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कुछ ऐसे जिया अब तक की बेखबर लिखता हूँ [ग़ज़ल] - सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'

कुछ ऐसे जिया अब तक की बेखबर लिखता हूँ
न रहज़न न रहबर कोई मेरे मगर लिखता हूँ।

जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।

प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।

खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।

इन्किलाब में शामिल हूँ दोस्तो तुम भी देखो
पैगाम-ए-अमन एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ।

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14 टिप्पणियाँ

  1. जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
    आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  2. जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
    आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
    bahut khoob!

    जवाब देंहटाएं
  3. सरल भाषा में अच्छी ग़ज़ल कही है।

    जवाब देंहटाएं
  4. जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
    आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।

    प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
    जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।

    स्वागत साहित्य शिल्पी पर।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
    bahut khoob!

    बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  6. प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
    जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।

    खूबसूरत है ग़ज़ल ............कमाल के शेर .............. सुभान अल्ला .........

    जवाब देंहटाएं
  7. प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
    जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।

    खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
    खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।

    bahut gazeb sher hai...dil k bheetar tak dard ke ehsaas dete chale gaye...

    bahut khoob...badhayi.

    जवाब देंहटाएं
  8. जिन्दगी के हर रंक को उकेर कर भी कह रहे ,
    बेखबर लिखता हूँ बहुत खूब , उत्क्रिस्ट रचना

    जवाब देंहटाएं

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