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दंगा [दो लघुकथा] - सूरजप्रकाश

-एक-
रचनाकार परिचय:-
सूरज प्रकाश का जन्म १४ मार्च १९५२ को देहरादून में हुआ। आपने विधिवत लेखन १९८७ से आरंभ किया। आपकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं:- अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच (उपन्यास, 1998), देस बिराना (उपन्यास, 2002), छूटे हुए घर (कहानी संग्रह, 2002), ज़रा संभल के चलो (व्यंग्य संग्रह, 2002)। इसके अलावा आपने अंग्रेजी से कई पुस्तकों के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ऐन फैंक की डायरी का अनुवाद, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा का अनुवाद, चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा का अनुवाद आदि प्रमुख हैं। आपने अनेकों कहानी संग्रहों का संपादन भी किया है। आपको प्राप्त सम्मानों में गुजरात साहित्य अकादमी का सम्मान, महाराष्ट्र अकादमी का सम्मान प्रमुख हैं। आप अंतर्जाल को भी अपनी रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं।

बहुत परेशान नजर आ रहे हो। क्या बात है?

’ये देखो यार, हमारे लोगों ने फरमान निकाला है- उन लोगों से कोई लेन-देन, रिश्ता-नाता मत रखो। जो ऐसा करेगा, उसपर दंड लगेगा।‘

’लेकिन तुम्हारी परेशानी क्या है?’

’भाई मेरे, रेडिमेड्स की फैक्टरी में सारे वर्कर उसी कम्युनिटी के है। और तो और, जो एक्सपोर्टर मेरा माल उठाता है, वह भी वही है। अब मै ‘अपने’ अकेले कलर्क और पेकर को लेकर फैक्टरी कैसे चलाऊँ? वो वर्कर तो कहीं भी लग जाएँगे। मै तो भूखों मर जाऊँगा।‘

-दो-

मोहल्ले के लडके मुझे सलाह देने आए है- आप अपनी दाढ़ी कटा लें। दंगों मे किसी ने गलती से मुसलमान समझकर मार दिया तो हमारी कोई गारंटी नहीं।

’लेकिन दाढ़ी कटवा लेने के बाद मुसलमानों ने अगर मुझे हिन्दू समझकर पकटं लिया तो उस वक्त मुझे बचाने की गारंटी कौन लेगा?’

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11 टिप्पणियाँ

  1. To the point short stories.

    Alok Kataria

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  2. दंगा से जुडे दोनो चित्र उसकी भयानकता को दर्शाने में सफल हैं।

    मुम्बई के शहीदों को श्रद्धांजली।

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  3. कमाल की रचनाएं हैं दोनो .. मुम्बई के शहीदों को श्रद्धांजली !!

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  4. दंगा समाज का दुश्मन है और हर कोई प्रभावित होता है यह बात दोनो लघुकथायें कह रही हैं। इसे मुम्बई हमलों की दृष्टि से देखा जाये तो धर्म के नाम पर होने वाले जेहाद इंसानियत को कैसे खोखला करेंगे समझ सकते हैं। शहीदों को श्रद्धांजलि।

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  5. सही कहा है। दंगा चेहरा नहीं देखता।

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  6. हिन्दु और मुसलमान बन कर लोगों नें इंसान बनना छोड दिया है।

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  7. मुम्बई के गुनाहगारों को हम कभी सजा नहीं दिला पायेंगे। हम सोफ्ट स्टेट हैं इसी लिये दंगे है और आतंकवाद है।

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  8. नंदन जी से पूरी तरह सहमत हूँ। आज धर्म सचमुच जीवन को नहीं मृत्यु को पल्लवित करता प्रतीत होता है। ज़रूरी है कि हम धर्म के सही अर्थ को समझें और उसके अनुसार आचरण करें न कि कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के कहने पर समाज को काटते और बाँटते रहें।
    सूरज जी के दोनों रचनाएं दंगों के दौर में एक आम आदमी की चिंताओं को अभिव्यक्त करने में सफल रही हैं।

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  9. दोनों चित्र दंगों में घिरे जन-सामान्य की चिंता को स्वर देने में सक्षम हैं। सूरज जी की लघुकथाओं की सटीकता और सामर्थ्य प्रशंसनीय है।

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  10. दंगा पर दोनो लघुकथाये प्रभावित करती हैं।

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