
रोशनी हर तरफ ही लुटाते रहें
लौ से अपनी सबको लुभाते रहें
हर किसीकी तमन्ना है अब साथियो
दीप जलते रहें , झिलमिलाते रहें
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ग़ज़लें
-1-
क्या खाक होगा खेत किसी का हरा-हरा
टपका है आसमान से पानी जरा-जरा
प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं।
आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' - दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
इस दौर का है शख्स कुछ ऐसा डरा-डरा
चेहरा बुझा -बुझा सा है दिल है मरा-मरा
वो बात सबकी दोस्तो मानेगा क्यों भला
सावन के अंधे को दिखे सब कुछ हरा-हरा
कब तक रहेगा ये किसी वीराने की तरह
खुशियों से हो कभी तो मेरा घर भरा-भरा
तंग आ चुका है यूँ तो बशर अपने खोट से
लेकिन कभी तो उसका मिले मन खरा -खरा
-2-
गीली लकडी थी गीली थी दिया सिलाई
हम ही जाने हमने कैसे आग जलाई
खुश रहने की आदत डालो , सुखी रहोगे
माना , सुख थोड़े हैं,दुःख ज़्यादा हैं भाई
कौन उधार नहीं लेता है इक--दूजे से
शख्स वही जो कर दे चुकता पाई - पाई
रिश्तों की जंजीरों से जकड़े थे हम तो
कैसे करते अपनों से हम हाथापाई
बात तभी बनती है मन को छूने वाली
जैसा सुन्दर घर हो वैसी हो पहुनाई
अपना-अपना " प्राण" तजुर्बा है दुनिया का
कोई कहे आँखों देखी कोई सुनी - सुनाई
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26 टिप्पणियाँ
दीपावली का पावन दिन और गुरुदेव प्राण साहब की ग़ज़ल याने सोने पर सुहागा...दिवाली पर बहुत खूबसूरत तोहफा दिया है आपने रंजन जी...बहुत बहुत शुक्रिया. दोनों ग़ज़लें सीधे दिल में समां गयीं हैं. कुछ शेर तो ऐसे है की अगर गाँठ बाँध लें तो जीवन में हर्षो उल्लास की सदा बरसात होती रहे...जीवन दर्शन देने वाली इन ग़ज़लों के लिए प्राण साहब का सादर चरण स्पर्श.
जवाब देंहटाएंनीरज
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी से साहित्य जगत जगमगाए।
लक्ष्मी जी आपका बैलेंस, मंहगाई की तरह रोड बढ़ाएँ।
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पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।
गीली लकडी थी गीली थी दिया सिलाई
जवाब देंहटाएंहम ही जाने हमने कैसे आग जलाई
नायाब ग़ज़लें।
HAPPY DIWALI. NICE MUKTAK AND GAZALS
जवाब देंहटाएंALOK KATARIA
MUKTAK KEE DOOSREE PANKTI MEIN
जवाब देंहटाएंAAYE SHABD " SABKO " KO " SABHEEKO"
KRIPYA PADHIYE.
DEEWALEE KE SHUBH AVSAR PAR
SABKO BADHAAEE.
इस दौर का है शख्स कुछ ऐसा डरा-डरा
जवाब देंहटाएंचेहरा बुझा -बुझा सा है दिल है मरा-मरा..... आज की ज़िन्दगी किस कदर प्रत्यक्ष आपकी ग़ज़ल में अपना हाल सुना रही है,....यूँ ही नहीं लोग आपको नमन करते !
............
खुश रहने की आदत डालो , सुखी रहोगे
माना , सुख थोड़े हैं,दुःख ज़्यादा हैं भाई..........अगर उसे भी खो दिया,तो क्या शेष रह जायेगा........
आपकी कलम को सरस्वती का वरदान है,
बहुत ही शानदार ग़ज़ल..........
इस दौर का है शख्स कुछ ऐसा डरा-डरा
जवाब देंहटाएंचेहरा बुझा -बुझा सा है दिल है मरा-मरा
आदरणीय प्राण जी
उपरोक्त पंक्तियों में आज के वक्त की वास्तविकता छुपी हुई है. दोनों गज़लें पढ़ गया और दोनों ने ही प्रभावित किया.
दीपावली के शुभ अवसर पर साहित्य शिल्पी परिवार और मित्रों को बधाई. प्राण जी को इन गज़लों और दीवाली - दोनों की ही बधाई.
सादर
चन्देल
राजीव जी के लिए ---
साहित्य शिल्पी के टेम्प्लेट में परिवर्तन से error दिखाता है और पेज खुलने में बहुत वक्त लगता है. क्या कारण है ? कृपया इस ओर ध्यान देंगे.
चन्देल
बडे उम्दा शेर .....बेहतरीन .....दीपावली की मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंसब से पहले तो आपको दीपावली की शुभकामनायें। इस पावन दिवस पर हरी भरी सी गज़ल के लिये धन्यवाद गज़ल के साथ सुन्दर संदेश भी। आपकी गज़ल पर कुछ कहने लायक शब्द मेरे पास है नहीं ये तो आप अच्छी तरह जानते हैं मगर जो इनके भाव हैं वो दिल को छू गये
जवाब देंहटाएंइस दौर का है शख्स कुछ ऐसा डरा-डरा
चेहरा बुझा -बुझा सा है दिल है मरा-मरा....
आज के समय का एक बडा सच चन्द शब्दों मे कह दिया और्
बात तभी बनती है मन को छूने वाली
जैसा सुन्दर घर हो वैसी हो पहुनाई
अपना-अपना " प्राण" तजुर्बा है दुनिया का
कोई कहे आँखों देखी कोई सुनी - सुना
आपके तज़ुर्बे ज़िन्दगी के सच हैं लाजवाब गज़लें और मुक्तक है बहुत बहुत बधाई आप सब को दीपावली की शुभकामनायें
आदरणीय प्राण जी
जवाब देंहटाएंसबसे पहले चरण स्पर्श .
आपको और आपके परिवार को ढेर सारी दीपावली की शुभकामनये .
आपका मुक्तक तो दिल पर छा गया सर
मुझे ये दो शेर बहुत गहरे तक छु गए ..
कब तक रहेगा ये किसी वीराने की तरह
खुशियों से हो कभी तो मेरा घर भरा-भरा
और
खुश रहने की आदत डालो , सुखी रहोगे
माना , सुख थोड़े हैं,दुःख ज़्यादा हैं भाई
सच तो यही है की अगर हम खुश रहने की आदत दाल दे तो ख़ुशी हमारे संग ही रहेंगी ..
after all happiness is a state of mind .
बहुत ही अच्छी गजले है सर.. हमेशा की तरह आपका असर दिल तक पहुचाती हुई ..
ढेर सारी मीठी मीठी बधाई ...
मेरा प्रणाम स्वीकार करे..
आपका
विजय
आदरणीय प्राण शर्मा जी की साहित्य शिल्पी पर इस बार बहुत विलम्ब से उपस्थ्ति हुई लेकिन इसे कहते हैं दुरुस्त आयद। प्राण जी की ग़ज़लें जिस मुहावरे दार भाषा में प्रस्तुत होती हैं यकीनन हिन्दी और उर्दू का भेद मिटा देती हैं। यह विशिष्ठ है -
जवाब देंहटाएंवो बात सबकी दोस्तो मानेगा क्यों भला
सावन के अंधे को दिखे सब कुछ हरा-हरा
उस्ताद शायर वे अपनी प्रयोगधर्मिता के कारण ही जाने जाते हैं। कहाँ मिलते हैं एसे गहरे शेर-
गीली लकडी थी गीली थी दिया सिलाई
हम ही जाने हमने कैसे आग जलाई
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
प्राण साहब की दोनों ग़जलें प्रभाव छोड़ती हैं। दीपावली की शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसुभाष नीरव
प्राण जी, आपके मुक्तक ने ही ऐसा मुग्ध कर दिया की तीन बार दोहराता रहा.
जवाब देंहटाएंहर किसीकी तमन्ना है अब साथियो
दीप जलते रहें , झिलमिलाते रहें
वाह!
ग़ज़ल विधा के गुरु की ग़ज़लों पर कुछ लिखना सूरज के सामने चराग़ दिखाने वाली बात होगी. फिर भी दिल कहाँ मानता है? पढ़ते ही हर शेर पर ख़ुद-ब-ख़ुद 'वाह' निकल जाता है और इन आशा'र को तो सहेजने में मजबूर हो गया:
इस दौर का है शख्स कुछ ऐसा डरा-डरा
चेहरा बुझा -बुझा सा है दिल है मरा-मरा
वो बात सबकी दोस्तो मानेगा क्यों भला
सावन के अंधे को दिखे सब कुछ हरा-हरा
तंग आ चुका है यूँ तो बशर अपने खोट से
लेकिन कभी तो उसका मिले मन खरा -खरा
खुश रहने की आदत डालो , सुखी रहोगे
माना , सुख थोड़े हैं,दुःख ज़्यादा हैं भाई
अपना-अपना " प्राण" तजुर्बा है दुनिया का
कोई कहे आँखों देखी कोई सुनी - सुनाई
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई.
साहित्य शिल्पी परिवार को मेरी ओर से दीपावली के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.
ग़ज़ल पितामह आदरणीय प्राण शर्मा जी के लिए मैं कुछ कहूँ ऐसी हिमाकत मैं नहीं कर सकता , मुक्तक वाकई में कमाल है इसमें जो गुरु देव ने सुधार करने को कहा है उसे जरुर करलें , अन्यथा क्लिष्टता आरही है और ठीक करने से बह'र में हो जायेगी ....
जवाब देंहटाएंग़ज़लों की जो बात है उसमे कुछ कह पाना मुमकिन नहीं है रंजन जी , हर शे'र अपने आप में बोल रहा है , दिवाली पे क्या खूब उपहार दिया आपने आदरणीय प्राण शर्मा जी की ग़ज़लों को पढ़वाकर ..
पुरे साहित्य शिल्पी को दिवाली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
अर्श
हमारी तो दीवाली यहीं हो गयी इधर साहित्य-शिल्पी पर ही। प्राण साब की ग़ज़लों के संग।
जवाब देंहटाएंप्राण साब की दोनों ग़ज़लें हाल ही में कहीं पढ़ी है मैंने। किसी पत्रिका में। याद नहीं आ रहा...शायद "नया ज्ञानोदय" में या फिर किसी और में। उसी वक्त ग़ज़ल का ये नया अंदाज़ भाया था मुझे। प्राण साब को मेल करने वाला था, लेकिन फिर कुछ अजीब-सी व्यस्तताओं में उलझ गया।
अनूठा प्रयोग हुआ है इस ग़ज़ल में काफ़ियों का और इस शेर को तो डायरी में दर्ज कर लिया था "तंग आ चुका है यूँ तो बशर अपने खोट से
लेकिन कभी तो उसका मिले मन खरा -खरा"
दूसरी ग़ज़ल का कहर ढ़ाता मतला और सारे शेर मन को छू गये। विशेष कर मक्ते का जादू तो सर चढ़कर बोल रहा है।
आदरणीय प्राण साहेब,
जवाब देंहटाएंआपकी गज़लें बांचना बड़े सौभाग्य की बात है ...........
यों लगता है मानो........कहीं गहरे उतर गए हों अपने ही भीतर........
आज भी आपने निहाल कर दिया ....
दीपावली की खुशी दूनी करदी
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
वाह!! बहुत उम्दा रचनाएँ हैं सभी!!
जवाब देंहटाएंसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
दीपावली की मंगल कामना करते हुए आदरणीय प्राण साहब का लिखा पढ़ना आनंद वर्षा कर रहा है
जवाब देंहटाएंबढिया लगी आप की प्रस्तुति
नगीना खोज कर लाये हैं आप
साहित्य शिल्पी मंच को बधाई
दीपावली में शांति का सन्देश फैले
यही कामना है
आपके परिवार के लिए मंगल कामना
सस्नेह,
- लावण्या
respected pran ji
जवाब देंहटाएंaap hamesha hi bahut sunder likhte hain.ye gazal bhi bahut hi dil ko chhune wali hai .
aap ko aur aap ke parivar ko diwali ki shubhkamnayen
saader
rachana
ग़ज़लों में गहरी संवेदना है, बहुत सटीक उपमान हैं ! पाठक आपकी संवेदना से सम्बद्ध हो जाता है.
जवाब देंहटाएंप्राण जी को सादर प्रणाम करते हुए
जवाब देंहटाएंमुक्तक के प्रति-
प्राण का भाव ही प्राण सबका बने
इस दुनिया में सब मुस्कुराते रहें
पहली गजल के प्रति-
घर घर खुशियों की दीवाली सुमन की चाहत है
मँहगाई ने रोक लगा दी शौक अभीतक धरा धरा
दूसरी गजल के प्रति-
दुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यही
दुख में भी सुख की झलक को ड़ूँढ़ना अच्छा लगा
और अन्त में सबके लिए-
जगमग दीप जले घर आँगन आपस में हो प्यार।
चाह सुमन की घर घर खुशियाँ नित नूतन संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
deepawali ki subh kamnaaon ke saath aapki sunder rachna ke liye dher sari badhayeeyan
जवाब देंहटाएंआँखें गड़ाये ताकता हूँ आसमान को.
जवाब देंहटाएंभगवान का आशीष लगे अब झरा-झरा..
माता-पिता गए तो लगा प्राण ही गए.
बेबस है 'सलिल' आज सभी से डरा-डरा..
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मान्यवर!
दोनों गजलें मन को छू गयीं. भाष, भाव-भंगिमा, बिम्ब तथा लय हर कसौटी पर खरी हैं ये गजलें. दिवाली का यह उपहार अनमोल है. साधुवाद..
प्राण साह्ब की गजलों से मेरी थकान दूर हो गयी और कुछ क्षणों के लिये मानसिक श्रांति मिली! दोनो बेहतरीन गजलें हैं!
जवाब देंहटाएंरिश्तों की जंजीरों से जकड़े थे हम तो
जवाब देंहटाएंकैसे करते अपनों से हम हाथापाई
बात तभी बनती है मन को छूने वाली
जैसा सुन्दर घर हो वैसी हो पहुनाई
प्राण जी
आपकी दोनों गजल मन को छु जाने वाली है.
आपको दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये.
निशा
Aadarneey Pran ji ki
जवाब देंहटाएंgazalen man ko bahut achchi lagi
गीली लकडी थी गीली थी दिया सिलाई
हम ही जाने हमने कैसे आग जलाई
ahaaaaaa kya sher hai
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.