
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।
जब विशेष ध्वनि कंठ की, देती दूजा अर्थ.
तभी काकु वक्रोक्ति हो, समझें-लिखें समर्थ..
'सलिल' काकु वक्रोक्ति में, ध्वनित अर्थ कुछ अन्य.
करे कंठ की खास ध्वनि, जो कवी रचे अनन्य..
जहाँ पर कंठ की विशेष ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ ध्वनित होता है वहाँ काकु वक्रोक्ति होती है..
उदाहरण:
१.
भरत भूप सियराम लषण
बन सुनि सानंद सहौंगो.
पुर परिजन अवलोकि
पुर परिजन अवलोकि
मातु सब सुख सानंद लहौंगो..
यहाँ पर भरतभूप, सानंद और संतोष शब्दों का उच्चारण काकुयुक्त होने से विपरीत अर्थ निकलता है.
यहाँ पर भरतभूप, सानंद और संतोष शब्दों का उच्चारण काकुयुक्त होने से विपरीत अर्थ निकलता है.
२.
बातन लगाइ सखाँ सों न्यारो कै,
आजु गह्यो वृषभानकिशोरी.
केसरी सों तन मंजन कै दियो
केसरी सों तन मंजन कै दियो
अंजन आँखिन में बरजोरी..
हे रघुनाथ! कहाँ कहों कौतुक
हे रघुनाथ! कहाँ कहों कौतुक
प्यारे गोपाल बनाइ कै गोरी.
छोड़ी दियो इतनो कहि कै,
छोड़ी दियो इतनो कहि कै,
बहुरो फिरि अइयो खेलन होरी..
यहाँ 'बहुरो फिरि अइयो' में काकु ध्वनि होने के कारण अर्थ होता है कि अब कभी न आओगे.
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यहाँ 'बहुरो फिरि अइयो' में काकु ध्वनि होने के कारण अर्थ होता है कि अब कभी न आओगे.
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11 टिप्पणियाँ
Thanks
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
जब विशेष ध्वनि कंठ की, देती दूजा अर्थ.
जवाब देंहटाएंतभी काकु वक्रोक्ति हो, समझें-लिखें समर्थ..
कठिन है प्रयोग में।
क्या यह केवल उच्चारण अथवा ध्वनि पर ही आधारित है शब्द से और उसमें निहित अर्थ के अनेकार्थी होने से इसका कोई संबंध नहीं?
जवाब देंहटाएंएक और नये अलंकार से परिचित कराने का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे के इस दूत को नमन इन की रचनाओं पर प्रतिक्रया करने लायक माँ का वरदान मुझे नही मिला है । इनको बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी से सहमत। इस आलेख-श्रंखला से ज्ञान वर्धन बहुत हुआ है। प्रतीक्षा रहती है।
जवाब देंहटाएंआभार सलिल जी। संग्रहणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत अधिक प्रयोग देखने को नहीं मिलता लेकिन अलंकार रोचक है।
जवाब देंहटाएं"salilji"mere mamaji hai,Aadarniya mamaji,kaku vakrokti me dhwanit arth kavya rachna se shabd-gyan me gagar me sagar bharne jaisa hai,aapki ye rachna gyanvardhak hai...meri srijan_kaamnaye..badhaii..rajeev saxena,katni.
जवाब देंहटाएंगूढ विश्लेषण लिये लेख..यदि किसी एक छंद का पूर्ण रूपान्तर्ण कर अर्थ समझायें तो सभी के लिये अधिक ग्राहय रहेगा
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.