
परिचय:- योग का सर्वोतम एक मात्र ग्रन्थ गीता है। गीता में सात सौ श्लोक है। गीता आत्मा को परमात्मा से मिलन का मार्ग जगत को बताती है। गीता ब्रह्म विद्या है। इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में आनेवाली प्रत्येक समस्या एवं सवालों का जवाब है गीता।
रचनाकार परिचय:-
गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए व्यक्ति मोक्ष कैसे प्राप्त करें, बतलाती है गीता। जन्म के साथ ही मृत्यु सत्य है। इस सत्य को जानते हुए भी भौतिकता के पीछे भागते रहना; संसार मे अपनी झूठी शान-शौकत के लिए कुछ भी करने से नही हिचकना; धन के पिछे भागते इंसान को आए दिन विभिन्न नई इच्छाओ को जन्म देना एवं उनकी प्राप्ति के लिए येन-केन-प्रकारेण प्रयास करना यह भौतिकता का चरमोत्कर्ष है। क्या कभी आपने इस संसार के परे जा कर कल्पना की है? यह मन सदैव चंचल क्यों हो जाता है? मृत्यु सत्य क्यों है? समय गतिशील क्यों है? तमाम भौतिक साधनो को जुटाने के बावजूद इंसान बेचैन क्यों है? किसी भी व्यक्ति को शांति की प्राप्ति कैसे होगी? सवाल अनेक है? जबाब गीता है।
प्रत्येक व्यक्ति जिस माता-पिता के घर जन्म लेता है उनकी सम्पति का स्वामित्व प्राप्त करना चाहता है। इस स्वामित्व प्राप्ति के लिए चाहे उसे जो भी करना पडे करता चला जाता है। इस सच को जानते हुए भी कि एक दिन यह सब कुछ छोडकर उसे जाना होगा फिर भी मोहवश वह स्वामी बनने की लालसा लिए जीवन पर्यंत भौतिक सुख के पीछे भागता रहता है। पिता की सम्पति पाने के लिए वह क्या क्या नहीं करता।
प्रत्येक व्यक्ति या जीव में आत्मा होती है इस प्रकार आत्मा के पिता परमात्मा(परम आत्मा) हुए। फिर परमात्मा की सम्पति पाने के लिए हम प्रयास क्यों नहीं करते है? अगर हम थोड़ा भी प्रयास करें तो हम सब को परमात्मा की सम्पति अवश्य प्राप्त होगी।
गीता ज्ञान विषय पर हम सब विशुद्ध चिंतन करें। परमात्मा परम दयालु है अवश्य ही वह आपके प्रत्येक क्षण में मौजूद रहकर आपको अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति देना चाहते है पर, उनकी सम्पत्ति पाने का मार्ग भौतिकता नहीं (जो क्षणभंगुर है) बल्कि योग साधना है। परमात्मा के द्वारा दी गयी सम्पति कभी नष्ट नहीं होगी किंतु आपके द्वारा अर्जित सम्पति आपके सामने ही नष्ट हो जाएगी। अब तय आपको करना है, आपको परमात्मा की सम्पति चाहिए या सांसारिक सम्पति जो अब तक आप प्राप्त कर रहे है पर फिर भी बेचैन है शांति कही नहीं मिली।
कैसे करें गीता पाठ:- गीता पाठ करना अपने आप मे दुर्लभ है। गीता पाठ करने का भाव अपने मन में लाना मोक्ष प्राप्ति मार्ग की प्रथम सफलता है।
प्रत्येक मनुष्य अर्जुन की तरह है। अत: अपने को अर्जुन मानकर गीता का पाठ आरंभ करें ईश्वर का स्नेह आपको स्वत: प्राप्त हो जायेगा। इस संसार में ऐसी कोई चीज नहीं जिसे आप पा न सकते हो पर, ईश्वर का स्नेह पाना सर्वोत्तम है वही परम शांति है।
घी का एक दीपक जलाए और सुगंधित अगरबती से अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर शांत मन से गीता का पाठ आरंभ करें।
श्रीमद्भगवदगीता- पहला अध्याय
धृतराष्ट्र: उवाच।
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय:॥1॥
अनुवाद:- धृतराष्ट्र ने कहा, हे संजय। धर्मभूमि कुरूक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकठ्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
संक्षिप्त टिप्पणी :- कुरूक्षेत्र- एक अत्यंत प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल है। जो अम्बाला से दक्षिण तथा दिल्ली से उत्तर में है।
धर्मक्षेत्र- वैदिक संस्कृति का मुख्य केन्द्र होने के कारण कुरूक्षेत्र को “धर्मक्षेत्र” अर्थात पुण्य भूमि कहा गया है।
बारह वर्ष वनवास एवं एक वर्ष अज्ञातवास बीत जाने के पश्चात अपना राज्य वापस पाने हेतु पाण्डव दुर्योधन के पास एक दुत भेजते है। किंतु दुर्योधन दूत के आग्रह को ठुकरा देता है। अंतत: श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापूर जाते है। श्रीकृष्ण, पितामह भीष्म, महात्मा विदुर, आचार्य द्रोण एवं राजा धृतराष्ट्र से भरे दरबार मे पाण्डवो के लिए न्याय माँगते है किंतु कालचक्रग्रस्त दुर्योधन एक सुई की नोक जितनी भूमि बिना युद्ध को देने के लिए तैयार नहीं होता है। क्रोध से भरकर वह श्रीकृष्ण को भी बंदी बनाने का असफल प्रयास करता है। पाण्डव युद्ध को अनिवार्य जानते हुए तैयारी आरंभ कर देते हैं। फिर दोनो सेनाओं के दोनो पक्ष अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर कुरूक्षेत्र मे एक दूसरे के सामने आ जाते है। युद्ध की स्थिति को देखने के लिए महर्षि व्यास धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान करना चाहते है पर, धृतराष्ट्र अपनी कुल की हत्या युद्ध मे अपनी ऑखो से नहीं देखना चाहते है किंतु युद्ध का सारा वृतांत अवश्य सुनना चाहते है। अत: महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि देकर कहा कि “ये संजय तुम्हे युद्ध का वृतांत सुनायेंगे। युद्ध की समस्त घटनाओं को ये प्रत्यक्ष देख सकेगे इनसे कोई भी बात छुपी नही रह सकेगी।
इस प्रकार संजय दिव्य दृष्टि के माध्यम से युद्ध की सारी घटन्नों को धृतराष्ट्र को सुनाते हैं..
अजय कुमार सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया) में अधिवक्ता है। आप कविता तथा कहानियाँ लिखने के अलावा सर्व धर्म समभाव युक्त दृष्टिकोण के साथ ज्योतिषी, अंक शास्त्री एवं एस्ट्रोलॉजर के रूप मे सक्रिय युवा समाजशास्त्री भी हैं।
गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए व्यक्ति मोक्ष कैसे प्राप्त करें, बतलाती है गीता। जन्म के साथ ही मृत्यु सत्य है। इस सत्य को जानते हुए भी भौतिकता के पीछे भागते रहना; संसार मे अपनी झूठी शान-शौकत के लिए कुछ भी करने से नही हिचकना; धन के पिछे भागते इंसान को आए दिन विभिन्न नई इच्छाओ को जन्म देना एवं उनकी प्राप्ति के लिए येन-केन-प्रकारेण प्रयास करना यह भौतिकता का चरमोत्कर्ष है। क्या कभी आपने इस संसार के परे जा कर कल्पना की है? यह मन सदैव चंचल क्यों हो जाता है? मृत्यु सत्य क्यों है? समय गतिशील क्यों है? तमाम भौतिक साधनो को जुटाने के बावजूद इंसान बेचैन क्यों है? किसी भी व्यक्ति को शांति की प्राप्ति कैसे होगी? सवाल अनेक है? जबाब गीता है।
प्रत्येक व्यक्ति जिस माता-पिता के घर जन्म लेता है उनकी सम्पति का स्वामित्व प्राप्त करना चाहता है। इस स्वामित्व प्राप्ति के लिए चाहे उसे जो भी करना पडे करता चला जाता है। इस सच को जानते हुए भी कि एक दिन यह सब कुछ छोडकर उसे जाना होगा फिर भी मोहवश वह स्वामी बनने की लालसा लिए जीवन पर्यंत भौतिक सुख के पीछे भागता रहता है। पिता की सम्पति पाने के लिए वह क्या क्या नहीं करता।
प्रत्येक व्यक्ति या जीव में आत्मा होती है इस प्रकार आत्मा के पिता परमात्मा(परम आत्मा) हुए। फिर परमात्मा की सम्पति पाने के लिए हम प्रयास क्यों नहीं करते है? अगर हम थोड़ा भी प्रयास करें तो हम सब को परमात्मा की सम्पति अवश्य प्राप्त होगी।
गीता ज्ञान विषय पर हम सब विशुद्ध चिंतन करें। परमात्मा परम दयालु है अवश्य ही वह आपके प्रत्येक क्षण में मौजूद रहकर आपको अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति देना चाहते है पर, उनकी सम्पत्ति पाने का मार्ग भौतिकता नहीं (जो क्षणभंगुर है) बल्कि योग साधना है। परमात्मा के द्वारा दी गयी सम्पति कभी नष्ट नहीं होगी किंतु आपके द्वारा अर्जित सम्पति आपके सामने ही नष्ट हो जाएगी। अब तय आपको करना है, आपको परमात्मा की सम्पति चाहिए या सांसारिक सम्पति जो अब तक आप प्राप्त कर रहे है पर फिर भी बेचैन है शांति कही नहीं मिली।
कैसे करें गीता पाठ:- गीता पाठ करना अपने आप मे दुर्लभ है। गीता पाठ करने का भाव अपने मन में लाना मोक्ष प्राप्ति मार्ग की प्रथम सफलता है।
प्रत्येक मनुष्य अर्जुन की तरह है। अत: अपने को अर्जुन मानकर गीता का पाठ आरंभ करें ईश्वर का स्नेह आपको स्वत: प्राप्त हो जायेगा। इस संसार में ऐसी कोई चीज नहीं जिसे आप पा न सकते हो पर, ईश्वर का स्नेह पाना सर्वोत्तम है वही परम शांति है।
घी का एक दीपक जलाए और सुगंधित अगरबती से अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर शांत मन से गीता का पाठ आरंभ करें।
श्रीमद्भगवदगीता- पहला अध्याय
धृतराष्ट्र: उवाच।
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय:॥1॥
अनुवाद:- धृतराष्ट्र ने कहा, हे संजय। धर्मभूमि कुरूक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकठ्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
संक्षिप्त टिप्पणी :- कुरूक्षेत्र- एक अत्यंत प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल है। जो अम्बाला से दक्षिण तथा दिल्ली से उत्तर में है।
धर्मक्षेत्र- वैदिक संस्कृति का मुख्य केन्द्र होने के कारण कुरूक्षेत्र को “धर्मक्षेत्र” अर्थात पुण्य भूमि कहा गया है।
बारह वर्ष वनवास एवं एक वर्ष अज्ञातवास बीत जाने के पश्चात अपना राज्य वापस पाने हेतु पाण्डव दुर्योधन के पास एक दुत भेजते है। किंतु दुर्योधन दूत के आग्रह को ठुकरा देता है। अंतत: श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापूर जाते है। श्रीकृष्ण, पितामह भीष्म, महात्मा विदुर, आचार्य द्रोण एवं राजा धृतराष्ट्र से भरे दरबार मे पाण्डवो के लिए न्याय माँगते है किंतु कालचक्रग्रस्त दुर्योधन एक सुई की नोक जितनी भूमि बिना युद्ध को देने के लिए तैयार नहीं होता है। क्रोध से भरकर वह श्रीकृष्ण को भी बंदी बनाने का असफल प्रयास करता है। पाण्डव युद्ध को अनिवार्य जानते हुए तैयारी आरंभ कर देते हैं। फिर दोनो सेनाओं के दोनो पक्ष अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर कुरूक्षेत्र मे एक दूसरे के सामने आ जाते है। युद्ध की स्थिति को देखने के लिए महर्षि व्यास धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान करना चाहते है पर, धृतराष्ट्र अपनी कुल की हत्या युद्ध मे अपनी ऑखो से नहीं देखना चाहते है किंतु युद्ध का सारा वृतांत अवश्य सुनना चाहते है। अत: महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि देकर कहा कि “ये संजय तुम्हे युद्ध का वृतांत सुनायेंगे। युद्ध की समस्त घटनाओं को ये प्रत्यक्ष देख सकेगे इनसे कोई भी बात छुपी नही रह सकेगी।
इस प्रकार संजय दिव्य दृष्टि के माध्यम से युद्ध की सारी घटन्नों को धृतराष्ट्र को सुनाते हैं..
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क्रमश:..
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10 टिप्पणियाँ
आगाज़ सही है।
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
गीता पर बहुत कुछ कहा गया है और् अनेको विद्वानों के विश्लेषण नेट पर भी मौजूद हैं। कोशिश की जाये कि इस स्तंभ में कुछ अलग हो।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है। भारतीय धर्म दर्शन को गहराई से समझना और प्रचार करना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है, बधाई
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन और आध्यत्म को गीता के माध्यम से बडी आसानी से जाना जा सकता है.. स्थायी स्तंभ की इस सुन्दर कडी के लिये अजय कुमार जी को बधाई
जवाब देंहटाएंएक सराहनीय प्रयास .... गीता को समझने में सहायता होगी .. परिचर्चा भी की जा सकती है ..
जवाब देंहटाएंajay ji
जवाब देंहटाएंnamaskar
main mohinder ji ki baat se sahmat hoon .. jeevan ke darshan ko jaanna hai to geeta ko antaraatma se samjhna honga ..aapke lekho ka intjaar rahenga , kyonki meri geeta ke arth me bahut ruchi hai
Meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
sabse pehle to shukriya kehna chahungi isko yaha hame padhne ka mauka diya..man ko shanti mili. adhyatam aur darshan ko darshata hua bahut asardaar sunder lekh hai...aage bhi intzar rahega.
जवाब देंहटाएंVimal Ajay ji.
जवाब देंहटाएंVandey
I am highly impressed by your interested subjects, This reflects your inner self. Please visit Kavita Kosh to see Geeta in verses in braj bhasha.
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