
अनुवाद साहित्य महत्वपूर्ण कार्य है और वरिष्ठ कथाकार सूरजप्रकाश अभियान की तरह यह कार्य करते रहे हैं। साहित्य शिल्पी पर "चार्ल्स डारविन की आत्मकथा" का अनुवाद अब प्रत्येक शनिवार को प्रस्तुत होगा। किंतु इस महान कार्य को संपन्न करने के पीछे सूरज जी की क्या प्रेरणा कार्य कर रही थी यह जानने के लिये साहित्य शिल्पी नें एक प्रश्नावली उन्हे प्रेषित की। प्रस्तुत है सूरज जी का उन प्रश्नों के उत्तरों को समाहित करता आलेख अर्थात पूर्वकथन।
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साहित्यिक कृतियों के अनुवाद करने की सीरीज मैं अब तक कई किताबों के अनुवाद कर चुका था। इनमें जार्ज आर्वेल के एनिमल फार्म से शुरू करते हुए नोबल पुरस्कार से सम्मानित लेखकों की कहानियों से ये यात्रा जारी रखते हुए ऐन फ्रैंक की डायरी और फिर चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा का अनुवाद किया। मिलेना किताब भी जीवनीपरक ही थी। आत्मकथाएं मुझे हमेशा अच्छी लगती रही हैं।
आत्मकथात्मक किताबें पढ़ते समय ये अहसास रहता है कि हम इतनी देर तक लेखक के साथ रहे हैं। उसकी दिनचर्या में शामिल रहे हैं और उसके हाथ की बनायी चाय पीने का अद्भुत सुख उठा रहे हैं। आत्मकथा पढ़ नहीं रहे, उसके पास बैठे उसके मुख से ही किस्सा गोई की स्टाइल में बतरस के मजे ले रहे हैं।

चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा के अनुवाद ने मुझे असीम सुख दिया था। जैसे मैंने अपने जीवन के कई महीने बाबा चार्ली चैप्लिन की संगत में गुज़ारे थे। कितना तो संघर्ष किया था उस बावले ने और क्या क्या दिन नहीं देखे थे लेकिन एक सपना उसने अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया था कि एक दिन अभिनेता बनना है। बनना है तो बनना है। डॉक्टर कलाम की एक बहुत खूबसूरत कोटेशेन है जो चार्ली के संघर्षों को देख कर ही लिखी गयी होगी। कलाम साहब कहते हैं कि सपने वो नहीं होते जो हम सोते हुए देखते हैं। सपने तो वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। चार्ली ने बेहतरीन अदाकार और कलाकार का सपना पूरा करके दिखाया और पूरे जीवन वे अपने आपको बेहतर बनाने के लिए जुटे रहे।
चार्ली चैप्लिन के बाद जब चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा पढ़ी तो बहुत सुख मिला। वहीं संघर्ष करने वाली बात। एक जुनून, एक पागलपन और एक अदम्य इच्छा कि जो काम करना है सो करना ही है। भयंकर बीमारियों के लम्बे लम्बे अरसे गुज़ारे लेकिन बैठे हैं और काम कर रहे हैं। अगर लैब में काम नहीं कर पा रहे तो अगली किताब की पांडुलिपि ही देख लो। वह नहीं तो प्रूफ ही पढ़ लो। प्रूफ नहीं देख पा रहे तो स्लातईड्स ही तरतीब से लगा दो। उनके जीवन के इस पक्ष ने मुझे बहुत प्रभावित किया और सोचा मैंने कि इस बहाने एक और महान व्यक्ति हिन्दी के पाठकों तक मेरे जरिये पहुंचेगा।
इस अनुवाद को बेशक बच्चों के लिए किताबें तैयार करने वाली संस्था एनसीईआरटी ने दो वर्ष पहले छापा था, किताब आज तक मेरे पास नहीं आयी है। बाद में इसे मेरे कथाकार मित्र ने मेरे ही किये एनिमल फार्म के अनुवाद के साथ रचना समय में छापा।
सूरज प्रकाश का जन्म १४ मार्च १९५२ को देहरादून में हुआ।
आपने विधिवत लेखन १९८७ से आरंभ किया। आपकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं:- अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच (उपन्यास, 1998), देस बिराना (उपन्यास, 2002), छूटे हुए घर (कहानी संग्रह, 2002), ज़रा संभल के चलो (व्यंग्य संग्रह, 2002)।
इसके अलावा आपने अंग्रेजी से कई पुस्तकों के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ऐन फैंक की डायरी का अनुवाद, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा का अनुवाद, चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा का अनुवाद आदि प्रमुख हैं। आपने अनेकों कहानी संग्रहों का संपादन भी किया है।
आपको प्राप्त सम्मानों में गुजरात साहित्य अकादमी का सम्मान, महाराष्ट्र अकादमी का सम्मान प्रमुख हैं।
आप अंतर्जाल को भी अपनी रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं।
आपने विधिवत लेखन १९८७ से आरंभ किया। आपकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं:- अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच (उपन्यास, 1998), देस बिराना (उपन्यास, 2002), छूटे हुए घर (कहानी संग्रह, 2002), ज़रा संभल के चलो (व्यंग्य संग्रह, 2002)।
इसके अलावा आपने अंग्रेजी से कई पुस्तकों के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ऐन फैंक की डायरी का अनुवाद, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा का अनुवाद, चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा का अनुवाद आदि प्रमुख हैं। आपने अनेकों कहानी संग्रहों का संपादन भी किया है।
आपको प्राप्त सम्मानों में गुजरात साहित्य अकादमी का सम्मान, महाराष्ट्र अकादमी का सम्मान प्रमुख हैं।
आप अंतर्जाल को भी अपनी रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं।
इस कृति के साथ एक खास बात जुड़ी हुई है। कभी डार्विन साहब ने अपने परिवार वालों के लिए ताकी सनद रहे की तर्ज पर कुछ पन्ने रंगे होंगे। उनकी मृत्यु के बाद जब उनके पुत्र फ्रांसिस ने ये पन्ने पढ़े तो उसे खूब सुख मिला लेकिन एक संकट भी सामने आ खड़ा हुआ। इनमें बहुत कुछ ऐसा था जो सबके साथ शेयर नहीं किया जा सकता था। बेटे महाराज जी बैठे एडिटिंग करने। कतरते कतरते पन्ने रह गये पचास से भी कम। अब भला इतने बड़े वैज्ञानिक की आत्म कथा इतनी छोटी कैसे छापी जाये। बेटे जी ने दिमाग लड़ाया और आगे के पन्ने खुद लिख डाले कि पापा ऐसे थे और वैसे थे। हो गयी न किताब छपने लायक। पांडुलिपि तैयार।
ये किताब इसी रूप में है। मैंने तो इसी रूप में पढ़ी, उसका अनुवाद किया और आप तक पहुंचा रहा हूं। एक बात जरूर है। लेखक बेशक दो हैं लेकिन किताब पढ़ने में बराबर मज़ा मिलता है।
अब मेरा काम हुआ पूरा और आपका काम शुरू। पढ कर बताना कि मेरा काम कैसा लगा।
17 टिप्पणियाँ
चार्ल्स डार्विन के द्विशती वर्ष में यह कार्य और भी महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य है -बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंस्वागत है सूरज जी और प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंचार्ल्स डारविन नें नयी सोच का पतिपादन किया और उसके बाद ही हमें अपने अतीत में देखने का रास्ता मिला। सूरजप्रकाश की के माध्यम से डारविन के विषय में जानने को मिलेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सूरजप्रकाश जी। अनुवाद-प्रस्तुति की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंचार्ल्स डारविन के विषय में जानने की बहुत इच्छा है। सूरजप्रकाश जी द्वारा किये गये अनुवाद को पढने की इच्छा है।
जवाब देंहटाएंपूर्वकथन से पुस्तक का आभास मिल रहा है और उत्कंठा हो गयी है इस अनुवाद-साहित्य को पढने की। सूरजप्रकाश जी की कलम से हुआ अनुवाद रोचक ही होगा।
जवाब देंहटाएंThanks Suraj ji and Sahityashilpi
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
hum jaise naye pathako ke liye to ye vardaan jaisa hi hai
जवाब देंहटाएंसूरज जी हमें प्रतीक्षा है आपकी पुस्तक को नेट पर पढने की। आपकी कहानियों की तरह और आपकी शैली के कारण यह रुचिकर होगा उम्मीद है, डारविन के बारे में जानने की इच्छा भी है।
जवाब देंहटाएंसूरज जी धन्यवाद इस महान काम के लिये। प्रतीक्षा है पुस्तक के प्रस्तुत होने की।
जवाब देंहटाएंइतनी महत्वपूर्ण किताब हर शनिवार प्रतीक्षा रहेगी !
जवाब देंहटाएंkathnak ke baad kahani ki pratichha men
जवाब देंहटाएंअनुवाद साहित्य एवं समाज के लिये कितना आवश्यक है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कार्ल मार्क्स का दास कैपिटल। भारत के प्रत्येक मार्क्सावादी ने (यदि इस पुस्तक को पढ़ा है) तो अनुवाद के माध्यम से ही। गीता, कुरान, बाइबल आदि सभी अनुवाद के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंच पाए हैं। रवीन्द्र नाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार भी अनुवाद के माध्यम से ही मिला।
जवाब देंहटाएंपिछले 2000 वर्षों के दो महानत्म लोग हैं यीशु मसीह (क्राइस्ट) और चार्ल्स डारविन। यीशु ने भगवान की स्थापना की और डारविन ने भगवान नाम के कांसेप्ट को ध्वस्त कर दिया।
पिछले सप्ताह ही लंदन में एक नाटक देखा Inherit the Wind जिसमें Kevin Spacy की मुख्य भूमिका थी। उसमें भी डार्विन की थियोरी को केन्द्र बिन्दु में रखा गया था।
सूरज प्रकाश अंग्रेज़ी से हिन्दी में स्तरीय अनुवाद करने के लिये मशहूर हैं। साहित्य शिल्पी बधाई की पात्र है कि इतनी महत्वपूर्ण कृति अपने पाठकों के लिये प्रस्तुत कर रही है।
इस महत्वपर्ण कृति की प्रतीक्षा है।
तेजेन्द्र शर्मा
महासचिव - कथा यूके
लंदन
हर शनिवार इंतज़ार रहेगा.....
जवाब देंहटाएंइस श्रेष्ठ कार्य के लिए आपको साधुवाद. वैसे भी अनुवाद लेखन काफी दुरूह कार्य होता है.
जवाब देंहटाएंचार्ल्स डार्विन के बारे में उत्सुकता और बढ़ गयी.
सूरज जी
जवाब देंहटाएंबोटनी और जूलोजी बी एस सी करने के दौरान मेरे विषय रहे हैं और मुझे चार्लस डार्विन के सिद्धांतों को पढने का अवसर मिला है जिसके लिये उन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष समर्पित किये. जीवन के विकास को जानने में उनका योगदान स्वर्ण अक्षरों में लिखने लायक है.
आपके द्वारा किये गये अनुवाद की अगली कडी की प्रतीक्षा रहेगी
बधाई के पात्र तो हैं ही…बहुत अच्छा…अन्तर्जाल पर उपलब्ध भी तो करा दिया गया है…बहुत अच्छी बात है…
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.