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कौन यह किशोरी? [कविता] - लावण्या शाह


कौन यह किशोरी?
चुलबुली सी, लवंग लता सी,
कौन यह किशोरी?
मुखड़े पे हास,रस की बरसात,
भाव भरी, माधुरी!
हास् परिहास, रँग और रास,
कचनार की कली सी,
कौन यह किशोरी?
अल्हडता,बिखराती आस पास,
कोहरे से ढँक गई रात,
सूर्य की किरण बन,
बिखराती मधुर हास!
कौन यह किशोरी?
भोली सी बाला है,
मानों उजाला है,
षोडशी है या रंभा है ?
कौन जाने ऐसी ये बात!
हो तेरा भावी उज्ज्वलतम,
न हों कंटक कोई पग,
बाधा न रोके डग,
खुलें हों अंतरिक्ष द्वार!
हे भारत की कन्या,
तुम,प्रगति के पथ बढो,
नित, उन्नति करो,
फैलाओ,अंतर की आस!
हों स्वप्न साकार, मिलें,
दीव्य उपहार, बारँबार!
है, शुभकामना, अपार,
विस्तृत होँ सारे,अधिकार!
यही आशा का हो सँचार!

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9 टिप्पणियाँ

  1. अति सुन्दर रचना. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

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  2. आपको पढ कर लगता है कि आपके हर शब्द में स्वाभाविक संगीत विद्यमान है।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेरणा देती अति सुन्दर कविता बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. आपने हमेशा मुझे प्रभावित किया है

    जवाब देंहटाएं
  5. नव आशा का संचार करती अच्छी रचना.

    जवाब देंहटाएं
  6. लावन्य दीदी
    देरी से आने के लिए माफ़ी , कुछ उलझा हुआ था ज़िन्दगी में ...

    आपकी कविताये , हमेशा ही दिल को छूती हुई रहती है ...
    भारत की कन्या के रूप में आपने भारत की छवि को बहुत ही सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है

    शब्दों का जादू पूरी तरह से छाया हुआ है , कविता में

    आपका आभार और बधाई

    विजय

    जवाब देंहटाएं

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