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चांद पानी पानी क्‍यों हुआ? [व्यंग्य] - विनोद कुमार पांडेय

चांद पर पानी और ओबामा को शांति के लिए नोबेल अभी तक सुर्ख सुर्खियां हैं। चंदा मामा के घर पर पानी का मिलना जितनी खुशी वाली बात है उतनी ही यह भी कि इसी बहाने चांद पर आवाजाही बन जाएगी। हमारे गाँव की पंचायत की बैठक में इंद्र भगवान की दोहरी नीतियों से सताए ग्रामीणों की चिल्‍ल पुकार सुनाई दे रही थी। गांव में नहर का कनैक्‍शन तो मंत्री जी ने अपने कर कमलों से कर दिया है परन्‍तु उसमें अभी तक पानी चालू नहीं हुआ है इसलिए अगले चुनाव तक इसका इंतजार करने के बजाय चांद पर ट्यूबबेल खोद लेना चाहिए, सबकी समस्या सुलझ जाएगी, थोड़ा दूर है,पर एक बार हो गया ना समझो की सब प्राब्लम खल्लास,एकदम शुद्ध जल की सप्लाई डाइरेक्ट चाँद से, खूब जम कर खेती करो और भैया-बहिने पिएं भी।

अब रही बात सरकारी आदेश की तो भाई किस बात की आदेश जब अपना आसमान है, तो चंदा मामा भी अपने ही न हुए और अगर आदेश की बात होगी भी पर तो वही चल कर बात करेंगे । अपनी मम्‍मी जी से मामा पर सिफारिश लगवा लेंगे। दूसरी सृष्टि है पता नहीं वहाँ की सरकार हमारी बात बिना किसी शर्त पर मान जाए और बिना घूसखोरी के ही हमारा ट्यूबबेल का बिल मम्‍मीजी के कहने से ही पारित हो जाए और फिर सरसरा कर पानी डाइरेक्ट चाँद से गाँव में उतरे। बहुत ही आलीशान और भव्‍य होगा वो पल।

गाँव शहरों में भी थोड़ा बहुत पढ़े लिखे टाइप के लोग रोजाना आधे घंटे इसी घटना से संबंधित ऩफा नुकसान पर प्रवचन देते घूम रहे हैं। फिर जाकर शाम को बिटिया से पूछते हैं कि बेटी ये चाँद और पानी का क्या मामला है, जिस दिन से कांसेप्‍ट क्लियर हुआ है। प्रवचन की टाइमिंग आधे घंटे और बढ़ गई है।

इस सुखदायक समाचार से शहरी तो हर्ष से सराबोर ही हो गए हैं। उन्‍हें लगता है कि इत्तिफ़ाक़ से कहीं भीड़ में इस मुद्दे पर चर्चा हो गयी तो इनकी तो बल्ले-बल्ले, लोग कहेंगे कि भाई बड़ा अपडेट आदमी है,दूसरे भारतीयों की तरह केवल रोटी नमक के ही जुगाड़ में नही रहता, कुछ सम-सामयिक घटनाक्रम में भी रूचि है ,वैसे भी इस खबर से शहर वालों की खुशी बहने का रहस्‍य यह भी है क्योंकि पानी के दर्शन इन्हें सुबह और शाम ही हो पाते है और वो भी जब विद्युत विभाग की मेहरबानी रहे। अन्यथा तो ड्यूटी वाले लोग बिना नहाए ही ऑफीस को निकल लेते है,अब और ये कर भी क्या सकते है,गाँव में तो फिर भी लोग लोटा बाल्टी लिए और चल दिए किसी पड़ोस के हैंडपम्प या कुएँ पर और ये भी संभव नही हुआ तो किसी तालाब या नदी में डुबकी मारकर सुबह सार्थक बना लेते हैं.

चाँद पर पानी मिला, दिल को खुशी से भिगोने वाला समाचार है पर एक कंफ़्यूजन मेरे माइंड में उछाल मार रहा है कि पानी अब क्यों मिला,पहले कहां रहा, क्या बादल धरती से छल कपट कर चाँद पर पानी सप्लाई करता था, या अब धरती पर इंसान की गिरी हुई करतूतों को देखकर चाँद पानी पानी हो गया है।

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12 टिप्पणियाँ

  1. विनोद जी आपका ये व्यंग उच्च कोटि का है....बधाई

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  2. आपमें एक अच्छे व्यंग्यकार होने की अपार संभावनायें निहित हैं, व्यंग्य लेखन जारी रखें।

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  3. विनोद जी सही हैअब धरती पर इंसान की गिरी हुई करतूतों को देखकर चाँद पानी पानी हो गया है। बहुत सुन्दर व्यंग है धन्यवाद और शुभकामनायें

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  4. विनोद जी
    लगता है चंदा मामा भी नेताओं की चाल चलने लगा है... तभी तो पानी का लोभ दे कर बुला रहा है ... ताकि आबाद हो सके... उसे यह नहीं पता.. वहां मानव अगर जा बसा तो क्या क्या गुल खिलायेगा... मतलब मामा की छाती पर मूंग दलेगा :)

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  5. सामयिक विषय के कारण व्यंग्य असरदार लग रहा है।

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  6. bhut jor se lge huye hain chand se pani layenge
    chand pe ja kr naino botl men pani bhr layenge
    lakh rupye ki botl hogi lain bhut lmbi hogi
    ek arb ki aabadi men kis ki pyas bujhayenge

    chanda ke pani men phle nmbr neta ka hoga
    fir apne sb bhai bhtije aur beta pota hoga
    us ke bad swt hi nmbr chmchon ka aa jayega
    jnta ko to ese hi bs pyasa hi mrna hoga

    ydi isi paise se khare pani ko mithha krte
    apne kuch aaram chhod kr janta ki seva krte
    to dhrti hi amrit deti sb ki pyas bujha deti
    pr jnta ke liye hmatre neta aisa kyon krte
    dr.ved vyathit

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  7. WAAH ...BAHUT BAHUT LAJAWAAB ! Aapke sadhe hue kalam ne hansa hansakar hi bahut kuchh gambhirta se sochne ko vivash kar diya...

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  8. वाह !
    आनन्द आ गया,,,,,,,,,,,,,,,

    आलेख की धार ..असरदार है..........

    अभिनन्दन आपका !

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  9. उत्कृष्ट व्यंग्य के लिए बधाई आपको!!

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