
रचें श्लेष वक्रोक्ति कवि, जिनकी कलम समर्थ..
एक शब्द के अर्थ दो, करे श्लेष-वक्रोक्ति.
श्रोता-वक्ता हों सजग, समझें न अन्योक्ति..
जहाँ पर एक से अधिक अर्थवाले शब्द के प्रयोग द्वारा वक्ता का एक अर्थ पर बल रहता है किन्तु श्रोता का दूसरे अर्थ पर, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है. इसका प्रयोग केवल समर्थ कवि कर पाता है चूँकि विपुल शब्द भंडार, उर्वर कल्पना शक्ति तथा छंद नैपुण्य अपरिहार्य होता है.
उदाहरण:
१.
हैं री लाल तेरे? सखी ऐसी निधि पाइ कहाँ?
हैं री खगयान? कह्यों हौं तो नहीं पाले हैं?
हैं री गिरिधारी? व्हें है रामदल मांहि कहुं?
हैं री घनश्याम? कहूँ सीत सरसाले हैं?
हैं री सखी कृष्णचन्द्र? चन्द्र कहूँ कृष्ण होत?
तब हँसि राधे कही मोर पच्छ्वारे हैं?
श्याम को दुराय चंद्रावलि बहराय बोली,
मोरे कैसे आइह जो तेरे पच्छवारे हैं?
लाल = पुत्र तथा रत्न, खगयान = ज्ञानवान तथा पक्षी, गिरिधारी = कृष्ण तथा हनुमान, घनश्याम = कृष्ण तथा बादल, कृष्णचन्द्र = कृष्ण तथा चंद्रमा, मोर पच्छवारे = कृष्ण तथा मेरे पक्षवाले,
२.
पौंरि में आपु खरे हरी हैं, बस हैं न कछू हरि हैं तो हरैवे..
वे सुनौ कीबे को है विनती, सुनो हैं बिनती तीय कोऊ बरैबे.
दीबे को ल्याए हैं माल तुम्हें, रघुनाथ ले आये हैं माल लरैबे.
छोडिये मान वे पा पकरें, कहें, पाप करें कहें अबस करैंबे.
हरि = कृष्ण तथा हारेंगे, विनती = प्रार्थना तथा बिना स्त्री के, माल = माला तथा सामान, पाप करै = पैर पकडें तथा पाप करें.
आगामी पाठ में हम मिलेंगे काकु वक्रोक्ति अलंकार से.
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12 टिप्पणियाँ
एक शब्द के अर्थ दो, करे श्लेष-वक्रोक्ति.
जवाब देंहटाएंश्रोता-वक्ता हों सजग, समझें न अन्योक्ति..
आभार सलिल जी।
क्या यह श्लेष अलंकार का उपभाग है?
जवाब देंहटाएंThanks sir.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
श्लेष और वक्रोक्ति दो अलग-अलग अलंकार हैं.
जवाब देंहटाएंश्लेष के ४ प्रकार शब्द श्लेष, अर्थ श्लेष, सभंग श्लेष तथा अभंग श्लेष हैं जबकि वक्रोक्ति के दो प्रकार श्लेष वक्रोक्ति तथा काकु वक्रोक्ति हैं.
श्लेष वक्रोक्ति में श्लेष तथा वक्रोक्ति दोनों के गुण-धर्म होना स्वाभाविक है पर यह श्लेष का उपभाग नहीं है.
आपके त्वरित उत्तर का धन्यवाद। सुबह आलेख पढा था तो यह प्रश्न मुझे भी था।
जवाब देंहटाएं"वक्ता का एक अर्थ पर बल रहता है किन्तु श्रोता का दूसरे अर्थ पर"
जवाब देंहटाएंआचार्य जी यह पंक्ति पूरी तरह समझ नहीं आयी बहुत देर से उदाहरण में भी समझने का यत्न कर रहा हूँ।
बहुत अच्छा आलेख, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनये उदाहरण, रुचिकर अलंकार, सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराधा- कौन तुम?
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण- गोपाल राधे!
राधा- गाय ले जाओ विपिन में!
श्रीकृष्ण- नहीं मैं घनश्याम राधे!
राधा- बरसिए सूखे विपिन में!
कोशिश करता हूँ संजीव सलिल जी वैसे आपनें कह ही दिया है कि प्रयोग केवल समर्थ कवि कर पाता है इस लिये मेरे सफल होने की उम्मीद कम ही है :)
जवाब देंहटाएंअनिल कुमार …
जवाब देंहटाएं"वक्ता का एक अर्थ पर बल रहता है किन्तु श्रोता का दूसरे अर्थ पर"
आचार्य जी! यह पंक्ति पूरी तरह समझ नहीं आयी.
अनिल जी!
आशय यह है की जब कहनेवाला किसी शब्द का प्रयोग एक अर्थ में करे किन्तु सुननेवाला उसका दूसरा अर्थ ग्रहण करे तो वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है. 'श्लेष' का अर्थ है चिपकाना- जब एक अर्थ के साथ दूसरा अर्थ चिपका हो. 'वक्रोक्ति' अर्थात कहने का विशिष्ट ढंग. कविता तभी होती है जब बात को ढंग विशेष से कहें.
उदाहरण:
आप कहें मैं अनिल (व्यक्ति ) हूँ. मैं समझूँ आप अनिल (वायु) हैं और उत्तर दूँ कि आप तो मेरे प्राणदाता हैं तो यह श्लेष वक्रोक्ति हुआ.
अनिल कहे: 'मुझसे मिलो.'
मैं पूछूँ: 'कैसे?, कहाँ?, तुम तो सदा अदृश्य.'
अनिल कहे: 'मैं मीत हूँ.'
मैं बोला: 'तुम जीवनदाता.'
प्रेमलता पांडे …
राधा- कौन तुम?
श्रीकृष्ण- गोपाल राधे!
राधा- गाय ले जाओ विपिन में!
श्रीकृष्ण- नहीं मैं घनश्याम राधे!
राधा- बरसिए सूखे विपिन में!
प्रेमलता जी!
आपने अनिल जी के प्रश्न का सम्यक उत्तर दिया धन्यवाद.
प्रेमलता के काम आ सलिल अकिंचन धन्य.
यहाँ प्रेमलता और सलिल दे दो अर्थ अलंकार विशेष हैं इस अलंकार कि चर्चा हम कर चुके हैं. पाठक इसे याद करें.
नंदन …
कोशिश करता हूँ संजीव सलिल जी वैसे आपनें कह ही दिया है कि प्रयोग केवल समर्थ कवि कर पाता है इस लिये मेरे सफल होने की उम्मीद कम ही है.
कथन: नंदन (पत्र लेखक)नहीं समर्थ.
उत्तर १.: नंदन (कृष्ण) सदा समर्थ?
उत्तर २.: नंदन (पुत्र) बिन सूना जगत.
नंदन जी! मेरा आशय मात्र यह है कि यह अलंकार आप जैसे सजग रचनाकार ही प्रयोग में ला सकते हैं.
यदि हम कहें
जवाब देंहटाएंलाल"किला" ढहने को इसबार
नहीं रहेगी माणिक "सरकार"
इसमें लाल किला और सरकार वामपंथी राज और दूसरा जो दिल्ली में है सरकार एक राज्य की दूसरा माणिक की जाति
इसमें कौन सा अलंकार है
कृपया मेरी इस लघु रचना में सहायता करें
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.