
9 अप्रैल, 1956 को जन्मे डॉ. वेद 'व्यथित' (डॉ. वेदप्रकाश शर्मा) हिन्दी में एम.ए., पी.एच.डी. हैं और वर्तमान में फरीदाबाद में अवस्थित हैं। आप अनेक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं जिनमें हिन्दी-जापानी कवि सम्मेलन भी शामिल है। कई पुस्तकें प्रकाशित करा चुके डॉ. वेद 'व्यथित' अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।
भारत की असतो मा सद्गमय की अमृतमयी उद्घोषणा ही उस की पहचान है। यही अमृत मन्त्र महाकवि सूर्य कान्त त्रिपाठी "निराला " की जीवन दृष्टि है, उन का अंतर्मन है और उन की चेतना है जो सभी प्रकार के संत्रास, दुःख, व्यथा और न जाने कौन-कौन से इसी तरह के अंत:स्थलों से गुजरता हुआ गुह्य गह्वरों को चीरता हुआ हर कलुष और तमस को हटाता हुआ मन को "हरि चरणों"१ में अर्पित कर डालता है।
जीवन का एक सत्य मृत्यु भी है। कबीर ने सम्भवत: मृत्यु को सर्वाधिक गाया है वहीं निराला ने स्वयं पग पग पर मृत्यु को प्रमाणिकता दी है तथा उसका हँस-हँस कर आलिंगन किया है।२ जीवन का कोई पहलू निराला के रचना संसार से अछूता रहा हो ,नही कहा जा सकता है। दुःख-सुख, राग-विराग, अंधकार-प्रकाश, शोक-अशोक, प्रेम, सौन्दर्य, दार्शनिक चिन्तन और अनुभूत सत्य या आत्म प्रकाश सभी कुछ है और यह इतना है कि हिंदी साहित्य प्रलयांत तक ऋणी रहेगा। वास्तव में तो वही मर सकता है या मरना जानता है जो शीश हाथ धर जीता है। वही तो निराला है क्योंकि उन्होंने इस का वरण किया है :
मरण को जिस ने वर है
उसी ने जीवन भरा है ३
यह कहना या लिखना आज के दोहरे मानदंडों के जीवन में बेशक सरल हो परन्तु निराला ने इसे यूं ही नही लिखा है क्योंकि उन का जीवन-वृत्त इस बात का साक्षी है। भारतीय वांग्मय के अनुसार तो शिव ने जीवन में एक बार विष-पान किया था परन्तु निराला के जीवन में तो ऐसा पता नहीं कितनी बार हुआ है :
इस विषम बेलि में विष ही फल
यह दग्ध मरुस्थल नहीं सुफल ४
जीवन का यह निरंतर विषम विषपान ही निराला के जीवन की गाथा रही :
दुःख ही जीवन कि कथा रही
क्या कहूँ आज जो नहीं कही ५
परन्तु इस मायावी छल प्रपंच के आगे यह विषपायी कंठ भी हार गया :
हो गया व्यर्थ जीवन
मैं रण में हार गया 6
यह हार साधारण हार नहीं है। क्योंकि सिद्धांत की लड़ाई में या सत की जय के लिए प्रतिज्ञा भंग कर चक्र हस्तगत करना भी जब हार नहीं रही तो यह हार कैसे हार हो सकती है। यह हार निराला की हार नहीं है अपितु नील निस्सीम की हार है। इसी लिए तो निराला का उसी से प्रश्न है "कहाँ तुम्हारी महादया"7 और जब निराला ने बड़े-बड़े मंचों पर ढोंगी राजनेताओं, समाज-सुधारकों तथा साहित्य-कर्मियों को भी नहीं छोड़ा तो भला भगवान को छोड़ने वाले कहाँ थे; सीधा सा सखी भाव का उपालम्भ "आँख बचाते हो"।८
कैसा उपालम्भ है! हरि या विधि भी इस धीर गम्भीर के आगे बौने हो गये। जन्म-पत्रांक को भी मिटाने में जो समर्थ रहा हो, वो जमाने से तो जो संघर्ष करता ही रहा अपितु विधि से भी संघर्ष करने से नहीं चूका जिस जन्म-पत्र में दो विवाह थे, उसे ही नदी में बहा दिया, झुठला दिया उस कागज के टुकड़े को। परन्तु यह झुठलाना भी धर्म के विरुद्ध बिगुल नहीं था जैसा कुछ लोगों ने कुछ समय तक उन का उपयोग मत विशेष के लिए किया अपितु और अधिक गहनता से शरणागत हो गये, हजारों बार मृत्यु को वरण किया तो भी:
मरा हूँ हजार मरण
पाई है तब चरण शरण ९
इस लिए निरंतर उन पाखंडों का खंडन करने से भी परहेज नहीं किया जिन का लोग भाषण में तो विरोध करते हैं परन्तु व्यवहार में नहीं। निराला तो दूसरी माटी के बने थे। दुनिया को भाषण नहीं दिया। उस से तो कुछ नहीं कहा, अपितु जो उचित था वह किया। कबीर की भांति उसे अपनाया :
बारात बुला कर मिथ्या व्यय
मैं करूं नही ऐसा सुसमय
तुम करो ब्याह, तोड़ता नियम
मैं सामाजिक भोग का प्रथम १०
यह कार्य उस समय बहुत आसान नहीं था परन्तु निराला किसी भी प्रकार की आलोचना से विचलित होने वाले कहाँ थे, अपितु सिंह-गर्जना करते हुए समाज में शक्ति का संचार किया :
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण
हे पुरुष सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण ११
क्योंकि सामने वाला जब अहिंसा को जानता ही नहीं है तो बिना शक्ति के अपने अस्तित्व की रक्षा करना ही सम्भव नहीं। यानि एक गाल पर मार खाने के बाद दूसरा आगे करना, निराला की दृष्टि में कायरता है। उस का शक्ति से उत्तर देना, निराला की दृष्टि में अनिवार्य है। फिर भी वह सात्विक भाव की शांति के पक्षधर हैं :
रावण अशुद्ध हो भी यदि कर सका त्रस्त
तो निश्चय तुम हो कर शुद्ध करोगे उसे ध्वस्त
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन
छेड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो रघुनंदन १२
क्योंकि शक्ति बिना सत्य की रक्षा हो नहीं सकती परन्तु उस के लिए साधनों की पवित्रता के लिए राम के शक्ति पूजा में विशद वर्णन किया है। इसी लिए शक्ति-पूजा के लिए ही गुरू गोबिंद सिंह जी जैसे वीरों का यशोगान भी निराला उत्साह पूर्वक करते हैं :
सवा सवा लाख पर
एक को चढाऊंगा
गोबिंद सिंह निज नाम जब ही कहाऊंगा १३
निराला ने जहाँ राष्ट्र नायक व मर्यादा पुरुष भगवान राम, छत्रपति शिवाजी महाराज तथा सिंह सिपाही गुरु गोबिंद सिंह जी जैसे नायकों का यशोगान किया है वहीं वह सिद्धांत-हीन व ढकोसलाबाज राजनीतिज्ञों पर व्यंग करने से किसी लाभ-लोभ के कारण कदापि नहीं चूके। नये पत्ते, झींगुर डट कर बोला तथा कुकुरमुत्ता जैसी अनेकों रचनाएँ इस बात का प्रमाण है केवल व्यंग्य ही नही सामाजिक रूढ़ियों के विपरीत उन के युगांतकारी उद्घोष "तारूँगी घर घर दुस्तर तम" कन्या भ्रूण-हत्या जैसी घिनोने हरकत करने वालों के लिए आज भी ऐसा संदेश हुई कि क्या कन्या पिता का उद्धार नहीं कर सकती है उन के अमृत वाक्य क्या आज समाज के लिए उज्ज्वल प्रकाश स्त्म्ह नहीं है निश्चित है परन्तु सच्चाई का मार्ग बहुत कठिन है तलवार की धर पैधावनो है परन्तु फिर भी उन का दीप की लौ को और ऊँचा करने को दुःख को जीने का ,दर्द को पीने का उन का एक ही पथ था :
गीत गाने दो मुझे तो
वेदना को रोकने को
बुझ गई है लौ पृथा की
जल उठी फिर सींचने की १५
इस व्यथा से ही सिंचित जब उन का वसंत फिर आया है तो निचित :
वर्ड हुई शरद जो हमारी
फनी बसंत की माला कुंवारी १६
और जब वासन्ती माला ही संवर गई तो निचित वीणा वादिनी भी वर देगी जिस से भारती जय विजय करेगी
महाकवि निरल को साहित्य जगत की वासन्ती पुष्पांजलि।
सन्दर्भ -
१-सांध्य की कली, २-अर्चना, ३-अणिमा, ४-गीतिका, ५-वही, ६-अनामिका, ७-अर्चना, ८-वही, ९-आराधना, १०-गीतिका, ११अनमिक, १२-वही, १३परिमल, १४-गीतिका, १५-अर्चना, १६ गीत कुञ्ज
7 टिप्पणियाँ
माँ शारदे आपको शत शत नमन ....
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
वसंत पंचमी की शुभकामनायें और एक बहुत अच्छे आलेख का आभार।
जवाब देंहटाएंकविवर निराला को नमन |
जवाब देंहटाएंसभी को बसंत पंचमी की शुभ कामना |
अवनीश तिवारी
निराला गर्व है हिन्दी साहित्य के उन्हे वसंत पंचमी पर स्मरण करना माँ शारदा का सम्मान करना ही है।
जवाब देंहटाएंsahitya shilpi ke sbhi shridy pathkon v drshkon ke liye is pavn prv kee hardik shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंmera aalekh pdh kr jinhone kripa kee main un sbhi ke prti aabhari hoon
aahar swikar kren dhnyvad
dr.ved vyathit
bndhuvr rajiv ji
जवाब देंहटाएंaap ko vsntotsv ki hardik shubhkamanyen aap ne mera lekh smrn rkha aap ka hardik aabhr sahity shilpi nirntr uttrotr prgti gami rhe meri hardik shubhkamnayen hain
धन्यवाद सर ...
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