
लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।
इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।
इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
कोमल किसलय, मधुकर गुँजन, सर्जन के हैँ साख!
मोहभरी, मधुगूँज उठ रही, कोयल कूक रही होगी-
प्यासी फिरती है, गाती रहती है, कब उसकी प्यास बुझेगी?
कब मक्का सी पीली धूप, हरी अँबियोँ से खेलेगी?
कब नीले जल मेँ तैरती मछलियाँ, अपना पथ भूलेँगीँ?
क्या पानी मेँ भी पथ बनते होँगेँ? होते होँगे, बँदनवार?
क्या कोयल भी उडती होगी, निश्चिन्त गगन पथ निहार?
मानव भी छोड धरातल, उपर उठना चाहता है -
तब ना होँगे नक्शे कोई, ना होँगे कोई और नियम!
कवि की कल्पना के पाँख उडु उडु की रट करते हैँ!
दूर जाने को प्राण, अकुलाये से रहते हैँ
हैँ बटोही, व्याघ्र, राह मेँ घेर के बैठे जो पथ -
ना चाहते वो किसी का भी भला न कभी!
याद कर नीले गगन को, भर ले श्वास उठ जा,
उडता जा, "मन -पँखी" अकुलाते तेरे प्राण!
भूल जा उस पेड को, जो था बसेरा तेरा, कल को,
भूल जा, उस चमन को जहाँ बसाया था तूने डेरा -
ना डर, ना याद कर, ना, नुकीले तीर को!
जो चढाया ब्याध ने,खीँचा धनुष के बीच!
सन्न् से उड जा! छूटेगा तीर भी नुकीला -
गीत तेरा फैल जायेगा, धरा पर गूँजता,
तेरे ही गर्म रक्त के साथ, बह जायेगा !
एक अँतिम गीत ही बस तेरी याद होगी !
याद कर उस गीत को, उठेगी टीस मेरी !
"मन -पँछी" तेरे ह्रदय के भाव कोमल,
हैँ कोमल भावनाएँ, है याद तेरी, विरह तेरा,
आज भी, नीलाकाश मेँ, फैला हुआ अक्ष्क्षुण!
8 टिप्पणियाँ
लावण्या जी की कविता अतीत में ले जाती हैं। उनकी भाषा और शैली के क्या कहने।
जवाब देंहटाएंएक अँतिम गीत ही बस तेरी याद होगी !
जवाब देंहटाएंयाद कर उस गीत को, उठेगी टीस मेरी !
"मन -पँछी" तेरे ह्रदय के भाव कोमल,
हैँ कोमल भावनाएँ, है याद तेरी, विरह तेरा,
आज भी, नीलाकाश मेँ, फैला हुआ अक्ष्क्षुण!
मन को छूने वाली कविता।
LAVANYA JEE KEE BHAVABHIVYAKTI
जवाब देंहटाएंSAHAJ AUR SUNDAR HAI.ACHCHHEE
KAVITA KE LIYE UNHEN BADHAAEE.
लावण्या जी की कविता पढ़ कर आनंदित हुआ.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना .. बहुत अच्छी लगी !!
जवाब देंहटाएंKAVITA KEE BHAVABHIVYAKTI SAHAJ
जवाब देंहटाएंAUR SUNDAR HAI.LAVANYA JEE KO
BADHAAEE.
kya sunder kavita hai sunder bhavon ke sath
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
होली पर्व पर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंनीलम चंद सांखला
http://nature7speaks.blogspot.com/
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