
यह कल्पना एक ममतामयी, करुणामयी नारी की है, जो असहाय स्थिती में पनपकर संघर्ष का हर पत्थर पार करने के बावजूद अपने उन बच्चों के जन्म का कारण तो बन सकती है पर बच्चों की भूख नहीं मिटा सकती है। एक कशमकश का दौर अपनी चरम सीमाओं को पार करके जब दर्द के दायरे में कदम रखता है तो छटपटाहट से भरा लहूलुहान ह्रदय पुकार उठता है उस प्रभू परमात्मा को जो सब जानकर अनजान बन बैठता है, तब एक चीख ब्रहमाँड तक पहुँचती है। एक हक़ीकी वारदात से दिल जब गुज़रता है....
वो दूध वाली
खबर अभी है उसकी आई
लाती थी जो दूध हमारा
गुजर गई है अब वो माई॥
सुबह सवेरे छः बजे वो
खाली शीशों का ले खोखा
कतार लँबी में वो जाकर
खड़े खड़े ही सो जाती थी॥
शरीर उसका झूढ था
जर्जर उसकी हालत
पेट को जो मिला नहीं कुछ
खाने को था अन्न नहीं और
पीने को भी कम था पानी
बस!
औरों का वो दूध थी लाती
दिये थे मैने दस रुपये
और किसी ने बीस दिये
कुल मिलाकर इक सौ चालीस
कमा लिया वो करती थी॥
वो ही उसकी जीवन चर्या
वो ही उसकी दुखद कहानी
अब मुक्त हुई इस भार से माई
जीवन के आजार से माई
जीवन भर था भार उठाया
आज खुद ही वो थी भार बनी
पडी रही निश्चल लाचार बनी॥
उसे उठा कर ले जायेंगे
काँधों पर ले चार कहार
वहाँ जहाँ वह सो पायेगी
नींद में लम्बे पाँव पसार॥
7 टिप्पणियाँ
सुन्दर छंदों में बंधें करुणा से भरे शब्द |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
करुणा से भरी कविता।
जवाब देंहटाएंTouchy poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
कविता गहरी है और संवेदनशील है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही दर्द भरी कविता--- कविता के विषय का चयन अत्यंत मार्मिक है. ना जाने कितनी दूध वाली माई का अंत ऐसा ही होता होगा.
जवाब देंहटाएं--किरण सिन्धु.
marmik aur bahut samvedansheel rachna hai ....
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील भावुक कविता
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.