
पंजाब के जालंधर शहर में जन्मी डा. सुधा ढींगरा हिन्दी और पंजाबी की सम्मानित लेखिका हैं। वर्तमान में वे अमेरिका में रहकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु कार्यरत हैं।
प्रकाशित साहित्य--मेरा दावा है (काव्य संग्रह-अमेरिका के कवियों का संपादन ) ,तलाश पहचान की (काव्य संग्रह ) ,परिक्रमा (पंजाबी से अनुवादित हिन्दी उपन्यास), वसूली (कथा- संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), सफर यादों का (काव्य संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), माँ ने कहा था (काव्य सी .डी ), पैरां दे पड़ाह , (पंजाबी में काव्य संग्रह ), संदली बूआ (पंजाबी में संस्मरण ), १२ प्रवासी संग्रहों में कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित।
विशेष--विभौम एंटर प्राईसिस की अध्यक्ष, हिन्दी चेतना (उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका) की सह- संपादक। हिन्दी विकास मंडल (नार्थ कैरोलाइना) के न्यास मंडल में हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक हैं। इंडिया आर्ट्स ग्रुप की स्थापना कर, अमेरिका में हिन्दी के बहुत से नाटकों का मंचन किया है। अनगिनत कवि सम्मेलनों का सफल संयोजन एवं संचालन किया है। रेडियो सबरंग ( डेनमार्क ) की संयोजक।
पुरस्कार- सम्मान-- १) अमेरिका में हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए वाशिंगटन डी.सी में तत्कालीन राजदूत श्री नरेश चंदर द्वारा सम्मानित। २) चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव २००६ में ''अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान.'' ३) हैरिटेज सोसाइटी नार्थ कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''सर्वोतम कवियत्री २००६'' से सम्मानित , ४) ट्राईएंगल इंडियन कम्युनिटी, नार्थ - कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''२००३ नागरिक अभिनन्दन ''. हिन्दी विकास मंडल , नार्थ -कैरोलाईना( अमेरिका ), हिंदू- सोसईटी , नार्थ कैरोलाईना( अमेरिका ), अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) द्वारा हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित।
प्रकाशित साहित्य--मेरा दावा है (काव्य संग्रह-अमेरिका के कवियों का संपादन ) ,तलाश पहचान की (काव्य संग्रह ) ,परिक्रमा (पंजाबी से अनुवादित हिन्दी उपन्यास), वसूली (कथा- संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), सफर यादों का (काव्य संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), माँ ने कहा था (काव्य सी .डी ), पैरां दे पड़ाह , (पंजाबी में काव्य संग्रह ), संदली बूआ (पंजाबी में संस्मरण ), १२ प्रवासी संग्रहों में कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित।
विशेष--विभौम एंटर प्राईसिस की अध्यक्ष, हिन्दी चेतना (उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका) की सह- संपादक। हिन्दी विकास मंडल (नार्थ कैरोलाइना) के न्यास मंडल में हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक हैं। इंडिया आर्ट्स ग्रुप की स्थापना कर, अमेरिका में हिन्दी के बहुत से नाटकों का मंचन किया है। अनगिनत कवि सम्मेलनों का सफल संयोजन एवं संचालन किया है। रेडियो सबरंग ( डेनमार्क ) की संयोजक।
पुरस्कार- सम्मान-- १) अमेरिका में हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए वाशिंगटन डी.सी में तत्कालीन राजदूत श्री नरेश चंदर द्वारा सम्मानित। २) चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव २००६ में ''अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान.'' ३) हैरिटेज सोसाइटी नार्थ कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''सर्वोतम कवियत्री २००६'' से सम्मानित , ४) ट्राईएंगल इंडियन कम्युनिटी, नार्थ - कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''२००३ नागरिक अभिनन्दन ''. हिन्दी विकास मंडल , नार्थ -कैरोलाईना( अमेरिका ), हिंदू- सोसईटी , नार्थ कैरोलाईना( अमेरिका ), अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) द्वारा हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित।
कितनी सुहानी है,
गिरते पत्तों की भी
एक कहानी है.
हर पत्ता,
राजनीति की तरह,
कई रंग बदलता है.
रंग- बिरंगे सूखे पत्ते
गिरते -गिरते
धरती भर जाते हैं,
नेता जाते -जाते
देश को खाली कर जाते हैं.
दूर -दूर तक लोग ड्राईव कर
पत्तों के रंगों को देखने जाते हैं.
पतझड़ की उदासी छोड़
ढेर सी खुशियाँ साथ लाते हैं.
काश! मानव प्रकृति से
कुछ सीख पाता
अपनी ज़िन्दगी के थोड़े से रंग
दूसरों की ज़िन्दगी में भर पाता.
18 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंकाश! मानव प्रकृति से
जवाब देंहटाएंकुछ सीख पाता
अपनी ज़िन्दगी के थोड़े से रंग
दूसरों की ज़िन्दगी में भर पाता.
प्रकृति बहुत कुछ सिखाती हैं।
एक प्रेरक कविता है.
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी और प्रेरणा देती हुई है
जवाब देंहटाएं।
सुधा जी की एक और खूबसूरत कविता पतझर का वैसे भी रंग है। कश्मीर में पत्तियाँ लाल हो गयी हैं, लंदन का पतझर तेजेन्द्र जी ने दिखाया था और अब अमरीका का पतझर।
जवाब देंहटाएंNice Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सुधा जी ने अपनी कविता को तीन अलग अलग लेवल्स पर डील किया है।
जवाब देंहटाएंवे 1) पतझड़ में पत्तों के बदलते रंगों में ख़ूबसूरती महसूस करती हैं 2) बदलते रंगों को राजनीतिक गिरगिटों से करती हैं 3) और अंत में कहती हैं -
काश! मानव प्रकृति से
कुछ सीख पाता
अपनी ज़िन्दगी के थोड़े से रंग
दूसरों की ज़िन्दगी में भर पाता.
सुधा जी बहुत बहुत बधाई इतनी अर्थपूर्ण कविता के लिये।
तेजेन्द्र शर्मा
महासचिव - कथा यूके
लंदन
नेता जाते -जाते
जवाब देंहटाएंदेश को खाली कर जाते हैं.
sundar rachna badhayee
सुधाजी
जवाब देंहटाएंआपकी इस नज़्म ने इंसान के दिल में अगर करवट कि एक छाप भी छोड़ने
कि शिद्दत है. सुंदर सिमिली का उदहारण पेश किया है.
हर पत्ता,
राजनीति की तरह,
कई रंग बदलता है.
रंग- बिरंगे सूखे पत्ते
गिरते -गिरते
धरती भर जाते हैं,
नेता जाते -जाते
देश को खाली कर जाते हैं.
वैसे भी इंसान का अंत भी इक सूखे से शजर सा होना है, उसकी उदासिओं को छोड़कर ख़ुशी ले आते हैं वाली बात गहराई तक मन में एक छाप छोड़ रही है.
पतझड़ की उदासी छोड़
ढेर सी खुशियाँ साथ लाते हैं.
काश! मानव प्रकृति से
कुछ सीख पाता
पतझड़ की उदासी छोड़
ढेर सी खुशियाँ साथ लाते हैं.
काश! मानव प्रकृति से
कुछ सीख पाता
देवी नागरानी
आदरणीय सुधा जी !
जवाब देंहटाएं"प्रकृति से सीख" को पढ़ कर अभिभूत हूँ ।
वैसे तो ये एक कविता है और कविता में जो तत्त्व होते हैं वे सब हैं
इसमे, परन्तु आप केवल कवयित्री नहीं हैं . आप कथाकार,
उपन्यासकार और लघुकथाकार भी हैं . इसीलिए इस कविता में
एक चमत्कार घटित हो गया है । अब ये मैं नहीं कह सकता कि
चमत्कार संयोगवश हुआ है या आपने अपनी मेधा का प्रदर्शन
करते हुए यह जान बूझ कर किया है ........ लेकिन हुआ कमाल है,
कमाल ये है कि इस एक रचना में आपके लेखन की चारों विधाएं
एक साथ उतर आई हैं ।
है न गज़ब ?
अमेरिका की पतझड़
कितनी सुहानी है,
गिरते पत्तों की भी
एक कहानी है.
'गिरते पत्तों की भी एक कहानी ' ये शब्द अपने आप में अनूठा है,
इसका प्रयुक्त होना और भी अनूठा है क्योंकि पत्तों की कहानियाँ नहीं
कहा, कहानी कहा है.......... अर्थात सबकी जुदा जुदा नहीं, एक ही
कहानी है और वह कहानी गिरे हुए पत्तों की नहीं है, गिरने वाले पत्तों
की भी नहीं है , बल्कि गिरते पत्तों की है.....वाह !
सुधा दीदी यहाँ आकर आपके भीतर का फ़िल्म निर्देशक जागृत
हो गया है और इसके बाद जो कुछ आपने रचा है वह एक बड़े
निर्देशक की बड़ी कल्पना का साकार स्वरूप प्रतीत होता है ।
हर पत्ता,
राजनीति की तरह,
कई रंग बदलता है.
रंग- बिरंगे सूखे पत्ते
गिरते -गिरते
धरती भर जाते हैं,
नेता जाते -जाते
देश को खाली कर जाते हैं.
बहुत ही सलीके से सटीक शब्दों का सदुपयोग करते हुए आपने सादगी
का सामर्थ्य और भाव का घनत्व कागज़ पे उतारा है ..वाह !
दूर -दूर तक लोग ड्राईव कर
पत्तों के रंगों को देखने जाते हैं.
पतझड़ की उदासी छोड़
ढेर सी खुशियाँ साथ लाते हैं.
जब हम किसी की मृत्यु देखने जाते हैं तो अफ़सोस करते हुए जाते हैं
और उदास होकर लौटते हैं लेकिन ये कैसी अद्भुत मौत है इन रंगीले
पत्तों की........ जो हमें खुशियों से भर देती है...... इस दृष्टि के और इस
दृश्य के क्या कहने............
कमाल का उपयोग हुआ है कवित्व का ..........
काश! मानव प्रकृति से
कुछ सीख पाता
अपनी ज़िन्दगी के थोड़े से रंग
दूसरों की ज़िन्दगी में भर पाता।
यहाँ आकर आपने उस शब्द्सुधा की गगरी पूरी की पूरी छलकादी जिसे
देखने और महसूस करने मात्र से स्वयं को मानव होने पर अभिमान
होने लगता है........
आपका सन्देश जग भर में फैले, ये कविता ख़ूब कीर्ति पाये,
इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ
-अलबेला खत्री
Albela khatriji,
जवाब देंहटाएंTel peepo se udela hai aapne, Fir bhi mujhe lagata hai aapki Amerika yatra shayad hi ho.
mhodya ,ptjhd amerika ki aur rajneeti hmari bhut khoob
जवाब देंहटाएंptjhd ka vishvash bda ghra hai
thhoonthhon me bhi fool khilenge beshk hi phra hai
ptjhd jivn ka bhar liye rhti hai
kyon ki jivn ko is ne hi dekha hai
dr. ved vyathit
mail; dr.vedvyathit@gmail.com
सुधा जी,
जवाब देंहटाएंमैंने स्वयं प्रकृति में माँ, सह्चरी, गुरू,शिशु एवं प्रियतम का रूप देखा है।मेरी लेखनी की नोक पर सदा वही विराजमान रहती है। किन्तु आपने इस रचना में प्रकृति को राजनीति से जोड़ कर एक अनूठी भावाभिव्यक्ति का परिचय दिया है। "सूखे पत्ते भी जाते जाते आह्लाद बाँट जाते है" यह संदेश इस रचना का चर्म बिन्दु है। बधाई।
सस्नेह,
शशि पाधा
AADARNEEYA BENAAMIJI !
जवाब देंहटाएंMERI NAACHEEZ SI TIPPANI KO ITNE
ABHINAV AUR ANUPAM SHABDON SE
SAMMANIT KARTE HUE AAJ AAPNE MERA
DIL KHUSH KAR DIYA - HAAALANKI
SHARM KE AAPNE APNA NAAM NAHIN
BATAAYA LEKIN AAP YE KYON BHOOLTE
HAIN KI JINKO JAANTA HAI UNKI
BHAASHA SAMAJH KAR HI JAAN LETA
HAI KI YE KOUN MAHANUBHAAV HAIN .
AUR FIR AAP TOH HAZAAR PRAYAAS
KARKE BHI NAHIN CHHUP SAKTE KYONKI
AAPKE TOH ROM ROM SE KUTILTA KI
SUGANDH(?) AATI HAI JO MAIN
DOOOOOR SE PAHCHAAN LETA HOON..
RAHI BAAT AMERIKA KI...TOH MERE
PYAARE MANCHIYA SAATHI ! MAIN TOH
ANEKANEK BAAR JAA CHUKA HOON AUR
AAGE BHI MOOD HUA TOH CHALA
JAAUNGA AAP TOH APNE LIYE PRAYAAS
JAARI RAKHIYE..
AUR NHAAN.....BHAVISHYA ME JAB BHI
TIPPANI KARO, APNE NAAM SE KARO
KYONKI NAAM CHHIPAANE SE UNKA
APMAAN HOTA HAI JIN LOGON KE
PRAYAS SE AAP IS DUNIYA ME AYE HO.
MAINE SUDHAJI KI IS ADWITEEYA
KAVITA KO JO MTIPPANI DI HAI VOH
AGAR AAPKE TRITIYA SHRENI KE
MAANAS KO RAAS NAHIN AAYI TOH KOI
BAAT NAHINJ, AGAR SUDHAJI KO BHI
PASAND NA AAYI TOH BHI KOI BAAT
NAHIN LEKIN JISKA JO ADHIKAAR HAI
VAH USE MILNAA HI CHAHIYE...
YE KAVITA HAI HI ITNI GAZAB KI
SHABD SVAMEV JUDTE CHALE GAYE AUR
TIPPANI BAN GAYI
AGAR AAPKO YE TEL UDELNA LAGTA HAI
TAB TOH MUJHE KHUD PE ABHIMAAN HAI
JO KI TEL LAGA RAHA HAI, AAP JAISE
LOG TOH TEL NIKAALNE ME LAGE HUE
HAIN ......HA HA HA HA
-albela khatri
sudha ji kya tulna hai.kitni sunder soch hai .aap ko bahut bahut badhai ho
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
काश! मानव प्रकृति से
जवाब देंहटाएंकुछ सीख पाता
अपनी ज़िन्दगी के थोड़े से रंग
दूसरों की ज़िन्दगी में भर पाता...
prerna deti bahoot hi sundar rachna .. prakriti sach mein jaise khajaana hai .... koi lootna chaahe to bhi katm nahi hota ...
बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग्य लिखती हैं आप | बधाई !
जवाब देंहटाएं-- अशोक बत्रा
बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग्य लिखती हैं आप | बधाई !
जवाब देंहटाएं-- अशोक बत्रा
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.