम में से कितने लोग
हिन्दी को अपनी मानते हैं ?
कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?
अधिकतर तो--
विदेशी भाषा का ही
लोहा मानते है ।
अपनी भाषा को
उन्नतिका मूल मानते हैं ?
कितने लोग
हिन्दी को पहचानते हैं ?-----------------

--------भाषा तो कोई भी बुरी नहीं
किन्तु हम
अपनी भाषा से
परहेज़ क्यों मानते हैं ?
अपने ही देश में
अपनी भाषा की
इतनीउपेक्षा
क्यों हो रही है
हमारी अस्मिता
कहाँ सो रही है ?
व्यवसायिकता और लालच की
हद हो रही है ।-----------------
-इस देश में
कोई फ्रैन्च सीखता है
कोई जापानी
किन्तु हिन्दी भाषा
बिल्कुल अनजानी
विदेशी भाषाएँ
सम्मान पा रही हैं
औरअपनी भाषा
ठुकराई जारही है ।

मेरे भारत के सपूतों
ज़रा तो चेतो ।
अपनी भाषा की ओर से
यूँ आँखें ना मीचो ।
अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम आएगी ।
किन्तु
अपनी भाषा तो
ममता लुटाएगी ।
इसमें अक्षय कोष है
प्यार से उठाओ
इसकी ग्यान राशि से
जीवन महकाओ ।

आज यदि कुछ भावना है
तो राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।

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11 टिप्पणियाँ

  1. हिन्दी के महत्व को बढ़ाना हम सब की नैतिक ज़िम्मेदारी है..और हमे इसका मूल्य पूरी दुनिया को समझाना है..
    हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  2. हिन्ढी है बिंदी माथे की
    सजती हरेक वेष में,
    प्रेम का संदेश सिखाती
    हर जाति हर देश में,


    देश काल से इसे ना बांधो
    सारे जग पर राज करे,
    ममता की गाकर लोरी
    हर मन में विश्राम करे ||


    हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी दिवस की शुभकामनाएं |


    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  4. व्यथित जी का व्यंग्य, सिंह साहव का संदेश और शोभा जी की वेदना तीनों ही हिन्दी की वास्तविक दशा बताने में सक्षम है। कवि त्रय को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. हिन्दी की उपेक्षा को तीनो ही कवितायें बयां करती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. सचमुच हिन्दी का बिन्दी जितना अधिकार है। अच्छी कवितायें।

    जवाब देंहटाएं
  7. तीनों ही बहुत अच्छी कवितायें, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. hindi aur bindi ko bahut badhiya dhang se bataya hai aaj aisi hi jagaran ki jarurat hai

    जवाब देंहटाएं
  9. हिन्दी दिवस पर लिखी तीनो कवितायें सार्थक हैं..
    हिन्दी के प्रति रचनाकारों का सरोकार काबिले तारीफ़ है

    जवाब देंहटाएं
  10. hindi diwas per likhi teeno rachnaye bahut acchhi hai...dair se rev.dene k liye kshama praarthi hu.

    जवाब देंहटाएं

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