और उसकी सारी गिरहें खोलकर...
धीरेन्द्र सिंह का जन्म १० जुलाई १९८७ को छतरपुर जिले के चंदला नाम के गाँव में हुआ था|
आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं|
कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|
आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चंदला में ही पूरी की। वर्तमान में आप इंदौर में अभियन्त्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं|
कविताएँ लिखने का शौक आपको अल्पायु से ही था, किन्तु पन्नो में लिखना कक्षा नवीं से प्रारंभ किया| आप हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में रचनाएं लिखते हैं। आपका 'काफ़िर' तखल्लुस है|
पानी में बहता था,
तो उससे पूंछा भी
ये कैसे चलता है आसमां की सड़कों पर
कभी आधा कभी पूरा
तो कभी गुल हो जाता है
बूंदों के आईने बनाए
और उन एक-एक में चाँद बैठाकर
बहा दी सारी पानी में
अब दस-दस चाँद हैं मेरे पास
अदल-बदल के रोज
अब सारों को चखा करता हूं!!!
4 टिप्पणियाँ
एक बेजोड़ रचना | दस दस चाँद वाली बात छू गयी |
जवाब देंहटाएंरचना और बढ़ाया होता तो और कुछ सुनते आपसे ...
बधाई
अवनीश तिवारी
ये कैसे चलता है आसमां की सड़कों पर
जवाब देंहटाएंकभी आधा कभी पूरा...बेहद उम्दा सोच के लिए धीरेन्द्र जी बधाई!आप सभी को मकरसंक्रान्ति की बधाईयां!
एक खूबसूरत रचना...बढ़िया लिखे है भाई..बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ।बढ़ते रहे।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.