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प्रेम की धारा बहे [कविता] - कुलवंत सिंह


नव सृजन, नव हर्ष की,
कामना उत्कर्ष की,
सत्य का संकल्प ले
प्रात है नव वर्ष की .

कल्पना साकर कर,
नम्रता आधार कर,
भोर नव, नव रश्मियां
शक्ति का संचार कर .

ज्ञान का सम्मान कर,
आचरण निर्माण कर,
प्रेम का प्रतिदान दे
मनुज का सत्कार कर .

त्याग कर संघर्ष का,
आगमन नव वर्ष का,
खिल रही उद्यान में
ज्यों नव कली स्पर्श का .

प्रेम की धारा बहे,
लोचन न आंसू रहे,
नवल वर्ष अभिनंदन
प्रकृति का कण कण कहे

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