जरा ठीक से देखो बेटे
पानी नहीं नहानी में
तुमको आज नहाना होगा
एक लोटे भर पानी में|
नहीं बचा धरती पर पानी
बहा व्यर्थ बेईमानी में
खूब मिटाया हमने तुमने
पानी यूं नादानी में|
बीस बाल्टी पानी सिर पर
डाला भरी जवानी में
पानी को जी भरके फेका
बिना बचारे पानी में|
ढेर ढेर पानी मिलता था
सबको कौड़ी कानी में
अब तो पानी मोल बिक रहा
पैसा बहता पानी मॆ
कितना घाटा उठा चुके हैं
हम अपनी मनमानी में
नहीं जबलपुर में है पानी
न ही अब बड़वानी में|
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1 टिप्पणियाँ
Please correct the day.On2nd is sunday not saturday.Also take this poem on main page.
जवाब देंहटाएंPrabhudayal Shrivastava
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