
9 अप्रैल, 1956 को जन्मे डॉ. वेद 'व्यथित' (डॉ. वेदप्रकाश शर्मा) हिन्दी में एम.ए., पी.एच.डी. हैं और वर्तमान में फरीदाबाद में अवस्थित हैं। आप अनेक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं जिनमें हिन्दी-जापानी कवि सम्मेलन भी शामिल है। कई पुस्तकें प्रकाशित करा चुके डॉ. वेद 'व्यथित' अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
ताल एक हो जाये सब की तालीवे सब बजा रहे
सब की मिली भगत होती है नेता अफसर गुंडों की
नये साल में नाच नाच कर ऐसा ही वे बता रहे
नाच नचाना और नाचना ये शासन का सूत्र यहाँ
मंहगाई बस बढती जाये बस ये शासन का सूत्र यहाँ
चीनी अभी और भी मंहगी होगी नेता कहते हैं
नेता गीरी और मंहगाई का है अच्छा सूत्र यहाँ
आतंकी तो भगने ही थे और जेल में क्या करते
क्या बिरयानी खाते खाते वे बेचारे न थकते
अब तक ही क्या किया आप ने आगे भी तुम क्या करते
छूटना तो था ही था उनको और प्रतीक्षा क्या करते
क्या साधारण कानूनों से आतंकी रुक सकते हैं
देश द्रोह जैसे मद्दे को को क्या हम खास समझते हैं
इसी लिए ऐसी घटनाएँ खूब सहज घट जाती हैं
क्यों की जल्दी फाँसीअफजल कोभी न दे सकते हैं
अब भी शर्म नही आई है कुर्सी के गद्दारों को
आतंकी तो भाग गये है चकमा दे मक्कारों को
जेल के अंदर से ही जब वे आका से बतियाते थे
सजा तो निश्चित मिलनी चाहिय देश के ठेके दरों को ई
लाल चौक पर हमला करना उन का शौक पुराना है
और सुक्षा बढ़ा रहे हैं ये तो वाक्य पुराना है
न कुछ करना न कुछ धरना सत्ता अपनी बनी रहे
आतंकी से रिशता उन का देखो खूब पुराना है
4 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी मुक्तक... सच मे आतंकवाद गाली है...बधाई
जवाब देंहटाएंvery motivating poem.
जवाब देंहटाएंलाल चौक पर हमला करना उन का शौक पुराना है
जवाब देंहटाएंऔर सुक्षा बढ़ा रहे हैं ये तो वाक्य पुराना है
न कुछ करना न कुछ धरना सत्ता अपनी बनी रहे
आतंकी से रिशता उन का देखो खूब पुराना है
kya sahi likha hai
bahut khoob
badhai
rachana
निर्लज्ज नेताओं को कुछ न फरक पड़े ऐसे बातों की |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
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