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अब नहीं होती बाल सभायें [आलेख] - पंकज व्यास

आप अपने बचपन को याद कीजिए। बचपन में चले जाइए। स्कूल के वो दिन याद करें जब हर शनिवार को आधी छुट्टी के बाद बाल-सभा होती, बाल सभा की तैयारी जोर शोर से की जाती। याद करें वो नजारा, जब मास्टर जी नाम पुकारते और कविता, कहानी, चुटकुले आदि पढ़ने के लिए बाल-सभा में बाकायदा बुलाते। याद करें उस लम्हे को जब मास्टर जी उन दोस्तों को जबरन बाल-सभा में खड़ा कर बुलवाते, कुछ भी कहने के लिए प्रेरित करते....
याद आया? अगर आपको याद आ रहा है तो आप के सामने वो सारे पल आ रहे होंगे जब बाल-सभा होती थी। पूरे सप्ताह आपको और आपके दोस्तों को शनिवार का इंतजार रहता। हर शनिवार को आधी छुट्टी में बाल-सभा का कार्यक्रम होता, जो बच्चों की प्रतिभाओं को विकसित करने के लिए, व्यक्तित्व-विकास के लिए एक मंच का काम करता।

बाल-सभा, नाम से ही स्पष्ट है, बच्चों का कार्यक्रम। चूंकि बच्चों की बात उठती है, तो सहज में ही चाचा नेहरू याद आ जाते। बाल-सभा में बच्चों के व्यक्तित्व-विकास के बहाने, प्रतिभा निखारने के बहाने चाचा नेहरू को याद कर लिया जाता।

वक्त बदला, वक्त ने अपनी चाल बदली और हर शनिवार होने वाली बाल-सभा महीने के आखिरी शनिवार को होने लगी और कब यह बाल-सभा का क्रम समाप्त हो गया, पता ही नहीं चला। अधिकांश स्कूलों में अब बाल-सभाएं नहीं होतीं। बाल-सभा नहीं होती तो बच्चों के चाचा नेहरू याद नहीं आते और याद आते हैं तो अब केवल एक ही दिन बाल-दिवस पर। वह भी रस्म-अदायगी। दूसरे ही दिन बच्चा चाचा नेहरू को भुला-बिसार दें तो इसमें आश्चर्य ही क्या? एक तो बाल-सभा अब होती नहीं और चाचा नेहरू को याद करने का वक्त ही नहीं। रही सही कसर टीवी ने पूरी कर दी और टीवी में भी बच्चे कार्टून में रम जाते हैं।

अब हालात ये बनते हैं कि चाचा नेहरू अब बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू नहीं रहे, अब स्पाईडर-मैन, सुपर-मैन आदि कार्टून पात्र उन्हें आकर्षित करते हैं। यहाँ यही समझ आता है कि बाल-सभा की इस टूट चुकी कड़ी के बीच बच्चों में चाचा नेहरू को लोकप्रिय बनाये रखना है तो माय फ्रेंड गणेशा, कृष्णा, हनुमान की तरह चाचा नेहरू को भी बच्चों के सामने लाना होगा, नहीं तो साल में एक बार बाल-दिवस मना लिया और बाल-सभा तो होती नहीं, इसलिए एक दिन चाचा नेहरू याद आते रहेंगे और बच्चे उन्हें भुलाते-बिसराते रहेंगे।

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4 टिप्पणियाँ

  1. पंकज जी !
    आपके चिंतन में मुझे सहयोगी समझा जाए ! पर एक प्राईमरी का मास्टर होने के नाते मई खुल कर कहना चाहता हूँ की आज भी बेसिक शिक्षा परिषद् के उत्तर-प्रदेश के स्कूलों में बाल -सभाएँ प्रत्येक शनिवार होती हैं | हाँ यह जरूर है कि उनका अपेक्षित स्तर नहीं रह पाता है | जाहिर है यह सब वहां उपस्थित अध्यापकों की रुचियों पर निर्भर करता है |

    आखिर जब पाठ्यक्रम ही समाप्त होना समस्या लगे तो पाठ्य सहगामी क्रियायों के लिए समय कहाँ?
    शायद मेरे स्पष्टीकरण से आप भी संभावित रूप से सहमत होंगे !

    मेरा भी मानना है कि बाल सभाएँ होनी चाहिए !
    मेरे विद्यालय में चुनी छात्र -संसद है जिसके तत्वाधान में प्रत्येक शनिवार बाल सभा का यथासंभव आयोजन किया जाता है !

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  2. अच्छा प्रश्न उठाया है पंकज जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बिलकुल सही कहा आपने... इस पर हमें सोचना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं

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