
तुम कौन हो?
मैंने कहा, मैं भोर हूँ,
मैं आशा हूँ,
नव जीवन की अभिलाषा हूँ|

कोल्कता विश्वविद्यालय से एम.ए तथा जाधवपुर विश्वविद्यालय से बी.एड.की डिग्री प्राप्त कर शिक्षण और लेखन में कार्य किया।
२००६ में अमेरिका आने के उपरांत कई विदेशी पत्र- पत्रिकाओं में लेख छपने लगे, जिससे लिखने की और प्रेरणा मिली।
सुबह की पहली किरण ने पूछा-
और क्या हो?
मैंने कहा, मैं कुसुम हूँ,
मैं खुशबू हूँ,
मुरझाए कल की कली हूँ,
जो आज फूल बन कर खिली हूँ|
सुबह की पहली किरण ने पूछा-
और क्या हो?
मैंने कहा, नई नवेली दुल्हन हूँ-
प्रेयसी भी हूँ,
प्रेम के गीत गाती हूँ|
सुबह की पहली किरण ने कुछ ना पूछा-
बस कहा- चल तुम और मैं सखी बन
प्यार की, अनुराग की रौशनी फैलाएँ
और नव-जीवन का गीत गाएँ ......
6 टिप्पणियाँ
very innovative.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बडी ही आशा भरी कविता है, बधाई
जवाब देंहटाएंसुबह की पहली किरण ने कुछ ना पूछा-
जवाब देंहटाएंबस कहा- चल तुम और मैं सखी बन
प्यार की, अनुराग की रौशनी फैलाएँ
और नव-जीवन का गीत गाएँ ......
वाह मधुर भाव
मीठी रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
अदिति, बहुत खूब--
जवाब देंहटाएंसुबह की पहली किरण ने कुछ ना पूछा-
बस कहा- चल तुम और मैं सखी बन
प्यार की, अनुराग की रौशनी फैलाएँ
और नव-जीवन का गीत गाएँ ......
अच्छी रचना पर बधाई ..
बहुत प्यारी रचना के लिये अदिति जी को बधाई! मकर संक्रांति के पर्व पर साहित्य शिल्पी तथा आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.