9 अप्रैल, 1956 को जन्मे डॉ. वेद 'व्यथित' (डॉ. वेदप्रकाश शर्मा) हिन्दी में एम.ए., पी.एच.डी. हैं और वर्तमान में फरीदाबाद में अवस्थित हैं। आप अनेक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं जिनमें हिन्दी-जापानी कवि सम्मेलन भी शामिल है। कई पुस्तकें प्रकाशित करा चुके डॉ. वेद 'व्यथित' अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
दर्शक हो गये हैं हम
निभा नहीं पा रहे हैं कोई भी सक्रिय भूमिका
क्यों कि पात्र नहीं हैं अब हम
केवल दर्शक भर हैं।
किसी भी दृश्य को देख कर
बेशक हम कुछ क्षण क्रोधित हो लें
चीख लें, मुठ्ठियाँ तान लें हवा में
परन्तु हम मजबूर हैं एक दर्शक की हैसियत के नाते
उसे देखने के लिए, सुनने के लिए
क्यों कि घटनाओं के केद्र बिंदु नहीं रह गये हैं हम
या हमारे इर्द गिर्द नहीं घूमती हैं घटनाएँ
और जो भयावह हिंसक वीभत्स और
अमानवीय घटित हो रहा है
उसे रोक नही पा रहे हैं हम
क्यों कि हम वाल्मीकि होना चाहते हैं
परन्तु निस्पृह होते हैं हम किसी भी चीत्कार से
क्योंकि हम गुरु वशिष्ठ हो जाना चाहते हैं
इस लिए सब कुछ छोड़ देते हैं विधि के हाथ में
क्योंकि हम ढोंग रचते हैं बुद्ध होने का इस लिए सोचते हैं कि
यह संसार तो दुखों का घर है ही
क्योंकि हम चाणक्य बन कर
राजनीति को नियंत्रित करना चाहते हैं
इस लिए बनवाते हैं सारी नीतियां अपने ही लिए
क्योंकि हम पहनते हैं कनाट प्लेस की खादी
गाँधी होने के लिए
परन्तु टिक नही पाते हैं किसी भी नैतिकता पर
क्योंकि हम होना चाहते हैं हम
परन्तु हो नही पाते हैं महत्वपूर्ण पात्र
इस रंगमंच के
इस लिए हम नहीं हो पाते हैं हम
और बैठे रहते हैं उदास मुंह लटकाए
क्रोधमयी असहाय मुद्रा में
अगले अंक के लिए
पर्दा उठने की प्रतीक्षा में
7 टिप्पणियाँ
अतीत से कींच कर वर्तमान के लिये बडे बडे सलाव लायें है कविता नें। सशक्त रचना है।
जवाब देंहटाएंNice Poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत बढिया रचना !!
जवाब देंहटाएंक्रोधमयी असहाय मुद्रा में
जवाब देंहटाएंअगले अंक के लिए
पर्दा उठने की प्रतीक्षा में
inpanktiyon ne hi to pura bhao khol dya
पर्दा उठने की प्रतीक्षा - सशक्त रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत बधाई. सशक्त रचना..
जवाब देंहटाएंaap ka sneh pa kr abhibhoot hoon akinchn ka utsah vrdhn kiya hardik aabhari hoon neh bnaye rkhiye aabhar svikar kr ke anugrhit kren
जवाब देंहटाएंdr. ved vyathit faridabad
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