HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा [भाग-7] - अनुवाद एवं प्रस्तुति: सूरज प्रकाश और के पी तिवारी

गतांक से आगे.. [पिछले भाग पढने के लिये यहाँ चटखा लगायें - चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा (पूर्वकथन), चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 1, चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 2, चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 3, चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 4, चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 5, चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा भाग - 6,
Charles Darwin's Autobiography by Suraj Prakash and K.P.Tiwariरचनाकार परिचय:-

सूरज प्रकाश का जन्म १४ मार्च १९५२ को देहरादून में हुआ।

आपने विधिवत लेखन १९८७ से आरंभ किया। आपकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं:- अधूरी तस्वीर (कहानी संग्रह) 1992, हादसों के बीच (उपन्यास, 1998), देस बिराना (उपन्यास, 2002), छूटे हुए घर (कहानी संग्रह, 2002), ज़रा संभल के चलो (व्यंग्य संग्रह, 2002)।

इसके अलावा आपने अंग्रेजी से कई पुस्तकों के अनुवाद भी किये हैं जिनमें ऐन फैंक की डायरी का अनुवाद, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा का अनुवाद, चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा का अनुवाद आदि प्रमुख हैं। आपने अनेकों कहानी संग्रहों का संपादन भी किया है।

आपको प्राप्त सम्मानों में गुजरात साहित्य अकादमी का सम्मान, महाराष्ट्र अकादमी का सम्मान प्रमुख हैं।

आप अंतर्जाल को भी अपनी रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं।


Charles Darwin's Autobiography by Suraj Prakash and K.P.Tiwari
कृष्ण प्रसाद तिवारी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में एम. ए. करने के बाद यहीं से अनुवाद प्रमाणपत्र का अध्यययन भी किया। अध्ययन के दौरान सर्वोच्चय न्यायालय और लॉ कमीशन से अनुवाद कार्य में जुड़े रहे। सम्प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक में प्रबन्धपक के पद पर कार्यरत और राजभाषा विभाग में नियुक्ता भी हैं।

आँगन बाड़ी की कार्यकर्ताओं के लिए जच्चा-बच्चा़ की देखभाल की सम्पूर्ण पुस्तिका का अनुवाद तथा सूरज प्रकाश जी के साथ मिलकर किया गया "चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा" का अनुवाद इनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं।

यूनिवर्सिटी में कई विषयों पर सार्वजनिक व्याख्यान दिए जाते थे, और इनमें ह़ाजिर होना अपनी मर्जी के मुताबिक था, लेकिन एडिनबर्ग में लैक्चर सुन-सुनकर मैं इतना ऊब गया था कि मैं सेडविक के प्रभावशाली और रोचक व्याख्यानों में भी नहीं गया। यदि मैं उन व्याख्यानों में गया होता तो बहुत पहले ही भूविज्ञानी बन जाता। हालांकि मैंने वनस्पतिशास्त्र में हेन्सलो के व्याख्यान सुने और उनकी स्पष्टता को तथा अत्यधिक प्रभावशाली उद्धरणों को मैंने बहुत पसन्द किया लेकिन मैं वनस्पतिशास्त्र पढ़ता नहीं था। हेन्सलो अपने शिष्यों और यूनिवर्सिटी के कुछ पुराने सदस्यों को लेकर दूर-दराज के इलाकों तक पैदल या घोड़ागाड़ी में या फिर नदी के बहाव के साथ-साथ बजरे में बैठकर अध्ययन यात्राओं पर जाते थे। इस दौरान पाए जाने वाले दुर्लभ पौधों और पशुओं पर वे व्याख्यान देते। ये अध्ययन यात्राएँ बड़ी मनोरंजक होती थीं।

इस समय वैसे तो यही लग रहा होगा कि कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान मेरे जीवन के कुछ निर्धारक पहलू उजागर हो रहे थे, तो भी मैं यही कहूँगा कि वहाँ मेरा समय बुरी तरह से बरबाद हो रहा था। भयंकर बरबादी। निशानेबाजी की और शिकार करने की मेरी भावना मर चुकी थी, और अब मुझे देश के दूर-दूर के हिस्सों की सैर करने में मज़ा आने लगा था। मैं दूर-दूर तक घुड़सवारी करता। यहाँ मैं एक नई ही मंडली में फंस गया था। हमारी इस मंडली में कुछ लफंगे और नीच प्रवृत्ति के युवक भी थे। हम अक्सर शाम को एक साथ भोजन करते, हालांकि इनमें हमारे साथ अक्सर कोई न कोई गरिमामय व्यक्ति भी रहता था, और कई बार हम ज्यादा पी लेते थे, और बाद में गाते रहते या ताश खेलते। इस तरह से जितनी शामें मैंने गुज़ारीं, मुझे आज भी उसके लिए शरम महसूस होती है। हालांकि मेरे कुछ मित्र बहुत ही खुशमिजाज़ थे और हम सभी के दिमाग सातवें आसमान पर थे, लेकिन कुल मिलाकर मुझे उन दिनों की याद बहुत सुखदायक नहीं है।

लेकिन मुझे यह जानकर खुशी भी है कि मेरे कुछ और दोस्त भी थे जो पूरी तरह अलग प्रकृति के थे। व्हिटले के साथ मेरी दांत-काटी दोस्ती वाला मामला था। बाद में वह सीनियर रैंगलर बना। हम दोनों काफी दूर तक घूमने निकल जाते थे। उसने मुझमें अच्छे चित्रों और नक्काशियों के प्रति रुझान पैदा किया। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ मैंने खरीदीं भी। मैं अक्सर फिट्जविलियम गैलरी भी जाता रहता था, और लगता है मेरी रुचि भी काफी अच्छी थी, क्योंकि मैंने हमेशा अच्छे चित्रों की प्रशंसा की थी, और उनके बारे में बुजुर्ग क्यूरेटर से चर्चा भी करता था। मैंने सर जोशुआ रेनाल्ड की किताब काफी रुचि के साथ पढ़ी। हालांकि यह रुचि मेरे प्राकृतिक रुझान में नहीं थी, तो भी कुछ बरस तक मैंने इसमें काफी रुचि ली, और लन्दन स्थित नेशनल गैलरी के कई सारे चित्र मुझे बहुत आनन्दित करते थे, और सेबेस्टियन देल पियेम्बो के चित्र तो जैसे मुझे दिव्यलोक में ले जाते थे।

मैं एक संगीत मंडली में भी जाता था। मेरा एक जोशीला दोस्त हर्बर्ट मुझे वहाँ ले गया। उसके पास हाई रैंगलर की उपाधि भी थी। इस मंडली में शामिल होने और उनकी धुनों को सुनकर मुझमें संगीत के प्रति गहरा लगाव पैदा हो गया था। मैं अपनी सैर का समय इस तरह रखता था कि सप्ताह के दिनों में किंग्स कालेज के चैपल में उस मंडली को राष्ट्रगान की धुन बजाते सुन सकूं। इसमें मुझे इतना गहरा आनन्द आता था कि कई बार मेरी रीढ़ में सिहरन दौड़ जाती थी। मैं पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि इस लगाव में कोई बनावट या केवल नकल नहीं थी, क्योंकि मैं कई बार खुद ही किंग्स कालेज चला जाता था, और कई बार तो गिरजे की गायन मंडली के बच्चों को पैसे देकर अपने कमरे में उनका गायन सुनता था। यह बात दूसरी है कि मेरे कान संगीत को समझने के मामले में दीन-हीन थे। मैं एक भी धुन समझ नहीं पाता था, और न ही कोई धुन बजा पाता था। सही तरीके से गुनगुनाना तो मेरे लिए लोहे के चने चबाना था, फिर भी यह रहस्य ही है कि मैं संगीत का आनन्द क्योंकर ले पाता था।

मेरी संगीत मंडली के मेरे मित्रों ने जल्द ही मेरी हालत का अन्दाजा लगा लिया। कई बारे वे सब संगीत में मेरा इम्तिहान लेते और अपना मनोरंजन भी करते। वे कोई धुन बजाते और फिर सब मुझसे पूछते कि इनमें कौन-कौन सी धुनों को मैं पहचान सकता हूँ। इन्हीं धुनों को जब वे सामान्य से द्रुत या मंथर गति से बजाते थे तो मेरे लिए और भी कठिनाई होती थे। इस तरह से तो गॉड सेव्ड द किंग की धुन भी मेरे लिए कष्टप्रद पहेली बन जाती थी। एक और व्यक्ति भी था जो संगीत में मेरे जितनी ही समझ रखता था और कहने में अटपटा लगता है कि वह थोड़ा-बहुत बांसुरी भी बजा लेता था। हमारी संगीत मंडली की परीक्षाओं में एक बार मैंने उसे पराजित कर दिया तो मुझे बहुत खुशी हासिल हुई थी।

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. बडे ही स्वाभाविक तरीके से लिखा गया विवरण है। डारविन अपने आप को खुली किताब बना रहे है इस लिये कुछ छिपाना नहीं चाहते।

    जवाब देंहटाएं
  2. चार्ल्स डारविन को इस तरह क्रमबद्ध पडःअ कर प्रसन्नता है कि कुछ अच्छा और संग्रहणीय पढ रहा हूँ

    जवाब देंहटाएं
  3. एक महान कार्य जो आप के द्वारा हो रहा है, शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...