
श्रम के शूरवीरों को
जिनकी लिखी हुई तकदीरों में
चौराहे पर होती
श्रम की नीलामी को
अक्सर देखा है
रचनाकार परिचय:-
उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में १९६५ को जन्मे अम्बरीष श्रीवास्तव ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से शिक्षा प्राप्त की है।
आप राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि हैं। कई प्रतिष्ठित स्थानीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं व इन्टरनेट की स्थापित पत्रिकाओं में उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। वे देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित तकनीकी व्यवसायिक संस्थानों व तथा साहित्य संस्थाओं जैसे "हिंदी सभा", "हिंदी साहित्य परिषद्" आदि के सदस्य हैं। वर्तमान में वे सीतापुर में वास्तुशिल्प अभियंता के रूप में स्वतंत्र रूप से कार्यरत हैं तथा कई राष्ट्रीयकृत बैंकों व कंपनियों में मूल्यांकक के रूप में सूचीबद्ध होकर कार्य कर रहे हैं।
प्राप्त सम्मान व अवार्ड: "इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड २००७", "अभियंत्रणश्री" सम्मान २००७ तथा "सरस्वती रत्न" सम्मान २००९ आदि|
नींव खोदते हुए हाथ
गिट्टी तोड़ते हुए हाथ
दहकती दुपहरी में
पसीने से लथपथ
गमछे से बार बार
मुँह पोंछते हुए
प्यास से सूखता हुआ गला
कोल्ड ड्रिंक पीता हुआ ठेकेदार
प्यासे होंठों पर जीभ फिराकर
उन्हें तर करने का असफल प्रयास
पर प्यास तो बुझती ही नहीं
आखिर बुझे भी तो कैसे
बार बार पानी पिया तो
मेट की डांट पड़ने का खतरा
अक्सर देखा है
स्लैब ढालते हुए
तसले ढोते हुए
मौरंग और सीमेंट
सीमेंट की रगड़ से
हाथों व पैरों की
अँगुलियों की पोरों से
खून का रिसना
अक्सर देखा है
कडाके की धूप
तसला ढोती हुए महिला
पीठ पर बंधा गमछा
गमछे में नवजात
इधर उधर टुकुर टुकुर देखता
घास में भूख से बिलखते
कलेजे के टुकड़े
असहाय मजदूर माँ
अफ़सोस इस समय
वो कैसे पिलाये दूध
नग्न आँखों से घूरता हुआ मेट
अक्सर देखा है
कब आएगा उनका समय
कब बहुरेंगे उनके दिन
अपने अनुरोध पर
एक मशहूर सीमेंट कपनी नें
काफी मजदूरों का
बीमा तो कराया
पर बहुत अभी बाकी हैं
कौन कराएगा उनका बीमा
कौन दिलाएगा उन्हें
सुरक्षा सहूलियतें
व सिक्योरिटी उपकरण
कब आएगा वो दिन ...
आगे आगे देखना है ...
8 टिप्पणियाँ
सामाजिक विषमता को उकेरने का अच्छा प्रयास |
जवाब देंहटाएंबधाई|
अवनीश तिवारी
मुम्बई
मई दिवस की पूर्व संध्या पर प्रभावी कविता।
जवाब देंहटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अम्बरीश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता को पढ़ते समय आँखों के समक्ष कठिन परिश्रम करते हुए मजदूरों की लाचारी का दृश्य जीवंत हो उठा है. काश! हमारे दृष्टिकोण उनके प्रति उदार और जिम्मेदार हो पाते. मजदूरनी की बेबसी तो आत्मा की गहराई तक उतर गई. एक उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई!
------किरण सिन्धु.
मजदूरों के हकों के प्रति उदासीनता एक अभिशाप है जो किसी दुर्घटना के घटने पर उनके पूरे परिवार को डस लेता है. समाज का दायित्व है कि वह उन्हें उनके हक दिलवाये... इस कविता के माध्यम से कवि ने यह दायित्व निभाया है
जवाब देंहटाएंआदरणीय अवनीश एस तिवारी, आदरणीय राजीव रंजन प्रसाद, आदरणीय अभिषेक सागर, आदरणीय आलोक कटारिया, आदरणीया किरण सिन्धु व आदरणीय मोहिंदर कुमार जी, आप सभी को यह कविता अच्छी व सार्थक लगी, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कृपया भविष्य में इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहें, आपकी टिप्पणियां ही कविता में निखार लाती हैं | पुनः धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसादर, अम्बरीष श्रीवास्तव
ambarishji@gmail.com
दूरभाष: ०९४१५०४७०२०
अम्बरीश जी सामाजिक सरोकारों से जुड कर कविता महान बनती है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वास जी,
जवाब देंहटाएंएकदम सच कहा आपने |
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
आभार सहित,
अम्बरीष श्रीवास्तव
वास्तुशिल्प अभियंता
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.