
इकट्ठा कर
एक ख्वाबो का घर
बना तो दिया था..
मासूम दिल नहीं जानता था
इसकी तासीर रेत के
घरोंदे की तरह है..
जो कुंठाओ के थपेडो से
ढह जायेगा..!
मैं फिर भी
उस मकडी की तरह
अथक प्रयास करती हूँ
कि शायद कभी
इस खवाहिशो के घर को
यथार्थ की धरती
पर टिका पाऊ..
उस मकडी की तरह
अथक प्रयास करती हूँ
कि शायद कभी
इस खवाहिशो के घर को
यथार्थ की धरती
पर टिका पाऊ..
पर ना जाने क्या है..
या तो मेरी चाहत में कमी है
या मेरे सब्र का इम्तिहान...
की हर बार
मायूसिया सर उठा
मुझे और निराशाओ के
गलियारों में खीचती चली जाती है..!!
या तो मेरी चाहत में कमी है
या मेरे सब्र का इम्तिहान...
की हर बार
मायूसिया सर उठा
मुझे और निराशाओ के
गलियारों में खीचती चली जाती है..!!
क्या ये मुनासिब नहीं..,
या फिर मैं झूठी
आशाओ में जीती हूँ..??
कि ये खावाहिशो का घर
यथार्थ का सामना
कर पायेगा..
क्या सच में कभी
ये अपना वजूद
कायम कर पायेगा???
7 टिप्पणियाँ
क्या ये मुनासिब नहीं..,
जवाब देंहटाएंया फिर मैं झूठी
आशाओ में जीती हूँ..??
कि ये खावाहिशो का घर
यथार्थ का सामना
कर पायेगा..
क्या सच में कभी
ये अपना वजूद
कायम कर पायेगा???
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंख्वाहिश खूब अभिव्यक्त हुई है।
जवाब देंहटाएंNice Poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
mkdiyon ke ghr nhi tikte
जवाब देंहटाएंjo fanse dusron ko chl nhi skte
kinhi kunthhaon me jivn kbhi jiya nhi jata
ghrode ghr nhi hai vokbhi tik nhikte
pyar ki mati v pani pyar hi ho
dili chaht ka koi bhiaashiyana ho
vhi ghr hai vhi duniya vhi mnjil
yhi khvahish yhi ichchha yhi chaht hmariho
dr. ved vyathit
मन में उठती भावनाओं को बड़े ही सहज ढंग से आपने कविता का रूप दिया है...बहुत सुंदर कविता जो हमे आशावादी होने का संकेत देता है ताकि हम अपने दिल में उठे इस तरह के प्रश्नों का जवाब पा सके..बढ़िया रचना..बधाई अनामिका जी
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar kavita
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.