
दिन सारा निकले
सुख माँगें सम्पत्ति माँगें
सुख माँगें सम्पत्ति माँगें
अन्न का दाना भी न निगले
करूँ रोज ही करवा चोथ
करूँ रोज ही करवा चोथ
फिर भी वो ना पिघले
साँझ हुई कि रोज
साँझ हुई कि रोज
चाँद अब घर से निकले
रचनाकार परिचय:-
पी पी कर करे ताण्डव
सालासर में ६ नवम्बर, १९७३ को जन्मे राजाभाई कौशिक अजमेर के डी.ए.वी. कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आयुर्वेद की ओर उन्मुख हुये और इस क्षेत्र में सुयश प्राप्त किया।
वर्तमान में राजस्थान के चुरू में निवास कर रहे राजाभाई ने अनेक कविताएं, लेख, व्यंग्य आदि लिखें हैं और कई सम्मान प्राप्त किये हैं। आप एक अच्छे चित्रकार भी हैं।
वर्तमान में राजस्थान के चुरू में निवास कर रहे राजाभाई ने अनेक कविताएं, लेख, व्यंग्य आदि लिखें हैं और कई सम्मान प्राप्त किये हैं। आप एक अच्छे चित्रकार भी हैं।
चले दिन दिन शिव से मिलने
हे ईश्वर! इस घर को संभालो
हे ईश्वर! इस घर को संभालो
चलते चलते सूखे मे फिसले
तीज त्यौंहार होली दीवाली क्या
तीज त्यौंहार होली दीवाली क्या
दिन दिन फाके मे निकले
छलनी लिये छत पर खड़ी
छलनी लिये छत पर खड़ी
अब तो पसलियों से दम ही निकले
मुड़ मुड़ कर चन्दा देखे
मुड़ मुड़ कर चन्दा देखे
आँसू भी ओस बन बिखरे
चिड़िया भी दुखड़ा रोये मेरा
चिड़िया भी दुखड़ा रोये मेरा
करुणा के सागर से सूरज है निकले
हे चौथ माता तेरी तूँ ही जाने
हे चौथ माता तेरी तूँ ही जाने
मेरे तो पड़े रह गये चावल उबले
एक वर माँगू बस
एक वर माँगू बस
अब तो मेरा चाँद घर से न निकले
9 टिप्पणियाँ
Good Painting nice poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
कविता कमजोर है पर पेंटिंग जोरदार है
जवाब देंहटाएंपेंटिंग बहुत पसंद आयी।
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ पर सुन्दर प्रस्तुति राजाभाई कौशिक चित्र बहुत सजीले बनाते हैं। इनका पिछला चित्र जो साहित्य शिल्पी पर आया था मन होह गया था।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति, बधाई।
जवाब देंहटाएंsundar rachnaa badhaayee ho
जवाब देंहटाएंस्त्री दुख को व्यक्त करती सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता. एक मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंराजाभाई कौशिक जी को धन्यवाद!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.