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क्या पतझड़ आया है? [कविता] – तेजेन्द्र शर्मा


पत्तों ने ली अंगड़ाई है
क्या पतझड़ आया है
इक रंगोली बिखराई है
क्या पतझड़ आया है?


रचनाकार परिचय:-

तेजेन्द्र शर्मा का जन्म 21 अक्टूबर 1952 को पंजाब के शहर जगरांव में हुआ। तेजेन्द्र शर्मा की स्कूली पढाई दिल्ली के अंधा मुगल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई. आपनें दिल्ली विश्विद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) अंग्रेज़ी, एम.ए. अंग्रेज़ी, एवं कम्पयूटर कार्य में डिप्लोमा किया है।

आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं - कहानी संग्रह : काला सागर (1990), ढिबरी टाईट (1994 - पुरस्कृत), देह की कीमत (1999), ये क्या हो गया ? (2003) पंजाबी में अनूदित कहानी संग्रह - ढिम्बरी टाईट। नेपाली मे अनूदित कहानी संग्रह - पासपोर्ट का रंगहरू, उर्दू मे अनूदित कहानी संग्रह - ईटो का जंगल।

आपकी भारत एवं इंगलैंड की लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में कहानियां, लेख, समीक्षाएं, कविताएं एवं गज़लें प्रकाशित हुई हैं साथ ही आपकी कहानियों का पंजाबी, मराठी, गुजराती, उडिया और अंग्रेज़ी में अनुवाद प्रकाशित हुआ है।

आपने दूरदर्शन के लिये शांति सीरियल का लेखन भी किया है। आपने अन्नु कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म अभय में नाना पाटेकर के साथ अभिनय भी किया है। आपकी अन्य गतिविधियों में बीबीसी लंदन, ऑल इंडिया रेडियो, व दूरदर्शन से कार्यक्रमों की प्रस्तुति, अनेकों नाटकों में प्रतिभागिता एवं समाचार वाचन प्रमुख हैं।

आपको अनेकों पुरस्कार सम्मान प्राप्त हैं जिनमें ढिबरी टाइट के लिये महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार - 1995 प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों, सहयोग फौन्देशन का युवा साहित्यकार पुरस्कार – 1998, सुपथगा सम्मान – 1987, कृति यूके द्वारा वर्ष 2002 के लिये बेघर आंखें को सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार आदि प्रमुख हैं।

रंगों की जैसे नई छटा
है छाई सभी दरख़्तों पर
पश्चिम में जैसे आज पिया
चलती पुरवाई है
क्या पतझड़ आया है?

पत्तों ने कैसे फूलों को
दे डाली एक चुनौती है
सुंदरता के इस आलम में
इक मस्ती छाई है
क्या पतझड़ आया है?

कुदरत ने देखो पत्तों को
है एक नया परिधान दिया
दुल्हन जैसे करके श्रृंगार
सकुची शरमाई है
क्या पतझड़ आया है?

पत्तों ने बेलों ने देखो
इक इंद्रधनुष है रच डाला
वर्षा के इंद्रधनुष को जैसे
लज्जा आई है
क्या पतझड़ आया है?

नारंगी, बैंगनी, लाल सुर्ख़
कत्थई, श्वेत भी दिखते हैं
था बासी पड़ ग़या रंग हरा
मुक्ति दिलवाई है
क्या पतझड़ आया है?

कोई वर्षा का गुणगान करे
कोई गीत वसंत के गाता है
मेरे बदरंग से जीवन में
छाई तरूणाई है
क्या पतझड़ आया है?

***********************

एक टिप्पणी भेजें

13 टिप्पणियाँ

  1. पतझर में सुन्दरता की सुन्दर तलाश।

    जवाब देंहटाएं
  2. यह लंदन वाला पतझर लगता है तेजेन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. ptjhd ka vipry soundry tp hai hi pr sundrta ko ptjhd men kyon privrtit kr rhe hain bhai saundry ko vsnt bnao thunt men jo hriyali hai use vsnt bne rhne do na aap ne suondry ko bkhobi chitrit kiya hai
    dr. ved vyathit

    जवाब देंहटाएं
  4. mitro

    Jis Patjhad ka maine chitran kiya hai, ye sach mein London ka patjhad hai. Ise dekhey bina aisa lag sakta hai ki ye vasant ka chitran hai. Patjhad mein London ke darakhton ke pattey phooloN se adhik khoobsoorat ho kar girtey hain.

    Tejendra Sharma

    जवाब देंहटाएं
  5. कहानीकार की कलम से कविता यह भी खूब है :)

    बहुत अच्छे रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  6. पत्तों ने ली अंगड़ाई है
    क्या पतझड़ आया है
    इक रंगोली बिखराई है
    क्या पतझड़ आया है?

    behad khoobsoorat bhav.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी कविता, बधाई तेजेन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. पतझड़ के आगमन का सुनहरा सन्देश देती .......... सुन्दर रचना .......

    जवाब देंहटाएं
  9. तेजेन्‍द्र शर्मा की कविताओं में से यह कविता "क्या पतझड़ आया है? बेहतरीन कविता है और मेरी पसन्‍दीदा भी। लन्‍दन का पतझड़ वसन्‍त से कम खू़बसूरत नहीं होता। इसकी एक हल्‍की सी बानगी देखकर आई हूं।
    आपको बहुत बधाई तेजेन्‍द्रजी, इस रचना के लिये। पाठक इस कविता का सौन्‍दर्य देखें कि पतझड़ कितना खूबसूरत हो सकता है और तेजेन्‍द्रजी ने किस तरह पतझड़ में सुन्‍दरता देखी है।

    जवाब देंहटाएं
  10. तेजेन्‍द्र की इस कविता में पतझर अपनी पूरी सुन्‍दरता से उभरकर आया है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. आजकल अमरीकी नॉर्थ ईस्ट में भी ऐसा ही पतझड़ का सौन्दर्य
    हर तरफ बिखरा पडा है
    तेजेंद्र जी की कविता ने
    सारे पत्तों पर छाए रंग खूब उभारे हैं
    - सुन्दर कविता है --
    प्रकृति कई विविध रंगों में अपनी खूबसूरती बिखेरती है

    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  12. तेजेन्द्र जी,
    आप ने तो इस कविता से नॉर्थ अमेरिका की पतझड़ की छठा दिखला दी, मेरे घर के बगीचे में आप की ही कविता उतरी हुई है--वृक्षों ने कितनी तरह के रंग बिखेरे हैं कि बसन्त भी शरमा जाये..नार्थ कैरोलाईना में तो लोग ड्राइव
    करके दूर पहाड़ों पर झड़ रहे पत्ते, वृक्षों और डालियों के विभिन्न रंगों के नज़ारे देखने
    जाते हैं...आप ने अपनी कविता में पतझड़ की जो खूबसूरती बताई है.....
    मैं चारों तरफ उसका आनन्द ले रही हूँ.....हमारे यहाँ प्रकृति के इन रंगों का सामूहिक रूप से
    मज़ा लेने के लिए उत्सव भी मनाया जाता है....
    खूबसूरत कविता पर बधाई --चाहे मैंने यह रचना पढ़ी हुई थी पर इस मौसम में इसे पढ़ने
    का अलग ही सुख मिला....

    जवाब देंहटाएं

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