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भूत पिशाच नोट दिलवावै [व्यंग्य] - आलोक पुराणिक

एक समय की बात है कि लक्ष्मीजी और विष्णुजी पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हुए दीवाली पर भारत पहुंचे और उन्होने पाया कि समस्त भारत में लक्ष्मीजी की पूजा का माहौल बना हुआ है। पब्लिक गिफ्ट लेकर इधर से उधर टहल रही है। इन सारे गिफ्टों का निमित्त और स्त्रोत मुझमें ही है, ऐसा विचार लक्ष्मीजी के मन में आया। मुझे कित्ते गिफ्ट मिलेंगे, ऐसी जिज्ञासा से लक्ष्मीजी ने सोचा, कि राजधानी के केंद्र में ठीया जमाया जाये और गिफ्ट कलेक्ट किये जायें।

लक्ष्मीजी मुख्य पार्क में विराजित हुईं।
पब्लिक उन्हे देखती, हाथ जोड़ती और निकल जाती।

जूनियर सचिव, सीनियर सचिव के यहां, सीनियर सचिव मंत्री के यहां, मंत्री पार्टी के सचिव के यहां। पार्टी का सचिव महासचिव के यहां।
अफसर बड़े अफसर के यहां।

उद्योगपति कस्टम, बैंक, पुलिस, आयकर, बिक्रीकर के अफसर के यहां।
लक्ष्मीजी किंचित हंसी और बोलीं हे जातकों मैं ही तुम्हारी अभीष्ट हूं। मैं ही लक्ष्मी हूं।

उद्योगपति ने पूछा-हे देवी कौन सा परमिट अथवा लाइसेंस आपके हाथ में है, सो कहें। परमिट इस हाथ दें, गिफ्ट उस हाथ लें।
लक्ष्मीजी सन्न रह गयीं।

जूनियर अफसर से लक्ष्मीजी ने कहा-मैं ही तुम सबकी अभीष्ट हूं।
जूनियर अफसर हंसने लगा और बोला-जी मेरा अभीष्ट तो अमेरिका की पोस्टिंग है, जो सचिवजी के हाथ में है। उन्ही को सैट करने जा रहा हूं। आपके लिए नारियल फूल का इंतजाम कर दिया है। उसमें मगन रहें। इससे ऊपर के अभिलाषा के लिए आपको मंत्री होना होगा।

एक टीवी चैनल के द्वार पर लक्ष्मीजी पहुंची और कहा आज सब मुझे ही भज रहे हैं, मेरी ही पूजा हो रही है, मुझे ही दिखाओ टीवी पर।
टीवी प्रोड्यूसर बोला-भूत पिशाच निकट जब आवे, नोटों की गड्डी लावे।

हे देवी, आपका बाजार भाव इधर मंदा है। टीवी पर भूत पिशाचों का बाजार गर्म है। दीवाली की रात के भूत, अमावस्या की रात ब्रह्मराक्षस की तपस्या, एक रात सौ भूत-दीवाली की रात के लिए इस तरह के कार्यक्रम तैयार हो रहे हैं। हद से हद एकाध क्यूट चुड़ैल के लिए जगह निकाल सकते हैं। आप अन्यथा ना लें, आपको हम टीवी कार्यक्रम में ना ले पायेंगे। और हमारे लिए नोट तो भूत पिशाच ही ला रहे हैं।

सुना है, अब लक्ष्मीजी दीवाली की रात भौतिक रुप से पृथ्वी पर नहीं आतीं। भूतों के हाथों इतनी फजीहत के बाद कौन आयेगा, बताइए।

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