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अभिषेक तिवारी "कार्टूनिष्ट" ने चम्बल के एक स्वाभिमानी इलाके भिंड (मध्य प्रदेश्) में जन्म पाया। पिछले २३ सालों से कार्टूनिंग कर रहे हैं। ग्वालियर, इंदौर, लखनऊ के बाद पिछले एक दशक से जयपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ कर आम आदमी के दुःख-दर्द को समझने की और उस पीड़ा को कार्टूनों के माध्यम से साँझा करने की कोशिश जारी है.....
7 टिप्पणियाँ
वेसे भी वास्तविकता के दर्द को जबतक कुची सामने नहीं लाकर रखती पूर्णतया फिर उसमे मजा नहीं आता और उसमे भी कार्टून की जहां तक बात की जाये तो यह और भी मुश्किल काम होता है क्युनके इसमें आप बहुत ही कम लकीरें खीच कर सब कुछ दिखाने के लिए बाध्य होते है जैसे के हमारे ग़ज़ल लेखन में छोटी बह'र की ग़ज़ल के साथ हमें पूर्णतया सभी चीजो का ख़याल रखना पड़ता है ... इनकी कुची ने भी वही सब कुछ किया है बहुत पसंद आया यह कार्टून...आभार और बधाई भी
जवाब देंहटाएंअर्श
बहुत बढि़या अभिषेकजी। आभार और बधाई एक साथ।
जवाब देंहटाएंधरती पर तो पानी रहा नहीं चांद से इम्पोर्ट ही सही
जवाब देंहटाएंcartoon thikthak hai
जवाब देंहटाएंसच में अभिषेक जी
जवाब देंहटाएंआज़ादी के इतने दिनों बाद भी हमारी महिलाओं को पानी चाँद से ही लाना पड़ता है ......
वाह ..... ! मर्म और व्यंग्य का अनूठा सम्मिश्रण
dharti par to pani bhut ganda hi chuka hai , ab saph pani ke liye to chand par hi jana pdega kyoki vhan pani men milavt krne vala abhi tak koi to nhin hai .
जवाब देंहटाएंधीरे धीर इंसान चंद्रमा पर भी पांव पसार रहा है...वहां भी पानी जल्द ही खत्म हो जायेगा ;)
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.