
सहेलियों संग नुक्कड़ पर जब दिखती है,
मेले की कोई अनूठी दूकान सजती है,
चलती बस की खिड़की पर बैठी वह,
नयी कलि कोई दुनिया से मिलती है,
चाट की दूकान देख ठहरे कभी,
मुनिया कोई खिल्लौने को तरसती है,
सुस्ताये बैढ़ राह देखे किसी का,
मुरझाई कुसुम कोई डाली पर झुकती है,
लपकने चाँद कूदे छत पर,
तितली कोई आकाश छूने उड़ती है,
कितना सराहे उनको 'अवि',
हर अदा अपनी ओर खींचती है|
7 टिप्पणियाँ
achchhi prastuti
जवाब देंहटाएंभावनाये अच्छी है
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह रचना !!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल ........ आस पास बिखरे लम्हों से सजी ..........
जवाब देंहटाएंसहेलियों संग नुक्कड़ पर जब दिखती है,
जवाब देंहटाएंमेले की कोई अनूठी दूकान सजती है,
सुस्ताये बैढ़ राह देखे किसी का,
मुरझाई कुसुम कोई डाली पर झुकती है,
कहने में नयापन है।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंsundar rachna badhayee
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.