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शहर में मुखिया आये [नवगीत] - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"

शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...

*

जन-गण को कर दूर
निकट नेता-अधिकारी.
इन्हें बनायें सूर
छिपाकर कमियाँ सारी.
सबकी कोशिश
करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये.
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...

*

है सच का आभास
कर रहे वादे झूठे.
करते यही प्रयास
वोट जन गण से लूटें.
लोकतंत्र की
लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...

*

आये-गये अखबार रँगे,
रेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...

*

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4 टिप्पणियाँ

  1. आये-गये अखबार रँगे,
    रेला-रैली में.
    शामिल थे बटमार
    कर्म-चादर मैली में.
    अंधे देखें,
    बहरे सुन,
    गूंगे बोलें,
    हम चुप रह जाएँ.
    शहनाई बज रही
    शहर में
    मुखिया आये..

    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. mmhgai aur bhrsht aachrn jaise mudde chhode
    jaye desh bhad men sb ne is se nate tode
    hl ho jaye apna mtlb ye hi ek ajenda
    kya sare sukh amr shhidon ne is hetu chhode
    hm mjoor hain is ke liye kyon ki desh vyvstha privrtn ko taiyar hi nhi hai
    dr. ved vyathit

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर नवगीत है, जिस भाषा का प्रयोग किया गया है वास्तव में नवगीत की यही सिद्ध भाषा है।

    जवाब देंहटाएं

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