
मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप कश्मीर में पदस्थापित हैं।
गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
राख पर पसरा है "होरी", सोचता निज भाग क्या
ड्योढ़ी पर बैठी निहारे शह्र से आती सड़क
"बन्तो" की आँखों में सब है, जोग क्या बैराग क्या
खेत सारे सूद में देकर "रघू" आया नगर
देखता है गाँव को मुड़-मुड़, लगी है लाग क्या
चांद को मुंडेर से "राधा" लगाये टकटकी
इश्क के बीमार को दिखता है कोई दाग क्या
क्लास में हर साल जो आता था अव्वल "मोहना"
पूछता रिक्शा लिये, ’चलना है मोतीबाग क्या’
किरणों के रथ से उतर क्या आयेगा कोई कुँवर
सोचती है "निर्मला", देहरी पे कुचड़े काग क्या
जब से सीमा पर हरी वर्दी पहन कर वो गये
घर में "सूबेदारनी" के क्या दिवाली फाग क्या
15 टिप्पणियाँ
सुन्दर अशआरों से सजी गजल के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंशाश्वत से बिम्बों को लिए एक जानदार शानदार गजल
जवाब देंहटाएंबनतो, रघु , राधा , मोहना , निर्मला और सूबेदारनी के माध्यम से अकुलाहट और वेदना को प्रकट कर दिया है ...बहुत खूब ...!!
जवाब देंहटाएंअपने अपनों की भावनाओं को व्यक्त करती एक खूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंपूरी साहित्य यात्रा ही हो गई!
जवाब देंहटाएंसुहानी कविता। उत्कृष्ट कविता।
क्या बात है मेजर साब,
जवाब देंहटाएंइन शब्दों की मार एके 56 से कहीं ज़्यादा है...
जय हिंद...
जब से सीमा पर हरी वर्दी पहन कर वो गये
जवाब देंहटाएंघर में "सूबेदारनी" के क्या दिवाली फाग क्या
उनकी गज़ल हमेशा ही हैरान कर देती है। ये गज़ल तो और भी
नये तेवर लिये है और बन्तो, रघु , राधा , मोहना , निर्मला और सूबेदारनी के प्रतिबिम्ब गज़ल को नया रूप दे रहे हैं । हर एक शेर काबिले तरीफ है ।लाजवाब गज़ल के लिये गौतम जी को बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्
ये ग़ज़ल नहीं है...एक करिश्मा है...किरदारों के नाम से शेरों में जो असर पैदा किया है वो अद्भुत और अपनी तरह का अकेला है...कम से कम मैंने तो इस तरह की ग़ज़ल जिसमें किरदारों के नाम इस ख़ूबसूरती से पिरोये गए हों कहीं नहीं पढ़ी...इस कलात्मक ग़ज़ल के लिए गौतम जी की जितनी तारीफ़ की जाये कम है...मुझे यकीन है इनकी रहनुमाई में ग़ज़ल नयी बुलंदियों को छुएगी...इश्वर सदा उनके साथ रहे इसी कामना के साथ
जवाब देंहटाएंनीरज
साहित्य की खूबसूरत यात्रा करवाती अद्भुत ग़ज़ल, नया अंदाज़ लिए..
जवाब देंहटाएंगौतम जी बहुत -बहुत बधाई....
इस ग़ज़ल को खुद गौतम भाई के आवाज़ में प्रत्यक्ष रूप से सुनाने का सौभाग्य प्राप्त है मुझे और फक्र करता हूँ इस पर ... सच कहूँ तो यह ग़ज़ल जब भी पढता हूँ आँखें नाम हो जाती है ... जिस अंदाज़ में वो इसे पढ़ते हैं वो खुद नायाब है वेसे तो सारे ही शे;र मुकम्मल हैं मगर इस शे'र पर कितनी बार मुक़र्रर किया हिया हमने वही जानते हैं ...
जवाब देंहटाएंक्लास में हर साल जो आता था अव्वल "मोहना"
पूछता रिक्शा लिये, ’चलना है मोतीबाग क्या’
बधाई कुबूल करें..
अर्श
Adbhut
जवाब देंहटाएंShakti
साहित्य के जीवंत हो चुके चरित्रों के बिंब का अनूठा प्रयोग ...... वर्तमान परिवेश को समेटती उत्कृष्ट रचना...... बहुत सुंदर ... मेजर ..... शुभकामना
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल । बेहतरीन प्रयोग । गहन भाव लिए हुए ।
जवाब देंहटाएंलफ़्जों का चयन और ख्यालात का कद बहुत उम्दा है. दिल को छूती हुई गजल के लिये आभार
जवाब देंहटाएंShabdon ka bahav Gautam ji ke saath safar par le jata hai har pathak ko.
जवाब देंहटाएंMakta prabhavshali aur Jaandar hai. Kushal shilp ke liye daad
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.