
शहर में मुखिया आये...
*
जन-गण को कर दूर
निकट नेता-अधिकारी.
इन्हें बनायें सूर
छिपाकर कमियाँ सारी.
सबकी कोशिश
करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये.
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
है सच का आभास
कर रहे वादे झूठे.
करते यही प्रयास
वोट जन गण से लूटें.
लोकतंत्र की
लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
आये-गये अखबार रँगे,
रेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*
4 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंआये-गये अखबार रँगे,
जवाब देंहटाएंरेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये..
आभार।
mmhgai aur bhrsht aachrn jaise mudde chhode
जवाब देंहटाएंjaye desh bhad men sb ne is se nate tode
hl ho jaye apna mtlb ye hi ek ajenda
kya sare sukh amr shhidon ne is hetu chhode
hm mjoor hain is ke liye kyon ki desh vyvstha privrtn ko taiyar hi nhi hai
dr. ved vyathit
बहुत सुन्दर नवगीत है, जिस भाषा का प्रयोग किया गया है वास्तव में नवगीत की यही सिद्ध भाषा है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.