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बनाकर अपनी दुनिया को उसे बर्दाश्त भी करना [ग़ज़ल] - दीपक गुप्ता


बनाकर अपनी दुनिया को उसे बर्दाश्त भी करना
खुदा मेरे, मैं तेरे हौसले की दाद देता हूँ

परिंदे ने कहा तू कैद रख या कर रिहा मुझको
मैं अपनी ज़िन्दगी का हक़ तुझे, सैय्याद देता हूँ

मैं दुःख से घिर गया तो गैब से आवाज ये आयी
सुखों की छावं मैं अक्सर दुखों के बाद देता हूँ

तेरी यादों के पंछी जिस चमन में चहचहाते हैं
लहू से सींच कर उसको वफ़ा की खाद देता हूँ

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9 टिप्पणियाँ

  1. बनाकर अपनी दुनिया को उसे बर्दाश्त भी करना
    खुदा मेरे, मैं तेरे हौसले की दाद देता हूँ

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  2. तेरी यादों के पंछी जिस चमन में चहचहाते हैं
    लहू से सींच कर उसको वफ़ा की खाद देता हूँ
    बहुत अच्छी ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut sunder apka baht baht dhanywad deepak ji ati sunder jai siya ram

    जवाब देंहटाएं

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