साहित्य शिल्पी पर आयी इस ई-मेल नें चौंका दिया था। प्रेषक थे “मंजीत सिंह” और उन्होंनें अपना परिचय दिया था –एक चित्रकार जो साहित्यिक कृतियों और कविताओं पर पेंटिंग बना रहे हैं। आश्चर्यमिश्रित हर्ष यह जानकर हुआ कि मंजीत नें असाधारण काव्यकृतियों जैसे प्रसाद की कामायनी और दिनकर की उर्वशी आदि रचनाओं को भी अपने रंग-केनवास दिये हैं। मैंने तत्काल ही मंजीत जी को फोन मिलाया सामने से एक जिन्दादिल इंसान की विनम्रता से भरी आवाज थी। वे अपनी पेंटिंग प्रदर्शनी की तैयारी में व्यस्त थे और उस वार्ता के दौरान ही उन्होंने हमें 25 से 29 सितम्बर के मध्य “ओपन पाम कोर्ट, इंडिया हेबीटेट सेंटर, लोधी रोड, नई दिल्ली” आने का निमंत्रण दे दिया। हमें भी उनसे मुलाकात करने और उन्हे निकटता से जानने का इससे बेहतर अवसर कहाँ मिलता?
28 सितम्बर विजयादशमी थी। सपरिवार बाहर निकलने का यह एक अच्छा दिन भी था हमनें राष्ट्रकवि दिनकर की काव्यकृति उर्वशी पर आधारित पेंटिंग प्रदर्शनी को देखने का यह अवसर चुना। मैं तथा मेरी श्रीमति रितु रंजन, अभिषेक सागर तथा उनकी श्रीमति रचना सागर और अजय यादव; यानि कि हम पाँच; सुबह लगभग 10 बजे ही प्रदर्शनी स्थल पर पहुँच गये।
सुबह सुबह का वक्त, प्रदर्शनी स्थल पर अधिक भीड़-भाड़ नहीं थी।
हमनें सरसरी निगाह से प्रदर्शनी स्थल का मुआयना किया। वस्तुत: हम मंजीत जी की कृतियों का विवरण उनके द्वारा ही सुनना चाहते थे। इस बीच वे आये और बेहद आत्मीयता से हमारा स्वागत किया।
दिनकर जी की बडी सी तस्वीर जिसपर गेन्दे के फूल की माला चढायी गयी थी, प्रदर्शनी स्थल के मध्य स्थित स्तंभ पर लगायी गयी थी।

यह विचार ही स्वयं में अनूठा और नया है कि खंड़ काव्य उर्वशी पर पेंटिंग-श्रंखला बनायी जायें और कविता की पंक्तियों को सजीव किया जायें। उर्वशी जैसी अमर कृति के साथ मंजीत जी की कल्पनाओं नें न्याय किया था यह हमें प्रदर्शनी का प्रथमदृष्टया अवलोकन करते हुए ही लग गया था। अब हम मंजीत जी के साथ प्रदर्शनी देख रहे थे। वे हर पेंटिंग के सम्मुखे ले ला कर हमें दिनकर की कविता का आस्वादन कराते और फिर उन पंक्तियों के प्रकाश में अपने केनवास के रंगों के अर्थ समझाते। उर्वशी साकार हो उठी थी उसकी मनोभावनायें कविता की पंक्तियों से निकाल कर हरे-पीले-नीले-लाल जाने कितने रंगों में अभिव्यक्त हो रही थी। मंजीत जी कूची के जादूगर हैं। वे चटखी ले रंग बहुतायत में प्रयोग में लाते हैं संभवत: इस लिये कि कोई भी तस्वीर ध्यानाकर्षित किये बिना न रह जाये।
बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ कि मंजीत सिंह वर्तमान में सरकारी कर्मचारी हैं तथा पावर ग्रिड कॉरपोरेशन में कार्य कर रहे हैं। मंजीत समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं।चित्रकला की विधिवत शिक्षा उन्होंने नहीं ली यद्यपि बालभवन नई दिल्ली की श्रीमति सावित्री श्रीवास्तव का उन्हें मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त हुआ है। अर्थात कला स्वत:स्फूर्त होती है, स्वप्रेरणा से पनपती है। पेंटिंग के अलावा मंजीत संगीत संयोजन तथा कविता और कहानियों का लेखन भी करते हैं। मंजीत नें अनेकों प्रदर्शनिया राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की हैं तथा आपकी कलाकृतियाँ कई सरकारी प्रतिष्ठानों व निजी संस्थानों की गरिमा बढा रही हैं।
हमनें जब उनसे पूछा कि यह विचार आपने मन में किस तरह अवतरित हुआ कि महान काव्यकृतियों को रंग-केनवास दिये जायें तो उनका जवाब बेहद सधा हुआ था। मंजीत ने कहा कि कविता के प्रति मेरा रुझान मेरे लिये प्रेरणा बन गया। हमारे साहित्य में बहुत रस है और रंग है।
मंजीत कहते हैं कि हिन्दी साहित्य ही मेरी पेंटिंग के तत्व हैं और उसकी सेवा करना ही मेरी विचारधारा। मंजीत साहित्य और हिन्दी की उपेक्षा करने वालों को आड़े हाँथो लेते हैं तथा बातचीत में वे वर्तमान साहित्य के गिरते स्तर तथा लोगों की कम होती अभिरुचि के प्रति भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मंजीत एक अभियान के सर्जक हैं। वे हिन्दी साहित्याकाश के वर्तमान के तिमिर को रंगबिरंगा कर देने को उद्यत हैं। उनका सम्मान आवश्यक है, उन्हें और भी मंचों की आवश्यकता है।
मंजीत सिद्ध भी करते हैं कि किस तरह आज अच्छा साहित्य और अच्छी कला की कद्र कम हो गयी है और अश्लीलता और कूडा धड़्ल्ले से बेचा जा रहा है। प्रदर्शनी के आखिर में एक आधी बनी/ टेढी मेढी कूची से बनायी गयी पेंटिंग लगी थी। मंजीत बताते हैं कि इस पेंटिंग पर लोगों के विचार सुन कर मुझे आश्चर्य होता है कि क्या कला की परख रह भी गयी है? कोई इसे महान कृति बताता है ति कोई यह खडे मिनटो गुजार देता हौ और उसके अर्थ पर चर्चा करता है। मैं मुस्कुरा देता हूँ इस प्रसंशा पर लेकिन इसके पीछे का दर्द कोई नहीं समझ सकता।
मंजीत की यह पेंटिंग बडा सवाल छोड जाती है। यह प्रश्नचिन्ह केवल चित्रकारी और उसपर समझ से ही जुडा नहीं है यह सवाल कविता तक भी पहुँचता है। दिनकर क्यों काल जयी हैं और आज के लेखन की कोई जमीन क्यों नहीं शायद इसका उत्तर भी इस अबूझ-अधूरी पेंटिंग में ही अंतर्निहित है।
हमने इस अविस्मरणीय मुलाकात के लिये मंजीत जी का आभार व्यक्त किया।
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साहित्य शिल्पी के पाठको के सम्मुख हम न केवल “उर्वशी” अपितु “कामायनी” के अलावा भी मंजीत जी की पेंटिंग प्रस्तुत करते रहेंगे। चूंकि वे एक कवि भी हैं अत: साहित्य शिल्पी के स्तंभ “कविता-पेंटिंग” पर भी उनकी उपस्थ्ति रहेगी। स्वागत करें मंजीत सिंह का साहित्य शिल्पी पर....।
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21 टिप्पणियाँ
साहित्य शिल्पी की एक खासियत है इसपर मुलाकाते रुचिकर अंदाज में प्रस्तुत की जाती हैं उस पर चित्र रौनक बढाते हैं।
जवाब देंहटाएंमंजीत सिंह जी के बारे में जान कर यह खुशी हुई कि कोई इतनी गहरायी से काव्य को रंग देने के काम में लगा है। उन्हे धन्यवाद।
उर्वशी पर पेंटिंग यह विचार नया है। मंजीत जी बधाई बडा काम किया आपने।
जवाब देंहटाएंNice. A good move.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
इंटरनेट पर पहली बात एसी कलाओं को जगह देने में साहित्य शिल्पी ने सफलता हासिल की है। एसा उदाहरण और कहीं नहीं मिलता। मंजीत जी की नजर से उर्वशी देखने की प्रतीक्षा है लेकिन मैं धन्यवाद कहने में कंजूसी नहीं करूंगा
जवाब देंहटाएंअबूझ पेंटिंग वाला प्रसंग एक बडा सवाल है। मंजीत जी महान कार्य किया है, मील का पत्थर रखा गया है।
जवाब देंहटाएंउर्वशी पर पेंटिंग्स देखने की इच्छा बढ गयी है। रिपोर्ट अच्छी बनी है। मंजीत सिंह जी नें नयी सोच को अंजान दिया है।
जवाब देंहटाएंलगता है त्यौहार का मौसम जारी है, साहित्य शिल्पी नें अनुपम भेंट दी है। मंजीत जी की पेंटिंग्स की प्रतीक्षा है। मैं उत्सुक हूँ कि उर्वशी जैसे जटिल काव्य को पेंटिंग कैसे प्रस्तुत कर सकती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास।
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य ही जिनकी पेंटिग के विषय है वो व्यक्ति स्वयं कितनी गहराई लिये होगा लगे रहिये मंजीत जी समय आपको अवश्य समझेगा।
जवाब देंहटाएंManjeet Ji ko badhai!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रयास है। इसके लिए हमारी ओर बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुन्दर चित्रों से सजी रेपोर्ट देख और मंजीत सिहं जी की बहुमुखी प्रतीभा के बारे में जान कर बहुत ही अच्छा लगा. व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण मैं उनसे इस मुलाकात में शामिल न हो सका इसका अफ़सोस रहेगा
जवाब देंहटाएंMANJEET JEE KEE JITNEE PRASHANSAA
जवाब देंहटाएंKEE JAAYE UTNEE HEE KAM HAI.UNSE
SHRI RAJIV RANJAN PRASAAD KEE
MULAAKAAT ACHCHHEE LAGEE HAI.
मंजीत जी की पेंटिंग्स से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रपट!
जवाब देंहटाएंएक और सुंदर संयोजन। अद्भुत। मेरी हािर्दक बधाई पहुंचांये मनजीत जी तक
जवाब देंहटाएंसूरज
बहुत सुंदर आयोजन है। बधाई!
जवाब देंहटाएंराजीव जी,
जवाब देंहटाएं"उर्वशी" खंड - काव्य पर आधारित मंजीत जी के चित्रों को साहित्य - शिल्पी के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाने के लिए हम आपके आभारी हैं. एक उच्चकोटि के चित्रकार से परिचय कराने के लिए धन्यवाद. कला के साथ- साथ कलाकार को भी उजागर करने का आपका प्रयास श्रेयस्कर है.
----किरण सिन्धु.
मंजीत जी का साहित्य-शिल्पी पर बहुत-बहुत स्वागत है।
जवाब देंहटाएं-विश्व दीपक
bahut achcha lekh
जवाब देंहटाएंmanzeet jee ke baare mein jaankar bahut achcha laga
sahitya shilpi ko bahut bahut dhanyvaad
साहित्य और कला दोनों का संगम देखकर
जवाब देंहटाएंमन्त्र-मुग्ध सी हो गयी हूँ...
मंजीत जी को बधाई और शुभकामनाएं...
भविष्य में और भी बहुत कुछ देखने को मिले....और आभार साहित्यशिल्पी का..
गीता
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