
कौन यह किशोरी?
चुलबुली सी, लवंग लता सी,
कौन यह किशोरी?
मुखड़े पे हास,रस की बरसात,
भाव भरी, माधुरी!
हास् परिहास, रँग और रास,
कचनार की कली सी,
कौन यह किशोरी?
अल्हडता,बिखराती आस पास,
कोहरे से ढँक गई रात,
सूर्य की किरण बन,
बिखराती मधुर हास!
कौन यह किशोरी?
भोली सी बाला है,
मानों उजाला है,
षोडशी है या रंभा है ?
कौन जाने ऐसी ये बात!
हो तेरा भावी उज्ज्वलतम,
न हों कंटक कोई पग,
बाधा न रोके डग,
खुलें हों अंतरिक्ष द्वार!
हे भारत की कन्या,
तुम,प्रगति के पथ बढो,
नित, उन्नति करो,
फैलाओ,अंतर की आस!
हों स्वप्न साकार, मिलें,
दीव्य उपहार, बारँबार!
है, शुभकामना, अपार,
विस्तृत होँ सारे,अधिकार!
यही आशा का हो सँचार!
9 टिप्पणियाँ
अति सुन्दर रचना. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंआपको पढ कर लगता है कि आपके हर शब्द में स्वाभाविक संगीत विद्यमान है।
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देती अति सुन्दर कविता बधाई
जवाब देंहटाएंNice Poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
आपने हमेशा मुझे प्रभावित किया है
जवाब देंहटाएंनव आशा का संचार करती अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa laga
जवाब देंहटाएंलावन्य दीदी
जवाब देंहटाएंदेरी से आने के लिए माफ़ी , कुछ उलझा हुआ था ज़िन्दगी में ...
आपकी कविताये , हमेशा ही दिल को छूती हुई रहती है ...
भारत की कन्या के रूप में आपने भारत की छवि को बहुत ही सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है
शब्दों का जादू पूरी तरह से छाया हुआ है , कविता में
आपका आभार और बधाई
विजय
sunder shabdo se sazi ek bahut pyari rachna.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.