
न रहज़न न रहबर कोई मेरे मगर लिखता हूँ।
जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।
इन्किलाब में शामिल हूँ दोस्तो तुम भी देखो
पैगाम-ए-अमन एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ।
14 टिप्पणियाँ
behatareen rachna. badhaai.
जवाब देंहटाएंजेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
जवाब देंहटाएंआज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
बहुत खूब।
बहुत अच्छी रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंजेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
जवाब देंहटाएंआज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
bahut khoob!
सरल भाषा में अच्छी ग़ज़ल कही है।
जवाब देंहटाएंजेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
जवाब देंहटाएंआज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
स्वागत साहित्य शिल्पी पर।
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
जवाब देंहटाएंbahut khoob!
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Nice poetry
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जवाब देंहटाएंजिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खूबसूरत है ग़ज़ल ............कमाल के शेर .............. सुभान अल्ला .........
sundar rachna...
जवाब देंहटाएंप्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जवाब देंहटाएंजिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।
bahut gazeb sher hai...dil k bheetar tak dard ke ehsaas dete chale gaye...
bahut khoob...badhayi.
जिन्दगी के हर रंक को उकेर कर भी कह रहे ,
जवाब देंहटाएंबेखबर लिखता हूँ बहुत खूब , उत्क्रिस्ट रचना
Bahut achchhi ghazal...waah...likhte rahen
जवाब देंहटाएंNeeraj
sundar rachana hai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.