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चलो बरसो पहले हुई क़यामत को देखते है [ग़ज़ल] – दीपक बेदिल


चलो बरसो पहले हुई क़यामत को देखते है
खोफजदा रात की दोर-ए-शिकायत को देखते है

मुत्फरिक अशर तो यु है तकरीर हमारी यारो
परदेह में छिपी उसी नफरत को देखते है

वीरान-ओ-उजाड़ यहाँ आब-ओ-हवा हुई है ऐसी
लुटी हुई जिन्दगी में उस मुहब्बत को देखते है

यु तो ना जाएगे गंज-ए-शहीदान वतन से परे
गाहे - बा - गाहे दुश्मन की जराफत को देखते है

महफ़िल महबूब की होती आब-ए-रवां जैसी अल्हा
इसमें डूब कर "बेदिल" अपनी सूरत को देखते है

शब्द----
1-मुत्फरिक अशर = फूटकर दोहा
2-तकरीर = बात, भाषण
3-गंज-ए-शहीदान = शहीदों के दफन होने वाली जगह
4-जराफत = कला
5-आब-ए-रवां = बहता पानी

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4 टिप्पणियाँ

  1. यु तो ना जाएगे गंज-ए-शहीदान वतन से परे
    गाहे - बा - गाहे दुश्मन की जराफत को देखते है.

    bahut sundar gazal..badhayi..

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. उर्दू शब्दों के अर्थ देना अच्छा रहा। इससे समझने में आसानी हुई।

    जवाब देंहटाएं

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