
सुनें रचनाकार के स्वर में
टी वी पर शोर अभी कम नहीं हुआ था. सिडनी सहित आस्ट्रेलिया के अन्य नगरों में वहां के अस्पतालों में भरती भारतीय छात्रों के दृश्य स्क्रीन पर बार बार दिखाये जा रहे थे. उन्होंने रिमोट मानव के हाथ से लेकर वाल्यूम कम कर दिया.
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' का जन्म 10 अक्तूबर 1959 को हुआ। आप आपात स्थिति के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश के आह्वान पर छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे।
आपकी रचनाओं का विभिन्न समाचार पत्रों, कादम्बिनी तथा साप्ताहिक पांचजन्य में प्रकाशन होता रहा है। वायुसेना की विभागीय पत्रिकाओं में लेख निबन्ध के प्रकाशन के साथ कई बार आपने सम्पादकीय दायित्व का भी निर्वहन किया है।
सम्प्रति : वायुसेना स्टेशन चण्डीगढ़ मे कार्यरत।
“आस्ट्रेलिया में हमारे छात्रों पर हो रहे हमलों की जितनी भी निन्दा की जाये वह कम है. हमारी सरकार ने उनकॆ प्रधानमंत्री से तो .....” ड्राइंग रूम में पापा की चिन्तातुर आवाज गूंजी.
“ इन लोगों ने पहले से भी नाक में दम कर रखा है. क्रिक्रेट टीम के साथ होने वाले मैचों में नस्लभेद, हरप्रकार की बेइमानी और अब भारतीय छात्रों के साथ नस्लीय हिंसक घटनायें ...... जबकि हम अब तक वसुधैव कुटुम्बकम का नारा लगाते हुये हर विदेशी को अपने सिर आंखॊं पर बैठाने को तैयार रहते हैं.” टी वी पर प्रदर्शित समाचारों से मानव अब भड़कने लगा था.
“ शांत मानव शांत वह हमारी संस्कृति है. हमारी और उनकी सभ्यता में मूलभूत अंतर है . उनके कारण हम अपनी सभ्यता नहीं बदल सकते ... और फिर सरकार वार्ता कर तो रही है. हमारे विदेशमंत्री ने विरोध स्वरूप अपना पूर्वनियिजित आस्ट्रेलिया दौरा भी निरस्त कर दिया . इस विषय में यहां मुम्बई में तुम क्या कर सकते हो.” पापा ने समझाने का प्रयास किया.
“ मैं चुप नहीं रह सकता हूं. हम कल ही अपने साथियों के साथ आंदोलन और धरना देंगे. सरकार को इस तरह चुप नहीं बैठने देंगे. आज दिल्ली या कोलकाता हर सरकार उग्र आंदोलन की भाषा ही समझती है. मानव के स्वर में युवा आंदोलनों की सफलता का दर्प और दॄढ़ निश्चय स्पष्ट दिखायी दे रहा था.
“ मैं तुमसे सहमत नहीं हूं मानव. तुम और तुम्हारे साथी संभवतः देश की कुछ और सम्पत्ति नष्ट करोगे तथा अनगिनत लोगों को असुविधा और संकट में डालने वाले हो बस ... अपनी बात रखने के कुछ और ... शांत तरीके भी तो हो सकते हैं “
“ आप नहीं समझेंगे पापा ...... यह हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रश्न है मैं चुप नहीं बैठ सकता .. अपने देश के छात्रों को आस्ट्रेलिया में न्याय और सुरक्षा मिलने तक हम चैन से नहीं बैठेंगे ” मानव लगभग उत्तेजित था.
“ हूं.... आज देश के सामने महात्मा गांधी तो हैं नहीं. आज के युवा को इस मार्ग पर डालने वाले वर्तमान नेता ही तो हैं ... और निरीह जनता भुगत रही है. “ वह स्वयं से बड़बड़ाने लगे. उनके स्वर में असहमति के साथ विवशता स्पष्ट थी.
“ मानव ..! मानव ... !!" बाहर से पुकारने की आवाज और दरवाजे पर जोर जोर की खटखट के साथ लेन में शोर सुनायी पड़ा.
“ यह तो वीर भाउ की आवाज है, जरूर सारे साथी किसी धरने पर जा रहे होंगे ....... कहते हुये अगले ही पल मानव दरवाजे के बाहर आनन फानन में फुर हो गया.
“ अरे सुनो तो ...." पापा बस इतना कह्ते हुये बाहर सड़क पर जाते हुये उत्तेजित युवा भीड़ के रेले की एक झलक मात्र ही देख सके.
* * * * *
थोड़ी देर बाद ही स्थानीय चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज के साथ समाचारों का दूसरा दृश्य सामने था.
“ मुम्बई में रेलवे परीक्षा देने आये छात्रों पर स्थानीय युवकों का हिंसक हमला...” टी वी स्क्रीन पर समाचार वाचिका का स्वर पापा जी को अब सुनायी नहीं दे रहा था. वह दौड़ा दौड़ा कर पीटे जा रहे उत्तर भारतीय छात्रों की पीड़ा और चीख पुकार की अफरातफरी में खोते जा रहे थे. अपने ही राष्ट्र के एक कोने से दूसरे कोने में परीक्षा के लिये भटकते हुये असहाय छात्रों का पुलिस के सामने खदेड़ा जाना वह देख रहे थे. इन्हें पीटने वाली भीड़ में “ ... मराठी मानुष...” के बैनर के साथ मानव का सर्वाधिक उत्तेजित चेहरा उन्हें टी वी स्क्रीन पर बार बार सबसे आगे दिखायी दे रहा था.
“ हेलो ... ! पुलिस कंट्रोल ...”
“ देखिये ...... रेलवे परीक्षा देने आये उत्तर भारतीय छात्रों पर कुछ स्थानीय युवाओं की भीड़ ने हमला कर दिया है. कुछ करिये ..."
“ हा.. हां हम भी टी वी पर देख रहे हैं. “
“ आप देखिये नहीं कुछ करिये ... पीटने वालों की भीड़ में मेरा बेटा भी है “ उनकी आवाज में चिंता और व्यग्रता दोनों थे.
“ काका आप शांत रहें आपका बेटा तो अच्छी समाज सेवा कर रहा है “ उधर से मराठी में कहा गया.
“ यह क्षेत्रीयवाद आस्ट्रेलियाई नस्लवाद से कहीं अधिक खतरनाक है .... राष्ट्रीय स्वाभिमान का नाम लेने वालों का यह दोहरा मापदण्ड कैसा ? “ उनका धैर्य अब समाप्त हो गया था. रिसीवर लगभग पटकते हुये उन्होंने टी वी सेट बंद कर दिया.
12 टिप्पणियाँ
बेहद खूबसूरती से लिखी गयी लघुकथा .. कई दिनों बाद कोई सटीक लघुकथा पढने को मिली ... कुछ समय पहले आप की एक और कहानी पढी थी जिसमें आपातकाल में हुए छात्रान्दोलन के अंदरूनी पहलू को काफी संवेदना के साथ उजागर किया गया था ... आइना दिखती हुई रचना ..
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबधाई श्रीकांत जी।
जवाब देंहटाएंNice. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
विरोधाभास आपकी कहानी के दृश्यों में उभर कर आया है और कहानी को प्रभावी बना रहा है।
जवाब देंहटाएंइस लघुकथा में श्रीकांत जी की छाप है उनकी सोच का रिफ्लेक्शन है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्रीकांत जी, इसमें संदेह नहीं है कि प्रांतवाद खतरनाक घुन है और इस पुराने देश को तेजी से खोखला कर रहा है। सार्थक कहानी के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंमैं आपकी कहानी के भाग-2 का भुक्तभोगी हूँ। मुझे इस देश के नेताओं पर घिन आती है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पटकथा है और एक बडी कहानी लिखने की पृष्ठभूमि। इसे पूरा कीजिये श्रीकांत जी।
जवाब देंहटाएंसमसमायिक विषय पर लिखी गई सुन्दर रचना. क्षेत्रवाद, जातिवाद और रंगभेद का यह दानव तब तक नहीं मरेगा जब तक हम अपने विचारों में मूल चूल परिवर्तन नहीं ला पाते. मानव से मानव को किसी भी मापदंड पर अगल करना बहुत बडी भूल है.
जवाब देंहटाएंshirikant ji
जवाब देंहटाएंbahut khubi se lha hai aap ne .aap ko badhai ho .aap ki kahaniya sada hi sunder hoti hai kuchh sochne pr majbur karti hain
saader
rachana
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