
अलंकार परिणाम यदि, कार्य सके संधान..
जहाँ असमर्थ उपमान उपमेय से अभिन्न रहकर किसी कार्य के साधन में समर्थ होता है, वहां परिणाम अलंकार होता है.
उदाहरण:
१.
मेरा शिशु संसार वह दूध पिये परिपुष्ट हो.
पानी के ही पात्र तुम, प्रभो! रुष्ट व तुष्ट हो..
यहाँ पर संसार उपमान शिशु उपमेय का रूप धारण कर ही दूध पीने में समर्थ होता है, इसलिए परिणाम अलंकार है.
२.
कर कमलनि धनु शायक फेरत.
जिय की जरनि हरषि हँसि हेरत..
यहाँ पर कमल का बाण फेरना तभी संभव है, जब उसे कर उपमेय से अभिन्नता प्राप्त हो..
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7 टिप्पणियाँ
समझने में कठिनाई हुई। पूरी तरह अभी स्पष्ट नहीं हुआ।
जवाब देंहटाएंहो अभिन्न उपमेय से, जहाँ 'सलिल' उपमान.
जवाब देंहटाएंअलंकार परिणाम यदि, कार्य सके संधान..
धन्यवाद सलिल जी।
Jaankari bhari post..aur sikhane ka pryas karenge...badhiya pryaas..abhar.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धन का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउदाहरण से बात स्पष्ट हो जाती है। यह एक और नया अलंकार है जिससे मैं परिचित हुई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति, आभार।
जवाब देंहटाएंआप सब का आभार.
जवाब देंहटाएंमैं आपसे सहमत हूँ. यह अलंकार कुछ कठिन प्रतीत होता है.
अनन्या जी! आप जैसे पाठकों के लिए ही इस लेखमाला में कुछ नया देने का प्रयास है. क्या आप इस अलंकार को अपने शब्दों में समझायेंगी जिससे विश्वास जी का समाधान हो सके. आशा है इस अनुरोध पर ध्यान देंगी.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.