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कौशिश यूँ ही की थी, मेहनत यूँ ही की थी [दो गज़लें]-प्राण शर्मा

कौशिश यूँ ही की थी, मेहनत यूँ ही की थी
एक पुरानी फटी रजाई मैंने सी थी

रचनाकार परिचय:-

प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं।
आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।

क्या बतलाऊँ कैसे मेरे दिन गुज़रे थे
तेरे हाथों प्रेम -सुधा जब मैंने पी थी

तेरा ये दीवाना बतला क्यों न ठहरता
पीछे से आवाज़ जो तूने मुझको दी थी

लौट आया मैं घर को अपनी संशयाओं में
इक बिल्ली मेरे रस्ते को काट गयी थी

भेद किसी से क्या करती सावन की बदली
मेरे आँगन पर भी वो खुलकर बरसी थी

वो इक शख्स कि जिसकी भरपाई मुश्किल है
दुनिया कितनी सुन्दर उसके जीते - जी थी

मेरी खुशी में यूँ तो सबको खुशी थी लेकिन
इतनी नहीं थी जितनी मुझको " प्राण" खुशी थी

------------------

सागर की तेज़ लहरों में खोने नहीं दिया
हिम्मत ने मेरी मुझको डुबोने नहीं दिया

अखलाक हो तो ऐसा कि जिसने मुझे कभी
काँटा किसी की राह में बोने नहीं दिया

मैं भूल सकता हूँ भला कैसे तेरा वो साथ
बारिश में तूने मुझको भिगोने नहीं दिया

कुछ हम भी काम कर न सके जिंदगानी में
कुछ भाग्य ने भी काम को होने नहीं दिया

रहबर नहीं कहूँ तो तुझे और क्या कहूँ
तूने ही मुझको भीड़ में खोने नहीं दिया
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23 टिप्पणियाँ

  1. सागर की तेज़ लहरों में खोने नहीं दिया
    हिम्मत ने मेरी मुझको डुबोने नहीं दिया

    उस्ताद शायर की ग़ज़ले हैं उम्दा तो होनी ही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या बतलाऊँ कैसे मेरे दिन गुज़रे थे
    तेरे हाथों प्रेम -सुधा जब मैंने पी थी
    तेरा ये दीवाना बतला क्यों न ठहरता
    पीछे से आवाज़ जो तूने मुझको दी थी

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...पढ़ कर अच्छा लगा..धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. एक से बढ कर एक ग़ज़ले। बधाई प्राण जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. भेद किसी से क्या करती सावन की बदली
    मेरे आँगन पर भी वो खुलकर बरसी थी

    वो इक शख्स कि जिसकी भरपाई मुश्किल है
    दुनिया कितनी सुन्दर उसके जीते - जी थी

    सागर की तेज़ लहरों में खोने नहीं दिया
    हिम्मत ने मेरी मुझको डुबोने नहीं दिया

    रहबर नहीं कहूँ तो तुझे और क्या कहूँ
    तूने ही मुझको भीड़ में खोने नहीं दिया

    प्राण जी की ग़ज़लों की प्रतीक्षा रहती है, उच्च कोटि के ख़्याल और विचार।

    जवाब देंहटाएं
  5. Shri Pran sharma ji ki har ek gazal mein kuch n kuch naya rasayan hota hai. shabdavali, soch ke tane bane, lafzon ka bejod istemaal ..bahut khoob

    भेद किसी से क्या करती सावन की बदली
    मेरे आँगन पर भी वो खुलकर बरसी थी
    ab tak yeh bhed nahin jaan paayi ki ye kamal ....
    Devi Nnagrani

    जवाब देंहटाएं
  6. ग़ज़ल हिन्दी की विधा भी है यह बात पूरे दावे के साथ प्राण शर्मा जी की ग़ज़ले कह पाती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्मीद भरी ग़ज़लें। बहुत बहुत धन्यवाद प्राण जी एसी सुन्दर रचनाओं के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  8. सूरज के आगे दीप रखने वाली बात है प्राण जी की अध्भुत रचनाओं पर मेरे जैसे व्यक्ति का कुछ कहना।

    जवाब देंहटाएं
  9. लौट आया मैं घर को अपनी संशयाओं में
    इक बिल्ली मेरे रस्ते को काट गयी थी

    वो इक शख्स कि जिसकी भरपाई मुश्किल है
    दुनिया कितनी सुन्दर उसके जीते - जी थी
    *****
    अखलाक हो तो ऐसा कि जिसने मुझे कभी
    काँटा किसी की राह में बोने नहीं दिया

    रहबर नहीं कहूँ तो तुझे और क्या कहूँ
    तूने ही मुझको भीड़ में खोने नहीं दिया

    प्राण साहब की ग़ज़लें पढ़ कर टिपण्णी नहीं की जा सकती सिर्फ सर झुका कर नमन ही किया जा सकता है..ऐसी सादगी से गहरी बात कहने वाले बहुत कम हैं...बारम्बार नमन है उनकी लेखनी को...इश्वर उन्हें सदा स्वस्थ रखे...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह..... प्राण जी, अभिभूत हो गया मैं तो.... वाह..

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  11. प्राण जी केवल ग़ज़ल के ही माहिर नहीं हैं, उनकी छंदबद्ध और छंदमुक्त कवितायेँ, कहानियां, लघुकथाएं और समीक्षाएं भी पाठक के मस्तिष्क पटल पर अमिट सी छाप छोड़ जाती है.
    यहाँ दोनों ही ग़ज़लों में से कोई एक या दो शेर ढूढ़ते हैं तो पूरी ग़ज़ल बार बार सामने आ जाती है. दोनों ग़ज़लें निहायत ही खूबसूरत हैं, भाषा की सादगी के जरिये गहरी बातों का इज़हार जो बिना किसी पेचीदगी के दिल में उतर जाती है.
    यह कहे बिना नहीं रहा जाता की वे ग़ज़ल सिखाने में अदम्य परिश्रम कर रहे हैं - यह साहित्य-सेवा साहित्य के इतिहास में विशेष रूप से दर्ज किया जाएगा.
    साहित्य-शिल्पी से अनुरोध है कि समय समय पर उनके मुक्तक संग्रह 'सुराही' के कुछ मुक्तक भी साहित्य-शिल्पी पर देते रहें.
    महावीर शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  12. भेद किसी से क्या करती सावन की बदली
    मेरे आँगन पर भी वो खुलकर बरसी थी

    वो इक शख्स कि जिसकी भरपाई मुश्किल है
    दुनिया कितनी सुन्दर उसके जीते - जी थी

    पहली रचना में से ये दोनों शेर मैंने संजो कर रख लिए हैं...पर दूसरी ग़ज़ल में से किसे चुनुं और किसे छोदुं समझ ही नहीं आया...

    लाजवाब गजल ...एकदम लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं
  13. प्राण भाई की ग़ज़लों का इंतज़ार रहता है,
    और मेरे जैसे नौसिखियों को सीखने का भी मौका मिलता है.

    कौशिश यूँ ही की थी, मेहनत यूँ ही की थी
    एक पुरानी फटी रजाई मैंने सी थी

    भेद किसी से क्या करती सावन की बदली
    मेरे आँगन पर भी वो खुलकर बरसी थी

    सरल सादा भावों के साथ अभिव्यक्ति बहुत गंम्भीर...
    बधाई--बहुत खूब......

    जवाब देंहटाएं
  14. ांअदरणीय प्राण भाई साहिब की गज़ल पर मैं क्या टिप्पणी दे सकती हूँ मैं तो उन से सीख रही हूँ गज़ल कहनी।उन की गज़लें पढ कर मुझे नही लगता कि मैं कभी गज़ल कह सकूँगी। इतनी सुन्दर गज़लें कहते हैं कि हैरान हूँ बहुत खूब लाजवाब दिल चाहता है कि कुछ शेर लिखूँ जो अच्छे लगे मगर ये फैसला ही नहीं कर पा रही क्यों कि मुझे तो सभी शेर बहुत अच्छे लगे हैं उन्हें बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  15. तेरा ये दीवाना बतला क्यों न ठहरता
    पीछे से आवाज़ जो तूने मुझको दी थी
    लौट आया मैं घर को अपनी संशयाओं में
    इक बिल्ली मेरे रस्ते को काट गयी थी

    kya sunder likha hai
    puri gazal sunder hai aap ki gazal ki tarif me kuchh bhi kahna suraj ko diya dikhana hai
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  16. ग़ज़ल पितामह की दोनों ही गज़लें अपने आप में मुकम्मल हैं वाकई मैं नीरज जी से सहमती रखता हूँ के इनकी गज़लें पढ़कर कोई क्या टिपण्णी करेगा सिर्फ नमन की किया जा सकता है... ये खुद मने हुए शाईर हैं ... इनकी दोनों ही ग़ज़लों से बहुत कुछ सिखने को मिलता है पहली ग़ज़ल में जिस तरह से काफिये का निर्वाह किया गया है वो पढ़ते ही बन रहा है ... आखिर यही तो उस्तादों का कमाल है ... साहित्य शिल्पी को उनकी गज़लें पढ़वाने के लिए भी बहुत बहुत बधाई...

    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  17. आपकी हर गज़ल, हर कहानी, हर लेखनी एक नई कशिश पैदा कर जाती है और वही आज हुआ:

    सागर की तेज़ लहरों में खोने नहीं दिया
    हिम्मत ने मेरी मुझको डुबोने नहीं दिया

    -कितनी जबरदस्त बात उठ के आई है इस शेर में...हर शेर एक नया अंदाज दे रहा है.

    आपको नमन करता हूँ... आशीर्वाद बनाये रखियेगा.

    जवाब देंहटाएं
  18. आदरणीय महावीर जी का कथन बिल्कुल सही है कि प्राण जी बहु विधाओं पर सफलता पूर्वक अपनी लेखनी को सर्थकता प्रदान करते हैं. उनकी गज़लें हमें सोचने के लिए विवश कर देती हैं.

    दोनों ही गज़लें उल्लेखनीय हैं.

    चन्देल

    जवाब देंहटाएं
  19. कुछ हम भी काम कर न सके जिंदगानी में
    कुछ भाग्य ने भी काम को होने नहीं दिया

    रहबर नहीं कहूँ तो तुझे और क्या कहूँ
    तूने ही मुझको भीड़ में खोने नहीं दिया

    जवाब देंहटाएं
  20. कुछ हम भी काम कर न सके जिंदगानी में
    कुछ भाग्य ने भी काम को होने नहीं दिया

    रहबर नहीं कहूँ तो तुझे और क्या कहूँ
    तूने ही मुझको भीड़ में खोने नहीं दिया

    Yah do Sher sabse adhik pasand aaye!
    Khoobsoorat Gazhalein. Bhadhai !

    जवाब देंहटाएं
  21. खराब स्‍वास्‍थ्‍य के कारण देर से आकर टिप्‍पणी कर रहा हूं । प्राण साहब को पढ़ना हर बार एक निराला अनुभव होता है । इसलिये भी क्‍योंकि वे हर बार कुछ नये तरीके से बात करते हैं । बाज तो ये हा रहा है कि हर शायर की नई ग़ज़ल उसकी ही किसी पुरानी ग़ज़ल का विस्‍तार नजर आती है । किन्‍तु प्राण साहब की ग़ज़लें हर बार नये रूप में आती हैं । एक नये रंग से हर बार परिचय मिलता है ।
    वो इक शख्स कि जिसकी भरपाई मुश्किल है
    दुनिया कितनी सुन्दर उसके जीते - जी थी
    व्‍यक्तिगत रूप से मुझे इस शेर ने महात्‍मा गांधी की याद दिला दी । हर किसी को ये शेर किसी न किसी की याद दिलायेगा । ये एक अलग प्रकार की कहन है जिसमें कि शेर तो एक है लेकिन हर सुनने वाला उसको अपने अंदाज से लेगा । इस प्रकार के शेर कम देखने को मिलते हैं । हम सबकी दुनिया किसी न किसी के कारण सुंदर होती है और उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता है । ग़ज़ल का शेर है ये । साहित्‍य शिल्‍पी को एक अनूठी ग़ज़ल सुनवाने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  22. आदरणीय प्राण भाई साहब ,
    नमस्ते,
    आपने जब भी कहा, जो भी कहा ,
    एक ख़ास अंदाज़ में कहा है
    जिसे पढ़ते ही , बात सीधे मन में उतरी है
    यही एक काबिल रचनाकार की खूबी होती है
    आप बस यूं ही लिखते रहें तथा साहित्य शिल्पी व दुसरे मंचों से हम आपको सुनते रहें
    शुभकामना व सादर स्नेह सहित
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं

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