एक छोटी सी लड़की थी। उसका नाम था अन्विक्षा। बहुत प्यारी थी वो। पर थोडी नटखट भी थी। खेलने मे उस को बहुत मजा आता। कल्पना की दुनिया मे रहती थी। पर उस मे एक कमी भी थी। उस को टालने की आदत थी। जब भी माँ कोई काम कहती तो बोलती अभी करती हूँ, पर उसका अभी कभी नही आता। माँ उस को जब समझाती तो कहती, "माँ कल कर लूँगी" और भाग जाती खेलने। उसके स्कूल मे इम्तिहान आने वाले थे। माँ कहती अन्विक्षा पढ़ लो तो वो वही रटारटाया जवाब देती, "कल पढ़ लूंगी"। "अरे बेटा इम्तिहान सर पे हैं। तुम टालो मत। कितना सारा पढ़ना है। चलो पढो।" पर अन्वी को कहाँ सुनना होता था।
रचनाकार परिचय:-
एक दिन माँ ने कहा अन्विक्षा, "जानती हो, तुम्हारी नानी क्या कहती थी?"
अन्विक्षा बोली, "क्या?"
माँ ने कहा, "कहती थी, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल मे परलय होएगी, बहुरि करेगो कब।"
पर अन्विक्षा को कहाँ सुनना होता था। उस के पास तो हर बात का जवाब होता था। बोली, "माँ! नानी को मालूम नही। इसको ऐसे कहते हैं, ’आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों; जल्दी जल्दी क्यों करता है, अभी तो जीना बरसों।"
माँ बेचारी कुछ कह नही पाती। बहुत दुखी होती। सोचती क्या करूं इस लडकी का।
अन्विक्षा को हलवा बहुत पसंद था। एक दिन जब वो खेल के आई तो माँ से बोली, "माँ! आज हलवा बना दो न!" माँ कुछ काम कर रही थी।
बोली, "बेटा आज तो बहुत काम है। कल बना दूंगी।"
अन्विक्षा ने कहा, "ठीक है।" कह के कमरे मे चली गई।
दुसरे दिन अन्विक्षा ने कहा, "माँ! तुम ने कहा था, आज बना दोगी। बना दो न!"
माँ ने फिर कहा, "ओहो बेटा! मैं तो भूल गई। आज मुझे बाजार जाना है। कल बना दूंगी।"
इसी तरह से अन्विक्षा रोज़ हलवा बनाने को बोलती और माँ कोई न कोई बहाना बना के टाल देती। इस तरह ७ दिन बीत गए। आठवीं रोज जब अन्विक्षा सो के उठी तो देखा कि मेज पे ८ प्लेट हलवा रखा है। अन्विक्षा की खुशी का तो ठिकाना नही था। वो फटाफट ब्रश करके खाने बैठी। उसने पहली प्लेट, दूसरी प्लेट बहुत मन से खाई। तीसरी भी खा ली। चौथी थोडी मुश्किल से खाई। फिर पांचवी तो खा नही पाई। माँ से बोली, "माँ! अब नही खाया जाता।"
माँ ने कहा, "अरे बेटा! थोड़ा और खा लो। तुम को तो बहुत पसंद है॥"
"नही माँ! अब नही खा सकती।"अन्विक्षा बोली।
""अन्विक्षा! देखो तुम को ये हलवा कितना पसंद है, पर तुम ज़्यादा नही खा सकती। यदि यही हलवा एक प्लेट रोज मिलता तो तुम आराम से खा लेती। क्यों है न? इसी तरह से पढ़ाई भी है। तुम एक साथ ज्यादा नही पढ़ सकती। जब ८ दिन का हलवा तुम एक दिन मे नही खा सकती तो ८ दिन् की पढ़ाई कैसे एक दिन मे कर पाओगी। इसीलिए रोज का काम रोज करना चाहिए। टालना नही चाहिए।
अन्विक्षा को बात समझ मे आ गई। इस दिन के बाद से अन्विक्षा ने कभी भी बात को टाला नही रोज का काम रोज करती थी, अब वो सभी की प्यारी बन गई और माँ बहुत खुश थी।
रचना श्रीवास्तव का जन्म लखनऊ (यू.पी.) में हुआ। आपनें डैलास तथा भारत में बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया है। आपने रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ प्रस्तुत किये हैं। आपकी रचनायें सभी प्रमुख वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
एक दिन माँ ने कहा अन्विक्षा, "जानती हो, तुम्हारी नानी क्या कहती थी?"
अन्विक्षा बोली, "क्या?"
माँ ने कहा, "कहती थी, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल मे परलय होएगी, बहुरि करेगो कब।"
पर अन्विक्षा को कहाँ सुनना होता था। उस के पास तो हर बात का जवाब होता था। बोली, "माँ! नानी को मालूम नही। इसको ऐसे कहते हैं, ’आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों; जल्दी जल्दी क्यों करता है, अभी तो जीना बरसों।"
माँ बेचारी कुछ कह नही पाती। बहुत दुखी होती। सोचती क्या करूं इस लडकी का।
अन्विक्षा को हलवा बहुत पसंद था। एक दिन जब वो खेल के आई तो माँ से बोली, "माँ! आज हलवा बना दो न!" माँ कुछ काम कर रही थी।
बोली, "बेटा आज तो बहुत काम है। कल बना दूंगी।"
अन्विक्षा ने कहा, "ठीक है।" कह के कमरे मे चली गई।
दुसरे दिन अन्विक्षा ने कहा, "माँ! तुम ने कहा था, आज बना दोगी। बना दो न!"
माँ ने फिर कहा, "ओहो बेटा! मैं तो भूल गई। आज मुझे बाजार जाना है। कल बना दूंगी।"
इसी तरह से अन्विक्षा रोज़ हलवा बनाने को बोलती और माँ कोई न कोई बहाना बना के टाल देती। इस तरह ७ दिन बीत गए। आठवीं रोज जब अन्विक्षा सो के उठी तो देखा कि मेज पे ८ प्लेट हलवा रखा है। अन्विक्षा की खुशी का तो ठिकाना नही था। वो फटाफट ब्रश करके खाने बैठी। उसने पहली प्लेट, दूसरी प्लेट बहुत मन से खाई। तीसरी भी खा ली। चौथी थोडी मुश्किल से खाई। फिर पांचवी तो खा नही पाई। माँ से बोली, "माँ! अब नही खाया जाता।"
माँ ने कहा, "अरे बेटा! थोड़ा और खा लो। तुम को तो बहुत पसंद है॥"
"नही माँ! अब नही खा सकती।"अन्विक्षा बोली।
""अन्विक्षा! देखो तुम को ये हलवा कितना पसंद है, पर तुम ज़्यादा नही खा सकती। यदि यही हलवा एक प्लेट रोज मिलता तो तुम आराम से खा लेती। क्यों है न? इसी तरह से पढ़ाई भी है। तुम एक साथ ज्यादा नही पढ़ सकती। जब ८ दिन का हलवा तुम एक दिन मे नही खा सकती तो ८ दिन् की पढ़ाई कैसे एक दिन मे कर पाओगी। इसीलिए रोज का काम रोज करना चाहिए। टालना नही चाहिए।
अन्विक्षा को बात समझ मे आ गई। इस दिन के बाद से अन्विक्षा ने कभी भी बात को टाला नही रोज का काम रोज करती थी, अब वो सभी की प्यारी बन गई और माँ बहुत खुश थी।
5 टिप्पणियाँ
बहुत ही अच्छी कहानी...बधाई
जवाब देंहटाएंEXCELLENT
जवाब देंहटाएंGOOD NAME ANVIKSHA.
METHOD CAN BE USED BY THE PARENTS.
DO YOU HAVE YOUR BOOKS.
I AM IN NEED TO PURCHASE IT FOR MY SCHOOL LIBRARY. IF SO
PLEASE SEND MAIL
hpsdabwali07@gmail.com
उदाहरण सरल है बच्चे सुगमता से समझेंगे।
जवाब देंहटाएंabhishekji shushma ji aap ne kahani pasand ki aap ka dhnyavad .
जवाब देंहटाएंramesh ji abhi to meri koi book nahi hai .bhagvan ne chaha to kabhi hogi tab aap ko jarur bataungi
saader
rachana
EXCELLENT.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.