
रचनाकार परिचय:-
नाम - ओमप्रकाश शर्मा
जन्म - २० जनवरी १९५६
शिक्षा - एम.ए., पी.एच.डी.
प्रकाशन - दो कविता संग्रह
एक आलोचना पुस्तक
महत्वपूर्ण पत्रिकाओं मे लगातार प्रकाशन
पुरुस्कार - कविता के लिये ’वागीश्वरी ’पुरुस्कार
जन्म - २० जनवरी १९५६
शिक्षा - एम.ए., पी.एच.डी.
प्रकाशन - दो कविता संग्रह
एक आलोचना पुस्तक
महत्वपूर्ण पत्रिकाओं मे लगातार प्रकाशन
पुरुस्कार - कविता के लिये ’वागीश्वरी ’पुरुस्कार
भीड़ में सड़क पर चलते हुए
लगता है कभी कभी
मैं एक घने जंगल में हूँ
कभी कभी लगता है
मैं अपने ही भींतर
थोड़ा सा स्यार होता हूँ
थोड़ा सा बाघ होता हूँ
थोड़ा सा रीछ होता हूँ
थोड़ा सा शेर होता हूँ
थोड़ा थोड़ा सांप
थोड़ा सा झाड़ झंकाड़
कभी कभी लगता है मुझे
खूँखार और भयानक जंगल है
मेरे भींतर
और मेरे बाहर।
7 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता एक सरल आत्म विश्लेषण के साथ.
जवाब देंहटाएंबधाई |
जवाब देंहटाएंलघु काव्य अच्छी तो है लेकिन और दमदार रचना की चाह है ?
आपकी ओर से और रचनायों की प्रतीक्षा में,
अवनीश तिवारी
बहुत सुंदर ..इंसान के भीतर ..परिकल्पना ही अद्भुत है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंकभी कभी लगता है मुझे
जवाब देंहटाएंखूँखार और भयानक जंगल है
मेरे भींतर
और मेरे बाहर।
बहुत सुन्दर।
चंद लाइनों में बेहतरीन भाव...सुंदर कविता..बधाई!!
जवाब देंहटाएंbahut hi gahan prastuti.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.