
सहेलियों संग नुक्कड़ पर जब दिखती है,
मेले की कोई अनूठी दूकान सजती है,
चलती बस की खिड़की पर बैठी वह,
नयी कलि कोई दुनिया से मिलती है,
चाट की दूकान देख ठहरे कभी,
मुनिया कोई खिल्लौने को तरसती है,
सुस्ताये बैढ़ राह देखे किसी का,
मुरझाई कुसुम कोई डाली पर झुकती है,
लपकने चाँद कूदे छत पर,
तितली कोई आकाश छूने उड़ती है,
कितना सराहे उनको 'अवि',
हर अदा अपनी ओर खींचती है|
achchhi prastuti
उत्तर देंहटाएंभावनाये अच्छी है
उत्तर देंहटाएंअच्छी लगी यह रचना !!
उत्तर देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल ........ आस पास बिखरे लम्हों से सजी ..........
उत्तर देंहटाएंसहेलियों संग नुक्कड़ पर जब दिखती है,
उत्तर देंहटाएंमेले की कोई अनूठी दूकान सजती है,
सुस्ताये बैढ़ राह देखे किसी का,
मुरझाई कुसुम कोई डाली पर झुकती है,
कहने में नयापन है।
बहुत खूब
उत्तर देंहटाएंsundar rachna badhayee
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